प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
सामाजिक आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना-2011 में ग्रामीण भारत की विकट तस्वीर दिखती है और रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि गांवों में हर तीसरा परिवार भूमिहीन है और आजीविका के लिए शारीरिक श्रम पर निर्भर है। आज जारी यह रिपोर्ट पहली डिजिटल जनगणना है। इसके लिए दस्ती इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया।
इसमें कहा गया है 23.52 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में 25 से अधिक उम्र का कोई शिक्षित वयस्क नहीं है। यह ग्रामीण क्षेत्र के शैक्षिक पिछड़ेपन का संकेत देता है। यह जनगणना ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्वाधान में 640 जिलों में की गई और इसे शुक्रवार को यहां वित्त मंत्री अरुण जेटली और ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने जारी किया।
जनगणना के मुताबिक देश में कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं जिनमें से 17.91 करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं। इनमें से 10.69 करोड़ परिवार ‘वंचित’ कोटि के माने जाते हैं। वंचितों के आंकड़े से जाहिर होता है कि ग्रामीण इलाकों में 5.37 करोड़ (29.97 प्रतिशत) परिवार भूमिहीन हैं और उनकी आजीविका का साधन मेहनत-मजदूरी है। गांवों में 2.37 करोड़ (13.25 प्रतिशत) परिवार एक कमरे के कच्चे घर में रहते हैं।
जनगणना में कहा गया कि गांवों में रहने वाले 21.53 प्रतिशत या 3.86 करोड़ परिवार अनुसूचित जाति-जनजाति के हैं। जेटली ने कहा, ‘1932 की जाति आधारित जनगणना के सात-आठ दशक बाद अब हमारे पास यह दस्तावेज आया है, केंद्र और राज्य सरकारों समेत सभी नीतिनिर्माताओं के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस दस्तावेज से हमें नीति नियोजन के लिहाज से समूहों को लक्षित कर सहायता पहुंचाने में मदद मिलेगी।’
वहीं वीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘ये आंकड़े गरीबी के विभिन्न पहलुओं पर गौर करते हैं और ग्राम पंचायत को एक इकाई के तौर पर मानकर साक्ष्य आधारित योजना के लिए अवसर प्रदान करते है।’ सिंह ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि रिपोर्ट के नाम में जाति का भी उल्लेख है लेकिन इसमें जाति के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
उन्होंने कहा, ‘रिपोर्ट के नाम में जाति का संकेत मिलता है लेकिन हमारे आंकड़े में जाति का उल्लेख नहीं है। फिर भी इसका नाम सामाजिक अर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना है।’ जनगणना में कहा गया कि सिर्फ 4.6 प्रतिशत ग्रामीण परिवार आयकर देते हैं।
आय के स्रोत के लिहाज से 9.16 करोड़ परिवार (51.14 प्रतिशत) दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं जिनके बाद खेती पर निर्भर परिवारों का स्थान है जो 30.10 प्रतिशत हैं। जनगणना के मुताबिक 2.5 करोड़ (14.01 प्रतिशत) परिवार आय के अन्य स्रोतों पर निर्भर हैं जिनमें सरकारी सेवा, निजी क्षेत्र और सार्वजनिक उपक्रम शामिल हैं। इसके अलावा 4.08 लाख परिवार आजीविका के लिए कचरा बीनने पर निर्भर हैं जबकि 6.68 लाख परिवार भीख और दान पर निर्भर हैं।
जेटली ने कहा, ‘यह दस्तावेज धर्म, समुदाय, जाति समूह, आर्थिक समूह विशेष के संबंध में विभिन्न किस्म के ब्योरे देता है और हमें यह आकलन का मौका देता है कि भारत में परिवारों ने कितनी प्रगति की है।’ उन्होंने कहा, ‘कौन लोग हैं जो जीवन शैली के लिहाज से ऊपर उठे हैं और भागौलिक क्षेत्र और सामजिक समूहों के लिहाज से किन लोगों को भावी योजना में ध्यान में रखना है।’ सिंह ने कहा, ‘यह आंकड़ा विभिन्न कार्यक्रमों में साक्ष्य आधारित चयन, प्राथमिकता और लाभार्थियों के लक्ष्य करने का मौका प्रदान करता है।’ ग्रामीण विकास मंत्री ने अपने सभी कार्यक्रमों में इस सामाजिक-आर्थिक जाति आधारित आंकड़ों के उपयोग का फैसला किया है।
उन्होंने कहा, ‘ये आंकड़े सबके लिए आवास, शिक्षा एवं कौशल संबंधी पहलों, मनरेगा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, विशिष्ट रूप से समर्थ लोगों के लिए पहलों, महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों के लिए हस्तक्षेप और वंचितों के साक्ष्य के आधार पर परिवारों-व्यक्तियों की पात्रता तय करने के संबंध में इसका अर्थपूर्ण उपयोग किया जाएगा।’ उन्होंने कहा कि इससे अंत्योदय मिशन का रास्ता साफ होगा ताकि ग्राम पंचायत गरीबी उन्मूलन योजना के जरिए परिवारों की गरीबी घटाई जा सके।
