(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा फ्रांस सरकार के साथ हुए 8.7 अरब अमेरिकी डॉलर या 58,000 करोड़ रुपए के राफेल विमान सौदे की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करने का वादा करने के एक हफ्ते बाद यह पता चल पा रहा है कि सरकार ये आंकड़े अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं कर पाई है.
NDTV को पता चला है कि 36 विमानों की खरीद के लिए सरकारों के बीच हुए इस सौदे में एक कॉन्फिडेन्शियलिटी क्लॉज़ है, जिसका अर्थ यह है कि भारत या फ्रांस किसी असहमति की सूरत में कोर्ट के आदेश के बिना किसी भी जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं. विपक्ष पार्टी कांग्रेस ने मोदी सरकार पर यह आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार के वक्त 2012 में तय किए गए इस सौदे को वर्तमान सरकार ने फ्रांस को 3 गुणा ज्यादा की राशि देकर यह सौदा मंजूर किया है. जबकि इस आरोपों के एनडीए सरकार ने खारिज कर दिया.
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कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया था कि एक कारोबारी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री ने पूरा सौदा ही बदल डाला. हालांकि सीतारमण ने पहले ही बता चुकी हैं कि 36 राफेल विमानों के लिए अंतिम समझौते पर सीसीएस की मंजूरी के बाद हस्ताक्षर किए गए. मंत्री ने कहा कि 2014 में जब भाजपा सरकार सत्ता में आई तब इस प्रस्ताव पर उसने सक्रियता दिखाई. अप्रैल 2015 में पीएम मोदी इस मसले पर बातचीत के लिए पेरिस गये और इसके लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया.
पढ़ें: रक्षा मंत्री से बोले राहुल गांधी, शर्मनाक है कि आपके बॉस आपको चुप करा रहे हैं
बता दें कि 2002 में भारतीय वायुसेना को मजबूती प्रदान करने के लिए ये फैसला लिया गया था. राफेल विमान खरीदना उस वक्त की सरकार की प्राथमिकता में शामिल थी. इसके लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ने वार्ता शुरू की थी. 2004 में यूपीए सरकार ने 126 राफेल विमान को खरीदने का फैसला लिया. मगर अगले दस सालों तक इस खरीद प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिली.
सितंबर 2016 में रक्षा मंत्री के मौजूदगी में 36 राफेल विमानों के लिये अंतिम करार पर दस्तखत किये गये. इस करार पर फ्रांस के डीजीए और भारत के एयर स्टाफ के भारतीय उप प्रमुख ने दस्तखत किये थे. हालांकि, मंत्री ने इस बारे में नहीं बताया कि हस्ताक्षर कहां किये गये. इतना ही नहीं, इस सौदे में सरकार ने कितने पैसे खर्च किये, इसकी अभी जानकारी नहीं दी गई है.
VIDEO : मात ही मिलेगी राफेल से टकराने पर
सूत्रों का कहना है कि सरकार से सरकार के सौदों में प्रत्येक आइटम पर प्रत्येक का मूल्य अलग-अलग नहीं किया जा सकता है. भारतीय वायुसेना के प्रशिक्षण कमांड के एक अधिकारी, कमांडिंग एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) बी के पांडे कहते हैं, 'सौदा में हर घटक के सभी विवरणों को संबोधित करने के लिए व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है. यह इसलिए क्योंकि घटकों का मूल्य विमान के जीवन चक्र में परिवर्तन करने के लिए बाध्य है.
एनडीटीवी ने राफेल अनुबंध के तत्वों से प्राप्त व्यापक अनुमानों की रिपोर्ट न करने का चयन किया है, जब तक कि रक्षा मंत्रालय द्वारा रिकॉर्ड की पुष्टि न हो
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
NDTV को पता चला है कि 36 विमानों की खरीद के लिए सरकारों के बीच हुए इस सौदे में एक कॉन्फिडेन्शियलिटी क्लॉज़ है, जिसका अर्थ यह है कि भारत या फ्रांस किसी असहमति की सूरत में कोर्ट के आदेश के बिना किसी भी जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं. विपक्ष पार्टी कांग्रेस ने मोदी सरकार पर यह आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार के वक्त 2012 में तय किए गए इस सौदे को वर्तमान सरकार ने फ्रांस को 3 गुणा ज्यादा की राशि देकर यह सौदा मंजूर किया है. जबकि इस आरोपों के एनडीए सरकार ने खारिज कर दिया.
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कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया था कि एक कारोबारी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री ने पूरा सौदा ही बदल डाला. हालांकि सीतारमण ने पहले ही बता चुकी हैं कि 36 राफेल विमानों के लिए अंतिम समझौते पर सीसीएस की मंजूरी के बाद हस्ताक्षर किए गए. मंत्री ने कहा कि 2014 में जब भाजपा सरकार सत्ता में आई तब इस प्रस्ताव पर उसने सक्रियता दिखाई. अप्रैल 2015 में पीएम मोदी इस मसले पर बातचीत के लिए पेरिस गये और इसके लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया.
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बता दें कि 2002 में भारतीय वायुसेना को मजबूती प्रदान करने के लिए ये फैसला लिया गया था. राफेल विमान खरीदना उस वक्त की सरकार की प्राथमिकता में शामिल थी. इसके लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ने वार्ता शुरू की थी. 2004 में यूपीए सरकार ने 126 राफेल विमान को खरीदने का फैसला लिया. मगर अगले दस सालों तक इस खरीद प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिली.
सितंबर 2016 में रक्षा मंत्री के मौजूदगी में 36 राफेल विमानों के लिये अंतिम करार पर दस्तखत किये गये. इस करार पर फ्रांस के डीजीए और भारत के एयर स्टाफ के भारतीय उप प्रमुख ने दस्तखत किये थे. हालांकि, मंत्री ने इस बारे में नहीं बताया कि हस्ताक्षर कहां किये गये. इतना ही नहीं, इस सौदे में सरकार ने कितने पैसे खर्च किये, इसकी अभी जानकारी नहीं दी गई है.
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सूत्रों का कहना है कि सरकार से सरकार के सौदों में प्रत्येक आइटम पर प्रत्येक का मूल्य अलग-अलग नहीं किया जा सकता है. भारतीय वायुसेना के प्रशिक्षण कमांड के एक अधिकारी, कमांडिंग एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) बी के पांडे कहते हैं, 'सौदा में हर घटक के सभी विवरणों को संबोधित करने के लिए व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है. यह इसलिए क्योंकि घटकों का मूल्य विमान के जीवन चक्र में परिवर्तन करने के लिए बाध्य है.
एनडीटीवी ने राफेल अनुबंध के तत्वों से प्राप्त व्यापक अनुमानों की रिपोर्ट न करने का चयन किया है, जब तक कि रक्षा मंत्रालय द्वारा रिकॉर्ड की पुष्टि न हो
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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