भारतीय सेना को इस समय 1,85,000 असॉल्ट राइफलों की ज़रूरत है... (प्रतीकात्मक चित्र)
नई दिल्ली:
भारतीय सेना द्वारा पिछले माह रिजेक्ट की गई स्वदेश-निर्मित असॉल्ट राइफल की निर्माता सरकारी ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड, यानी ओएफबी का दावा है कि यह राइफल 'बिना कहीं अटके बिल्कुल सही काम कर रही है...'
कुछ सप्ताह पहले NDTV ने यह ख़बर उजागर की थी कि सेना नई 7.62 मिमी x 51 मिमी असॉल्ट राइफल के ट्रायल (परीक्षण) के बाद इस नतीजे पर पहुंची है कि यह बेसिक टेस्ट में खरी नहीं उतरी, जिसमें इसका तेज़ आवाज़ करना शामिल है, अतः यह युद्ध की स्थिति के लिए उपयुक्त नहीं है. सेना द्वारा रक्षा मंत्रालय को भेजी गई एक रिपोर्ट, जिसे NDTV ने पढ़ा है, में कहा गया है कि इस स्वदेशी राइफल को 'व्यापक डिज़ाइन विश्लेषण तथा सुधार की ज़रूरत है...'
जवाब में NDTV को लिखे खत में राइफल निर्माता के प्रवक्ता डॉ यू. मुखर्जी ने कहा है कि भारतीय सेना के एक शीर्ष जनरल ने ट्रायल के दौरान इस राइफल से फायर किया, और वह बिल्कुल बढ़िया चली थी.
भारतीय सेना को इस समय 1,85,000 असॉल्ट राइफलों की ज़रूरत है. चूंकि साथ में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों (साइट आदि) सहित प्रत्येक राइफल की कीमत लगभग एक लाख रुपये रहने की संभावना है, सो, कुल मिलाकर इस बड़े कॉन्ट्रैक्ट की कीमत लगभग 1,850 करोड़ रुपये होगी.
रक्षा मंत्रालय की हथियार निर्माता इकाई ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड ने यह भी कहा है कि इस साल की शुरुआत में बंगाल में कोलकाता से बाहर ईशापुर स्थित फैक्टरी में आकर भी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने राइफल की समीक्षा की थी. ओएफबी का दावा है कि उस समय भी तैयार किए जा चुके नमूनों को चलाकर देखा गया था, और उन राइफलों से चलाई गई लगभग 300 गोलियां बिना कहीं अटके चली थीं. निर्माता का यह दावा सेना के विचार के कतई उलट है, जिसका कहना है कि 'मैगज़ीन को पूरी तरह रीडिज़ाइन किया जाना चाहिए, ताकि राइफल को लोड करना आसान हो सके...' सेना की शिकायत है कि इस राइफल के सुरक्षा मैकेनिज़्म में भी दिक्कतें हैं, और (ट्रायल के दौरान) इसमें अधिकतम सीमा (20 बार) से भी कहीं ज़्यादा बार गड़बड़ियां और अटकाव आया.
ओएफबी का यह भी कहना है कि वह '(असॉल्ट राइफल के) रीकॉयल को सुविधाजनक स्तर तक ले आने में कामयाब रही है', तथा ईशापुर फेक्टरी में अब ट्रायल के लिए 10 और राइफलें बनाई जा रही हैं.
ओएफबी की असॉल्ट राइफल को भारतीय थलसैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मूलभूत हथियार के तौर पर भारतीय सेना स्वीकार नहीं कर सकती है, और इसी बीच सशस्त्र बलों के शीर्ष अधिकारियों के बीच असॉल्ट राइफलों की खासियतें तय करने के लिए बैठक की गई है. NDTV को जानकारी मिली है कि दुनियाभर के 21 हथियार निर्माता इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए बोली लगाने की मंशा ज़ाहिर कर चुके हैं.