मंत्री ने कहा कि मूल विचार यह है कि इसे ग्राम पंचायत के साथ मिलकर वंचित परिवारों को प्राथमिकता देते हुए सम्मिलित एकीकृत गरीबी उन्मूलन योजना का कार्यान्वयन किया जा सके।
इसमें कहा गया है 23.52 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में 25 से अधिक उम्र का कोई शिक्षित वयस्क नहीं है। यह ग्रामीण क्षेत्र के शैक्षिक पिछड़ेपन का संकेत देता है। यह जनगणना ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्वाधान में 640 जिलों में की गई और इसे शुक्रवार को यहां वित्त मंत्री अरुण जेटली और ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने जारी किया।
जनगणना के मुताबिक देश में कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं जिनमें से 17.91 करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं। इनमें से 10.69 करोड़ परिवार ‘वंचित’ कोटि के माने जाते हैं। वंचितों के आंकड़े से जाहिर होता है कि ग्रामीण इलाकों में 5.37 करोड़ (29.97 प्रतिशत) परिवार भूमिहीन हैं और उनकी आजीविका का साधन मेहनत-मजदूरी है। गांवों में 2.37 करोड़ (13.25 प्रतिशत) परिवार एक कमरे के कच्चे घर में रहते हैं।
जनगणना में कहा गया कि गांवों में रहने वाले 21.53 प्रतिशत या 3.86 करोड़ परिवार अनुसूचित जाति-जनजाति के हैं। जेटली ने कहा, ‘1932 की जाति आधारित जनगणना के सात-आठ दशक बाद अब हमारे पास यह दस्तावेज आया है, केंद्र और राज्य सरकारों समेत सभी नीतिनिर्माताओं के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस दस्तावेज से हमें नीति नियोजन के लिहाज से समूहों को लक्षित कर सहायता पहुंचाने में मदद मिलेगी।’
वहीं वीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘ये आंकड़े गरीबी के विभिन्न पहलुओं पर गौर करते हैं और ग्राम पंचायत को एक इकाई के तौर पर मानकर साक्ष्य आधारित योजना के लिए अवसर प्रदान करते है।’ सिंह ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि रिपोर्ट के नाम में जाति का भी उल्लेख है लेकिन इसमें जाति के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
उन्होंने कहा, ‘रिपोर्ट के नाम में जाति का संकेत मिलता है लेकिन हमारे आंकड़े में जाति का उल्लेख नहीं है। फिर भी इसका नाम सामाजिक अर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना है।’ जनगणना में कहा गया कि सिर्फ 4.6 प्रतिशत ग्रामीण परिवार आयकर देते हैं।
आय के स्रोत के लिहाज से 9.16 करोड़ परिवार (51.14 प्रतिशत) दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं जिनके बाद खेती पर निर्भर परिवारों का स्थान है जो 30.10 प्रतिशत हैं। जनगणना के मुताबिक 2.5 करोड़ (14.01 प्रतिशत) परिवार आय के अन्य स्रोतों पर निर्भर हैं जिनमें सरकारी सेवा, निजी क्षेत्र और सार्वजनिक उपक्रम शामिल हैं। इसके अलावा 4.08 लाख परिवार आजीविका के लिए कचरा बीनने पर निर्भर हैं जबकि 6.68 लाख परिवार भीख और दान पर निर्भर हैं।
जेटली ने कहा, ‘यह दस्तावेज धर्म, समुदाय, जाति समूह, आर्थिक समूह विशेष के संबंध में विभिन्न किस्म के ब्योरे देता है और हमें यह आकलन का मौका देता है कि भारत में परिवारों ने कितनी प्रगति की है।’ उन्होंने कहा, ‘कौन लोग हैं जो जीवन शैली के लिहाज से ऊपर उठे हैं और भागौलिक क्षेत्र और सामजिक समूहों के लिहाज से किन लोगों को भावी योजना में ध्यान में रखना है।’ सिंह ने कहा, ‘यह आंकड़ा विभिन्न कार्यक्रमों में साक्ष्य आधारित चयन, प्राथमिकता और लाभार्थियों के लक्ष्य करने का मौका प्रदान करता है।’ ग्रामीण विकास मंत्री ने अपने सभी कार्यक्रमों में इस सामाजिक-आर्थिक जाति आधारित आंकड़ों के उपयोग का फैसला किया है।
उन्होंने कहा, ‘ये आंकड़े सबके लिए आवास, शिक्षा एवं कौशल संबंधी पहलों, मनरेगा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, विशिष्ट रूप से समर्थ लोगों के लिए पहलों, महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों के लिए हस्तक्षेप और वंचितों के साक्ष्य के आधार पर परिवारों-व्यक्तियों की पात्रता तय करने के संबंध में इसका अर्थपूर्ण उपयोग किया जाएगा।’ उन्होंने कहा कि इससे अंत्योदय मिशन का रास्ता साफ होगा ताकि ग्राम पंचायत गरीबी उन्मूलन योजना के जरिए परिवारों की गरीबी घटाई जा सके।
मंत्री ने कहा कि मूल विचार यह है कि इसे ग्राम पंचायत के साथ मिलकर वंचित परिवारों को प्राथमिकता देते हुए सम्मिलित एकीकृत गरीबी उन्मूलन योजना का कार्यान्वयन किया जा सके।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
जनगणना, सामाजिक-आर्थिक जनगणना, जातीय जनगणना, अरुण जेटली, नरेंद्र मोदी सरकार, Census, Socio-Economic Census, Caste Census, Arun Jaitley, Narendra Modi Government