प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
भूमि अधिग्रहण कानून पर लगातार जारी विरोध के बीच सरकार के यू-टर्न लेने के साफ संकेत देते हुए संसद की एक समिति ने मोदी सरकार के विधेयक में सहमति के प्रावधान पर संशोधन समेत बदलावों को मंजूरी दे दी।
संसद की संयुक्त समिति में संशोधन पेश करके बीजेपी सदस्यों ने सरकार के रुख में संभावित बदलाव का रास्ता साफ किया। यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून के कुछ प्रावधानों को बहाल करने के लिए संशोधन प्रस्तावित हैं, जिनमें सहमति का प्रावधान और सामाजिक प्रभाव आकलन शामिल हैं। मोदी सरकार ने पिछले साल दिसंबर में इनमें संशोधन किया था और तीन बार अध्यादेश के जरिये इसे लागू किया।
सूत्रों के अनुसार 30 सदस्यीय समिति में 11 बीजेपी सदस्यों ने 'निजी निकाय' (प्राइवेट एंटिटी) शब्द को वापस लेने के लिए संशोधन पेश किया। 2013 के कानून में यह शब्द 'निजी कंपनी' (प्राइवेट कंपनी) था।
समिति में इनके अलावा कांग्रेस के पांच, तृणमूल कांग्रेस के दो, जनता दल यू, सपा, बीजद, शिवसेना, एनसीपी, बसपा, टीआरएस, एलजेपी, सीपीएम और टीडीपी के एक-एक सदस्य हैं।
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओब्रायन और कल्याण बनर्जी ने बैठक से बाहर आकर कहा कि आज सुबह ही संशोधन बांटे गए और उनके पास अध्ययन के लिए समय नहीं था।
सरकार बिहार में अगले कुछ महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रणनीति में बदलाव करती हुई लगती है। सरकार को लगता है कि रुख नहीं बदला तो उसे 'किसान-विरोधी' के तौर पर देखा जा सकता है, जिस तरह का आरोप विपक्ष बीजेपी के खिलाफ लगाता आ रहा है।
यूपीए के शासनकाल में बने 2013 के कानून को ही प्रभाव में लाने की पक्षधर कांग्रेस के अलावा वामदल, सपा, जदयू, बसपा, बीजद आदि दल भी संशोधनों का विरोध करते आ रहे हैं।
इस विधेयक पर एनडीए में भी मतभेद उभरकर आए, जब बीजेपी की सहयोगी शिवसेना, अकाली दल और स्वाभिमान सेतकारी संगठन ने विधेयक के कुछ प्रावधानों का विरोध किया। इन दलों ने सहमति और सामाजिक प्रभाव आकलन के प्रावधानों को बहाल करने की मांग की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ और अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने भी एनडीए सरकार के विधेयक का विरोध किया और सहमति तथा सामाजिक प्रभाव आकलन के प्रावधान को फिर से शामिल करने की मांग की। समिति में 672 लोगों ने अपना पक्ष रखा, जिनमें से 670 ने एनडीए सरकार के संशोधनों का विरोध किया।
इस विरोध के मद्देनजर बीजेपी इस मामले में अपने रुख में बदलाव ला रही है और संभावना है कि बीजेपी सांसद एस एस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली समिति सात अगस्त तक आम-सहमति से रिपोर्ट जारी कर देगी।
सत्तारूढ़ बीजेपी के सदस्यों द्वारा लाए गए संशोधनों से पूरी तरह सहमति जताने के बाद समिति में शामिल कांग्रेस के एक सदस्य ने कहा, 'यह 2013 के हमारे कानून की तरह अच्छा है।'
संसद की संयुक्त समिति में संशोधन पेश करके बीजेपी सदस्यों ने सरकार के रुख में संभावित बदलाव का रास्ता साफ किया। यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून के कुछ प्रावधानों को बहाल करने के लिए संशोधन प्रस्तावित हैं, जिनमें सहमति का प्रावधान और सामाजिक प्रभाव आकलन शामिल हैं। मोदी सरकार ने पिछले साल दिसंबर में इनमें संशोधन किया था और तीन बार अध्यादेश के जरिये इसे लागू किया।
सूत्रों के अनुसार 30 सदस्यीय समिति में 11 बीजेपी सदस्यों ने 'निजी निकाय' (प्राइवेट एंटिटी) शब्द को वापस लेने के लिए संशोधन पेश किया। 2013 के कानून में यह शब्द 'निजी कंपनी' (प्राइवेट कंपनी) था।
समिति में इनके अलावा कांग्रेस के पांच, तृणमूल कांग्रेस के दो, जनता दल यू, सपा, बीजद, शिवसेना, एनसीपी, बसपा, टीआरएस, एलजेपी, सीपीएम और टीडीपी के एक-एक सदस्य हैं।
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओब्रायन और कल्याण बनर्जी ने बैठक से बाहर आकर कहा कि आज सुबह ही संशोधन बांटे गए और उनके पास अध्ययन के लिए समय नहीं था।
सरकार बिहार में अगले कुछ महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रणनीति में बदलाव करती हुई लगती है। सरकार को लगता है कि रुख नहीं बदला तो उसे 'किसान-विरोधी' के तौर पर देखा जा सकता है, जिस तरह का आरोप विपक्ष बीजेपी के खिलाफ लगाता आ रहा है।
यूपीए के शासनकाल में बने 2013 के कानून को ही प्रभाव में लाने की पक्षधर कांग्रेस के अलावा वामदल, सपा, जदयू, बसपा, बीजद आदि दल भी संशोधनों का विरोध करते आ रहे हैं।
इस विधेयक पर एनडीए में भी मतभेद उभरकर आए, जब बीजेपी की सहयोगी शिवसेना, अकाली दल और स्वाभिमान सेतकारी संगठन ने विधेयक के कुछ प्रावधानों का विरोध किया। इन दलों ने सहमति और सामाजिक प्रभाव आकलन के प्रावधानों को बहाल करने की मांग की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ और अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने भी एनडीए सरकार के विधेयक का विरोध किया और सहमति तथा सामाजिक प्रभाव आकलन के प्रावधान को फिर से शामिल करने की मांग की। समिति में 672 लोगों ने अपना पक्ष रखा, जिनमें से 670 ने एनडीए सरकार के संशोधनों का विरोध किया।
इस विरोध के मद्देनजर बीजेपी इस मामले में अपने रुख में बदलाव ला रही है और संभावना है कि बीजेपी सांसद एस एस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली समिति सात अगस्त तक आम-सहमति से रिपोर्ट जारी कर देगी।
सत्तारूढ़ बीजेपी के सदस्यों द्वारा लाए गए संशोधनों से पूरी तरह सहमति जताने के बाद समिति में शामिल कांग्रेस के एक सदस्य ने कहा, 'यह 2013 के हमारे कानून की तरह अच्छा है।'
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