गौहाटी हाईकोर्ट (Gauhati High Court) ने कहा है कि रेप (Rape) किसी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Right to life and personal liberty) के अधिकार का उल्लंघन है. हाईकोर्ट ने पीडि़ता के बयान पर भरोसा करते हुए निचली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है, और आरोपी नसीरुद्दीन अली को नवंबर, 2009 में 20 वर्षीय महिला से रेप का दोषी पाया है. जस्टिस रुमी कुमारी फुकन की ओर से पारित आदेश में कोर्ट ने कहा कि रेप पीडि़ता के बयान को घटना की सही विवरण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, यदि रिकॉर्ड में आए अन्य सबूत भी इसकी पुष्टि करते हैं.
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न्यायाधीश ने कहा, "अदालतें समझती हैं कि रेप संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पीड़िता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और पीड़िता को घायल गवाह की तुलना में ज्यादा अहम समझा जाए. गौरतलब है कि 11 साल पहले 26 नवंबर की रात को तिनसुकिया जिले के डिगबोई में एक स्वीमिंग पूल के बाथरूम में 20 साल की महिला के साथ रेप किया गया था. यह वारदात तब हुई थी जब महिला काम करके घर वापस लौट रही थी. महिला डिगबोई में एक निजी अस्पताल में काम करती थी. मामले में डिगबोई पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया गया था और पुलिस ने आरोपी नसीरुद्दीन अली को गिरफ्तार किया गया था.
ट्रायल कोर्ट ने नसीर को दोषी मानते हुए उसे 9 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई थी. आदेश को नसीरुद्दीन अली के वकील ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. वकील ने दलील दी थी कि महिला ने सुनवाई के दौरान बार-बार बयान बदले हैं. राज्य सरकार की ओर से पेश होते हुए महिला के वकील ने इस अपील के खिलाफ दलील दी थी कि मेडिकल जांच के अनिर्णायक(inconclusive) होने के कारण महिला के बयान को सबूत के तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता. महिला के वकील ने कहा कि यह बात स्थापित हो चुकी है कि आरोपी उस स्थान पर मौजूद था जहां अपराध हुआ है.
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