श्रीनगर की डल झील (फाइल फोटो)
देहरादून:
उत्तराखंड की टिहरी झील की सैर के लिए आने वाले सैलानियों को अब जम्मू-कश्मीर की डल झील में चलने वाले 'शिकारों' की तर्ज पर 'तैरती कुटिया' में बैठने का लुत्फ उठाने का मौका मिलेगा।
उत्तराखंड के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री दिनेश धनै ने कहा कि इससे टिहरी झील और इसके आसपास के इलाकों में पर्यटन गतिविधियों को एक नया आयाम मिलेगा। टिहरी झील 42 वर्ग किलोमीटर में फैली है जो डल झील से लगभग दोगुनी है।
शुरुआत में झील में 10 तैरती कुटिया के साथ शुरुआत की जाएगी और पर्यटकों का रुख देखने के बाद धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी। धनै ने कहा कि डल झील के मशहूर शिकारों की तर्ज पर हर तैरती कुटिया में 10 फुट चौड़ाई और 12 फुट लंबाई का एक कमरा, इससे सटा एक शौचालय और एक छोटी सी बालकनी होगी।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री ने कहा कि भविष्य में और कमरे बनाने के लिए कुटियों की डिजाइन में सुधार किया जाएगा। मंत्री ने कहा कि तैरती कुटिया पूरी तरह पर्यावरण के अनुरूप होगी। कचरा झील में नहीं गिराया जाएंगा, बल्कि इसे एक अलग चैंबर में डाला जाएगा और झील से दूर जाकर इसका निपटान किया जाएगा।
मंत्री ने कहा कि मुंबई की एक कंपनी तैरती कुटियों पर काम शुरू कर चुकी है और झील में इसकी शुरुआत करने में कम से कम आठ महीने का वक्त लगेगा। हर तैरती कुटिया पर करीब 40 लाख रुपये की लागत आएगी। पूरी परियोजना की देखरेख झील विकास प्राधिकरण करेगा।
उत्तराखंड के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री दिनेश धनै ने कहा कि इससे टिहरी झील और इसके आसपास के इलाकों में पर्यटन गतिविधियों को एक नया आयाम मिलेगा। टिहरी झील 42 वर्ग किलोमीटर में फैली है जो डल झील से लगभग दोगुनी है।
शुरुआत में झील में 10 तैरती कुटिया के साथ शुरुआत की जाएगी और पर्यटकों का रुख देखने के बाद धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी। धनै ने कहा कि डल झील के मशहूर शिकारों की तर्ज पर हर तैरती कुटिया में 10 फुट चौड़ाई और 12 फुट लंबाई का एक कमरा, इससे सटा एक शौचालय और एक छोटी सी बालकनी होगी।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री ने कहा कि भविष्य में और कमरे बनाने के लिए कुटियों की डिजाइन में सुधार किया जाएगा। मंत्री ने कहा कि तैरती कुटिया पूरी तरह पर्यावरण के अनुरूप होगी। कचरा झील में नहीं गिराया जाएंगा, बल्कि इसे एक अलग चैंबर में डाला जाएगा और झील से दूर जाकर इसका निपटान किया जाएगा।
मंत्री ने कहा कि मुंबई की एक कंपनी तैरती कुटियों पर काम शुरू कर चुकी है और झील में इसकी शुरुआत करने में कम से कम आठ महीने का वक्त लगेगा। हर तैरती कुटिया पर करीब 40 लाख रुपये की लागत आएगी। पूरी परियोजना की देखरेख झील विकास प्राधिकरण करेगा।
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