भारतीय सैनिक इस समय एके-47 और इन्सास (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम) राइफलें इस्तेमाल करते हैं, जो भारत में ही बनती हैं, और उन्हें वर्ष 1988 में सेना में शामिल किया गया था. उन्हें इसी साल बड़े कैलिबर वाली ज़्यादा घातक असॉल्ट राइफलों से बदला जाना था, विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में तथा उग्रवाद-विरोधी ऑपरेशनों के लिए.
कुछ सप्ताह पहले NDTV ने यह ख़बर उजागर की थी कि सेना नई 7.62 मिमी x 51 मिमी असॉल्ट राइफल के ट्रायल (परीक्षण) के बाद इस नतीजे पर पहुंची है कि यह बेसिक टेस्ट में खरी नहीं उतरी, जिसमें इसका तेज़ आवाज़ करना शामिल है, अतः यह युद्ध की स्थिति के लिए उपयुक्त नहीं है. सेना द्वारा रक्षा मंत्रालय को भेजी गई एक रिपोर्ट, जिसे NDTV ने पढ़ा है, में कहा गया है कि इस स्वदेशी राइफल को 'व्यापक डिज़ाइन विश्लेषण तथा सुधार की ज़रूरत है...'
जवाब में NDTV को लिखे खत में राइफल निर्माता के प्रवक्ता डॉ यू. मुखर्जी ने कहा है कि भारतीय सेना के एक शीर्ष जनरल ने ट्रायल के दौरान इस राइफल से फायर किया, और वह बिल्कुल बढ़िया चली थी.
भारतीय सेना को इस समय 1,85,000 असॉल्ट राइफलों की ज़रूरत है. चूंकि साथ में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों (साइट आदि) सहित प्रत्येक राइफल की कीमत लगभग एक लाख रुपये रहने की संभावना है, सो, कुल मिलाकर इस बड़े कॉन्ट्रैक्ट की कीमत लगभग 1,850 करोड़ रुपये होगी.
रक्षा मंत्रालय की हथियार निर्माता इकाई ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड ने यह भी कहा है कि इस साल की शुरुआत में बंगाल में कोलकाता से बाहर ईशापुर स्थित फैक्टरी में आकर भी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने राइफल की समीक्षा की थी. ओएफबी का दावा है कि उस समय भी तैयार किए जा चुके नमूनों को चलाकर देखा गया था, और उन राइफलों से चलाई गई लगभग 300 गोलियां बिना कहीं अटके चली थीं. निर्माता का यह दावा सेना के विचार के कतई उलट है, जिसका कहना है कि 'मैगज़ीन को पूरी तरह रीडिज़ाइन किया जाना चाहिए, ताकि राइफल को लोड करना आसान हो सके...' सेना की शिकायत है कि इस राइफल के सुरक्षा मैकेनिज़्म में भी दिक्कतें हैं, और (ट्रायल के दौरान) इसमें अधिकतम सीमा (20 बार) से भी कहीं ज़्यादा बार गड़बड़ियां और अटकाव आया.
ओएफबी का यह भी कहना है कि वह '(असॉल्ट राइफल के) रीकॉयल को सुविधाजनक स्तर तक ले आने में कामयाब रही है', तथा ईशापुर फेक्टरी में अब ट्रायल के लिए 10 और राइफलें बनाई जा रही हैं.
ओएफबी की असॉल्ट राइफल को भारतीय थलसैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मूलभूत हथियार के तौर पर भारतीय सेना स्वीकार नहीं कर सकती है, और इसी बीच सशस्त्र बलों के शीर्ष अधिकारियों के बीच असॉल्ट राइफलों की खासियतें तय करने के लिए बैठक की गई है. NDTV को जानकारी मिली है कि दुनियाभर के 21 हथियार निर्माता इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए बोली लगाने की मंशा ज़ाहिर कर चुके हैं.
भारतीय सैनिक इस समय एके-47 और इन्सास (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम) राइफलें इस्तेमाल करते हैं, जो भारत में ही बनती हैं, और उन्हें वर्ष 1988 में सेना में शामिल किया गया था. उन्हें इसी साल बड़े कैलिबर वाली ज़्यादा घातक असॉल्ट राइफलों से बदला जाना था, विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में तथा उग्रवाद-विरोधी ऑपरेशनों के लिए.
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