गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भारी संख्या में इन्सेफेलाइटिस से ग्रसित बच्चे इलाज के लिए आते हैं.
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में पांच दिनों के भीतर हुई 60 से अधिक बच्चों की दर्दनाक मौत की खबर देश-दुनिया की मीडिया में सुर्खियां बनी हुई है. चंद घंटों में इतने सारे बच्चों की मौत के बाद सरकार से लेकर प्रशासन कटघरे में हैं. सरकारी अमला अपनी गलती छुपाने और खुद की गर्दन बचाने के प्रयास में हैं. इतनी बड़ी हृदय विदारक घटना के बाद सोशल मीडिया पर पूरे देश से लोग सवाल पूछ रहे हैं. इन्हीं में एक सवाल यह है कि आखिर पूर्वांचल का यह सबसे बड़ा अस्पताल आखिर किनके नाम पर बना है? यह सवाल का जवाब ढूंढना इसलिए भी जरूरी हो गया है कि दो दिन बाद हम आजादी की 70वीं वर्षगांठ मनाएंगे. हमारे देश में एक परंपरा रही है कि हम जनहित के लिए बनाई गई जगहों का नाम महापुरुषों के नाम पर रखते हैं. ताकि लोग उस जगह पर लाभ लेने जाएं तो उस महापुरुष के बताए आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा ले सकें. गोरखपुर के जिस सरकारी अस्पताल में शासन-प्रशासन की लापरवाही से इतनी संख्या में मासूमों की जान गई है वह पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले बाबा राघवदास के नाम पर है.
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महाराष्ट्र के पुणे में 12 दिसंबर 1896 को जन्मे बाबा राघवदास जीवन भर समाज के दबे-कुचले और असहाय लोगों की मदद करते रहे. पुणे के मशहूर कारोबारी शेशप्पा ने बेटे राघवदास को हर सुख-सुविधा दी, लेकिन जीवन की एक घटना से उनका झुकाव समाज सेवा की ओर हो गया.
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राघवदास युवा अवस्था की दहलीज पर पहुंचे थे कि प्लेग जैसी महामारी की चपेट में आकर पूरा परिवार काल के गाल में समा गया.
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साल 1913 में महज 17 साल की आयु में राघवदास गुरु की तलाश में उत्तर प्रदेश आ गए. यहां प्रयाग, काशी आदि तीर्थों में विचरण करते हुए गाजीपुर पहुंचे, यहां उनकी भेंट मौनीबाबा नामक एक संत से हुई.
मौनीबाबा ने राघवेन्द को हिन्दी सिखाई। गाजीपुर में कुछ समय बिताने के बाद राघवदास देवरिया के बरहज पहुंचे और वहां संत योगीराज अनन्त महाप्रभु के शिष्य बन गए.
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साल 1921 में महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर बाबा राघवदास स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए. वे जनसभाएं कर लोगों को जागरूक करने के अलावा समाज में जनहित के कार्य में जुटे रहे. वे दलित और गंदी बस्ती में जाते और लोगों को स्वच्छता के प्रति प्रेरित करते. बीमार लोगों का उपचार करवाते.
वीडियो: गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन?
आजाद भारत में बाबा राघवदास एक बार विधायक भी बने. साल 1958 में इस महापुरुष का देहांत हो गया. बाबा राघवदास ने जीवन भर समाज के लिए सेवा की, इसलिए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए गोरखपुर में उन्हीं के नाम पर सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल बनाया गया. अब उन्हीं के नाम पर बने अस्पताल में बच्चे सरकारी मशीनरी की लापरवाही के चलते दम तोड़ रहे हैं.
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महाराष्ट्र के पुणे में 12 दिसंबर 1896 को जन्मे बाबा राघवदास जीवन भर समाज के दबे-कुचले और असहाय लोगों की मदद करते रहे. पुणे के मशहूर कारोबारी शेशप्पा ने बेटे राघवदास को हर सुख-सुविधा दी, लेकिन जीवन की एक घटना से उनका झुकाव समाज सेवा की ओर हो गया.
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राघवदास युवा अवस्था की दहलीज पर पहुंचे थे कि प्लेग जैसी महामारी की चपेट में आकर पूरा परिवार काल के गाल में समा गया.
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साल 1913 में महज 17 साल की आयु में राघवदास गुरु की तलाश में उत्तर प्रदेश आ गए. यहां प्रयाग, काशी आदि तीर्थों में विचरण करते हुए गाजीपुर पहुंचे, यहां उनकी भेंट मौनीबाबा नामक एक संत से हुई.
मौनीबाबा ने राघवेन्द को हिन्दी सिखाई। गाजीपुर में कुछ समय बिताने के बाद राघवदास देवरिया के बरहज पहुंचे और वहां संत योगीराज अनन्त महाप्रभु के शिष्य बन गए.
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साल 1921 में महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर बाबा राघवदास स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए. वे जनसभाएं कर लोगों को जागरूक करने के अलावा समाज में जनहित के कार्य में जुटे रहे. वे दलित और गंदी बस्ती में जाते और लोगों को स्वच्छता के प्रति प्रेरित करते. बीमार लोगों का उपचार करवाते.
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आजाद भारत में बाबा राघवदास एक बार विधायक भी बने. साल 1958 में इस महापुरुष का देहांत हो गया. बाबा राघवदास ने जीवन भर समाज के लिए सेवा की, इसलिए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए गोरखपुर में उन्हीं के नाम पर सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल बनाया गया. अब उन्हीं के नाम पर बने अस्पताल में बच्चे सरकारी मशीनरी की लापरवाही के चलते दम तोड़ रहे हैं.
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