विदेश सचिव एस. जयशंकर (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
चीन और भारत के बीच डोकलाम इलाके को लेकर तनाव के बीच विदेश सचिव एस. जयशंकर ने कहा है कि चीन और भारत के रिश्ते को काले-सफेद की परिभाषा में नहीं देखा जा सकता.
सिंगापुर में 'भारत-आसियान एवं बदलती भूराजनीति' विषय पर एक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि लगभग एक ही वक्त में दोनों देशों के उदय से जो उलझी हुई स्थिति उत्पन्न हुई है, वो हम सब जानते हैं. दोनों देशों के पुराने इतिहास में कुछ अच्छी चीजें हैं, पास के इतिहास में कुछ मुश्किलें. भारत-चीन रिश्ते के कई पहलू हैं, सिर्फ अच्छा या सिर्फ बुरा नहीं. ना सिर्फ भारत और चीन के रिश्ते एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ASEAN और पूरी दुनिया के लिए अहम हैं.
इसका ये मतलब नहीं कि पुरानी समस्याएं सुलझा ली गई हैं और नई समस्याएं सामने नहीं आएंगी. चीन के साथ भारत का व्यापार चीन के पक्ष में बहुत ज्यादा झुका हुआ है, क्योंकि चीन के बाज़ार तक पहुंचने के रास्ते में कई रोड़े हैं. आतंकवाद, परमाणु उर्जा तक पहुंच, कनेक्टिविटी जैसे मामलों पर दोनों देशों में मतभेद हैं, जो अब ज्यादा सामने आ रहे हैं. लेकिन सच ये है कि दोनों देशों के रिश्तों के कई पहलू हैं.
पिछले महीने जब दोनों देशों के नेता अस्ताना में मिले थे, तो दो मुख्य बिंदुओं पर सहमति हुई -
1. वैश्विक अनिश्चितता के दौर में दोनों देशों के रिश्ते स्थिरता के बिंदु हैं, और 2. इस रिश्ते में मतभेदों को विवाद नहीं बनने देंगे. ये सहमति उस रणनीतिक परिपक्वता पर ज़ोर देता है जिसके ज़रिए दोनों देश एक-दूसरे की तरफ सहयोग के लिए बढ़ें.
इससे पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों के नेताओं की कोई द्विपक्षीय मलाकात जर्मनी के हैम्बर्ग में नहीं हुई. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात हुई थी और भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक कई मुद्दों पर बात भी हुई.
सिंगापुर में 'भारत-आसियान एवं बदलती भूराजनीति' विषय पर एक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि लगभग एक ही वक्त में दोनों देशों के उदय से जो उलझी हुई स्थिति उत्पन्न हुई है, वो हम सब जानते हैं. दोनों देशों के पुराने इतिहास में कुछ अच्छी चीजें हैं, पास के इतिहास में कुछ मुश्किलें. भारत-चीन रिश्ते के कई पहलू हैं, सिर्फ अच्छा या सिर्फ बुरा नहीं. ना सिर्फ भारत और चीन के रिश्ते एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ASEAN और पूरी दुनिया के लिए अहम हैं.
इसका ये मतलब नहीं कि पुरानी समस्याएं सुलझा ली गई हैं और नई समस्याएं सामने नहीं आएंगी. चीन के साथ भारत का व्यापार चीन के पक्ष में बहुत ज्यादा झुका हुआ है, क्योंकि चीन के बाज़ार तक पहुंचने के रास्ते में कई रोड़े हैं. आतंकवाद, परमाणु उर्जा तक पहुंच, कनेक्टिविटी जैसे मामलों पर दोनों देशों में मतभेद हैं, जो अब ज्यादा सामने आ रहे हैं. लेकिन सच ये है कि दोनों देशों के रिश्तों के कई पहलू हैं.
पिछले महीने जब दोनों देशों के नेता अस्ताना में मिले थे, तो दो मुख्य बिंदुओं पर सहमति हुई -
1. वैश्विक अनिश्चितता के दौर में दोनों देशों के रिश्ते स्थिरता के बिंदु हैं, और 2. इस रिश्ते में मतभेदों को विवाद नहीं बनने देंगे. ये सहमति उस रणनीतिक परिपक्वता पर ज़ोर देता है जिसके ज़रिए दोनों देश एक-दूसरे की तरफ सहयोग के लिए बढ़ें.
इससे पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों के नेताओं की कोई द्विपक्षीय मलाकात जर्मनी के हैम्बर्ग में नहीं हुई. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात हुई थी और भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक कई मुद्दों पर बात भी हुई.
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