नई दिल्ली:
देश के चार वाम दलों ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आग्रह किया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के कानून में किए गए तीसरे संशोधन को वापस लिया जाए, क्योंकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर इसका विपरीत असर पड़ेगा। वाम दलों ने एक संयुक्त बयान में कहा गया, "हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और शोध के हित के लिए और विभिन्न सामाजिक समूहों और वर्गो के बीच समानता के लिए इस संशोधन को वापस लेना आवश्यक मानते हैं।"
अधिसूचना के प्रावधानों के नकारात्मक नतीजे होंगे
यह बयान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), फॉरवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी की ओर से जारी किया गया है। बयान में कहा गया है कि अधिसूचना के प्रावधानों के नकारात्मक नतीजे होंगे। प्रत्यक्ष शिक्षण की परिभाषा से शिक्षण (ट्यूटोरियल्स) को हटा दिया गया है और विज्ञान विषयों में प्रयोग के महत्व को कम कर दिया गया है। इससे संस्थानों में प्रति शिक्षक काम का बोझ बढ़ेगा और गुणवत्ता पर विपरीत असर होगा।
आजीविका और रोजगार पर इसका विपरीत असर पड़ेगा
"इससे हजारों शैक्षणिक पद अतिरिक्त हो जाएंगे और युवा विद्वानों व शोधार्थियों की आजीविका और रोजगार पर इसका सीधा असर पड़ेगा और सक्रिय शिक्षण-अध्ययन प्रभावित होता है और शिक्षकों को विद्यार्थियों की व्यक्तिगत अध्ययन जरूरतें पूरी करने के मौके नहीं मिल पाते। " वाम दलों ने कहा है कि काम के बोझ के प्रति व्याख्यान केंद्रित दृष्टिकोण दुनिया के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की अकादमिक व्यवस्था के साथ विवादों में रहा है।"
"शिक्षकों के कार्य को नंबरों में परखने की एपीआई व्यवस्था के अनुभव से पता चला है कि इसने नंबर हासिल करने के मकसद से फर्जी शोध को प्रोत्साहित कर गुणवत्ता के खिलाफ काम किया है।" बयान में यह भी कहा गया है कि शिक्षकों की पदोन्नति को विद्यार्थियों के फीडबैक से जोड़ना अन्याय को थोपने का एक और रास्ता बन जाएगा।
अधिसूचना के प्रावधानों के नकारात्मक नतीजे होंगे
यह बयान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), फॉरवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी की ओर से जारी किया गया है। बयान में कहा गया है कि अधिसूचना के प्रावधानों के नकारात्मक नतीजे होंगे। प्रत्यक्ष शिक्षण की परिभाषा से शिक्षण (ट्यूटोरियल्स) को हटा दिया गया है और विज्ञान विषयों में प्रयोग के महत्व को कम कर दिया गया है। इससे संस्थानों में प्रति शिक्षक काम का बोझ बढ़ेगा और गुणवत्ता पर विपरीत असर होगा।
आजीविका और रोजगार पर इसका विपरीत असर पड़ेगा
"इससे हजारों शैक्षणिक पद अतिरिक्त हो जाएंगे और युवा विद्वानों व शोधार्थियों की आजीविका और रोजगार पर इसका सीधा असर पड़ेगा और सक्रिय शिक्षण-अध्ययन प्रभावित होता है और शिक्षकों को विद्यार्थियों की व्यक्तिगत अध्ययन जरूरतें पूरी करने के मौके नहीं मिल पाते। " वाम दलों ने कहा है कि काम के बोझ के प्रति व्याख्यान केंद्रित दृष्टिकोण दुनिया के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की अकादमिक व्यवस्था के साथ विवादों में रहा है।"
"शिक्षकों के कार्य को नंबरों में परखने की एपीआई व्यवस्था के अनुभव से पता चला है कि इसने नंबर हासिल करने के मकसद से फर्जी शोध को प्रोत्साहित कर गुणवत्ता के खिलाफ काम किया है।" बयान में यह भी कहा गया है कि शिक्षकों की पदोन्नति को विद्यार्थियों के फीडबैक से जोड़ना अन्याय को थोपने का एक और रास्ता बन जाएगा।
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