तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक बड़ी शिकायत है। करुणानिधि ने प्रधानमंत्री पर हिन्दी भाषा के प्रयोग पर अनुचित रूप से ज्यादा जोर देने का आरोप लगाया है।
89-वर्षीय करुणानिधि ने गुरुवार को चेन्नई में कहा कि प्रधानमंत्री को हिन्दी को बढ़ावा देने की बजाय विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
करुणानिधि का यह बयान केंद्रीय गृह मंत्रालय के हाल में दिए उस निर्देश के विरोध में आया है, जिसमें कहा गया है कि सरकारी विभागों और अफसरों को सोशल मीडिया के आधिकारिक एकाउंट्स पर अनिवार्य रूप से हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए।
करुणानिधि ने कहा कि इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है कि यह किसी की मर्जी के बगैर हिन्दी को थोपने की शुरुआत है। यह गैर-हिन्दी भाषी लोगों के साथ दोयम दर्जे के नागरिक जैसा बर्ताव करने की कोशिश है। करुणानिधि ने कहा, भाषाई युद्धक्षेत्र अभी सूखे नहीं हैं... हिन्दी विरोधी प्रदर्शन इतिहास में दर्ज हैं। करुणानिधि की पार्टी डीएमके हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की 39 सीटों में से एक भी सीट नहीं जीत सकी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1965 में हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने की पहल के खिलाफ तमिलनाडु में छात्रों की अगुवाई में काफी हिंसक प्रदर्शन हुए थे। शांति तभी बहाल हो सकी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने घोषणा की कि गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि हिन्दी विरोधी आंदोलन में शीर्ष भूमिका निभाने वाली डीएमके को राज्य में 1967 में हुए विधानसभा चुनावों में पहली बार बड़ी कामयाबी हासिल हुई।
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