अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार का सबसे ज़्यादा असर इलेक्ट्रॉनिक्स व्यापार पर पड़ रहा है. चीन में जैसे जैसे इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेन्ट्स की मैन्यूफैक्चरिंग करना महंगा हो रहा है. वहां सक्रीय कंपनियां अब नया बाज़ार तलाश रही हैं. इस माहौल में सरकार ने भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की कवायद शुरू कर दी है.
भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल फोन्स के क्षेत्र में ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब बनाने की रणनीति बना रहे इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद सोमवार को 54 बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल कंपनियों के सीईओ और बड़े अधिकारियों से मिले. उन्होंने कहा कि सरकार भारत को एक आकर्षक निवेश का ठिकाना बनाने के लिए जल्दी ही एक नया रोडमैप लेकर आएगी.
रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'नीति आयोग एक नई पॉलिसी बना रही है. उसे जल्दी ही तैयार कर लिया जाएगा. एक नए रोडमैप का इंतज़ार करें.'
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री संजय धोत्रे ने कहा, 'एप्प्ल भारत में आ चुका है. एप्पल जैसी कंपनी भारत में अगर रुचि दिखा रही है तो इसका मतलब है इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में बिजनेस के लिए इकोसिस्टम अच्छा है. हमने एक टास्क फोर्स बनाने का फैसला किया है जो भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स में ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने के लिए रोडमैप तैयारा करेगा.'
दरअसल अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी होड़ की वजह से दुनिया की कई बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के लिए चीन में व्यापार करना महंगा होता जा रहा है. खबर है कि वो अब नया बाज़ार तलाश कर रही हैं जिसमें भारत भी शामिल है. इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने सरकार के सामने कई सुझाव रखे.
डेल्टा इलेक्ट्रानिक्स के एमडी आर ओमप्रकाश ने कहा, 'भारत इलेक्ट्रॉनिक्स में एक मैन्यूफैक्चरिंग रिवोल्यूशन की तरफ बढ़ रहा है. भारत को अपनी नीतियों में निरंतरता बनानी होगी. राज्यों के स्तर पर बिजनेस के लिए माहौल को अनुकूल बनाना होगा.'
सरकार ने 2025 तक 400 अरब डॉलर यानी करीब 28 लाख करोड़ रुपये का इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग इकोसिस्टम खड़ा करने का लक्ष्य तय किया है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं