यह ख़बर 24 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

माली का बेटा बना सेंट स्टीफेंस छात्र संघ का अध्यक्ष

नई दिल्ली:

21 अगस्त को सेंट स्टीफेंस के ओपेन कोर्ट के नाम से होने वाली प्रेसीडेंशियल स्पीच में जब 22 साल के सांवले रंग और दरम्याने कद के एक लड़के ने एक हज़ार स्टूडेंटस के सामने हिंदी में कहा कि मेरा एजेंडा वहीं है, जो आप की ज़रूरत है.. तो तालियों की गड़गड़ाहट देर तक गूंजती रही।

यह लड़का रोहित कुमार यादव था, जो सेंट स्टीफेंस के इतिहास में पहली बार हिन्दी में भाषण और चुनाव प्रचार करके छात्रसंघ का अध्यक्ष बन गया। रोहित कुमार यादव बीए तीसरे साल का छात्र है। यह चुनाव कई मायनों में काफी प्रतिष्ठित माना जाता है, क्योंकि शशि थरूर भी सेंट स्टीफेंस कॉलेज के प्रेसीडेंट रह चुके हैं और सलमान खुर्शीद ये चुनाव हार गए थे।
 
सेंट स्टीफेंस दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है, लेकिन इस कॉलेज का चुनाव यूनिवर्सिटी के चुनाव से पहले होता है।

गरीब का लड़का कैसे पहुंचा सेंट स्टीफेंस?

हिन्दी बोलने वाले इस शर्मीले लड़के को कैसे इलाहाबाद से सेंट स्टीफेंस जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला मिल गया। ये कई लोगों के सवाल हो सकते है, क्योंकि दिल्ली के टॉपर स्टूडेंट सार्थक अग्रवाल तक का नाम इस कॉलेज की वेटिंग लिस्ट में था।

रोहित ने इलाहाबाद के स्वामी विवेकानंद इंटर कॉलेज से 12 वीं पास करके उसने सेंट स्टीफेंस में दाखिला लिया। इसी कॉलेज में उसके पिता हरीश माली का काम करते हैं। इसी के चलते उसके 65 फीसदी नंबर होने के बावजूद उसे यहां एडमीशन मिला। सेंट स्टीफेंस कॉलेज अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों को प्राथमिकता देता है।

कैसे टूटा सेंट स्टीफेंस का क्लॉस बैरियर?

सेंट स्टीफेंस कॉलेज के बारे में आमतौर पर धारणा है कि यहां अंग्रेजियत और इलीटिसिज्म बहुत ज्यादा हावी है। इस कॉलेज ने राष्ट्रपति रह चुके फखरुद्दीन अली अहमद, कपिल सिब्बल, चंदन मित्रा, पुलक चटर्जी जैसे कई ताकतवर नेता और नौकरशाह दिए हैं। यहां दाखिले के लिए 95 परसेंट से ज्यादा नंबर के साथ इंटरव्यू में पास होना ज़रूरी है। लेकिन हाल के दिनों में सुल्तानपुर के सेंट्रल स्कूल से पढ़े वैभव, मुंबई की श्रेया सिन्हा, लखनऊ की फालगुनी तिवारी और अशोक वर्द्धन जैसे स्टूडेंटस ने कॉलेज की इस छवि या धारणा को तोड़ने की ठानी।

रोहित यादव के पीछे बीए थर्ड ईयर की यही टीम है, जिसने सेंट स्टीफेंस कॉलेज के तमाम स्टूडेंट के जेहन को बदला। खुद वैभव मानते हैं कि रोहित के खिलाफ लड़ रहे कुछ लोगों ने उसके हिन्दी बोलने और गरीब परिवार को मुद्दा बनाया। लेकिन उसके काम को देखते हुए कॉलेज ने इस बदलाव की बयार के साथ बहना मंजूर किया। खुद श्रेया सिन्हा कहती हैं कि कॉलेज के प्रिंसीपल थंपू सर ने भी रोहित का आत्म विश्वास बढ़ाया।

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रोहित कुमार यादव जैसे छात्र का अध्यक्ष बनना ये भरोसा भी दिलाता है कि नई पीढ़ी जात−पात, अमीरी गरीबी के फर्क को फेंक कर समानता के आधार पर तरक्की करने की हिमायती है।