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कश्मीर की डल झील में है दुनिया का अकेला तैरता डाकघर, जानिए इसकी कहानी

जम्मू और कश्मीर के अधीन एक सामंती राज्य पुंछ की अपनी डाक प्रणाली थी और 1894 तक इस क्षेत्र द्वारा अलग-अलग डाक टिकटों का इस्तेमाल किया जाता था. 1866 से 1878 तक जम्मू-कश्मीर के डाक टिकट काले, नीले, लाल, हरे और पीले पानी के रंगों में हाथ से छापे जाते थे.

ब्रिटिश शासन काल से ही जम्मू-कश्मीर की डल झील में यह पोस्ट ऑफिस है.

श्रीनगर:

क्या आप जानते हैं कि श्रीनगर दुनिया भर में इकलौता ऐसा शहर है जहां डाकघर तैर रहा है वो भी डल झील में. दो सौ साल पुराना यह फ्लोटिंग पोस्ट ऑफिस ब्रिटिश काल में शुरू किया गया था और आज भी झील के किनारे रहने वाले लोगों को चिट्ठी और कूरियर पहुंचाता है. डाक की डिलीवरी शिकारा में यात्रा करते हुए एक डाकिया द्वारा की जाती है. दो कमरे के इस डाक घर में एक कमरे में अब संघरालय बना हुआ है जिसमें जम्मू-कश्मीर में डाक पुराने समय में कैसे भेजी जाटी थी उसका उल्लेख है. उस जमाने में जम्मू कश्मीर एक अलग रियासत थी जिसका अलग प्रधानमंत्री भी था.

1820 से ही जम्मू-कश्मीर में है ये डाकघर

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जो इतिहास संग्रहालय में दर्ज है उसके मुताबिक़ जम्मू और कश्मीर में डाक 1820 से ही मौजूद थी. इसे धावकों द्वारा ले जाया जाता था. 1866-77 में जम्मू और कश्मीर में संयुक्त और अलग-अलग दोनों तरह के डाक टिकट एक साथ जारी किए जाते थे. सभी डाक टिकट केवल स्थानीय लिपि में ही लिखे जाते थे. जम्मू और कश्मीर में अलग-अलग डाक टिकट जारी करना 1 नवंबर 1894 को बंद कर दिया गया था.

1894 तक अलग-अलग डाक टिकटों का होता था इस्तेमाल

जम्मू और कश्मीर के अधीन एक सामंती राज्य पुंछ की अपनी डाक प्रणाली थी और 1894 तक इस क्षेत्र द्वारा अलग-अलग डाक टिकटों का इस्तेमाल किया जाता था. 1866 से 1878 तक जम्मू और कश्मीर के डाक टिकट काले, नीले, लाल, हरे और पीले पानी के रंगों में हाथ से छापे जाते थे. ये सभी डाक टिकट जम्मू के मुद्रण संयंत्र में छापे जाते थे और कश्मीर में इस्तेमाल के लिए आपूर्ति समय-समय पर वहाँ भेजी जाती थी.

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फ्लोटिंग पोस्ट ऑफिस में मिलती हैं सब सुविधाएं

इस फ्लोटिंग पोस्ट ऑफिस में वो सभी सेवाएं प्रदान की जाती हैं जो आमतौर पर अन्य सभी डाकघरों में उपलब्ध होती हैं लेकिन इसे अलग इसीलिए माना जाता है क्योंकि जो डाक यहां से यानी फ्लोटिंग पीओ से भेजी जाती है उसकी अपनी विशेष मुहर होती है. ग़ुलाम नीलामी डार ने बताया, "इस डाकघर से गुजरने वाले सभी पत्रों पर विशेष मुहर लगी होती है. इसमें डल झील पर एक हाउसबोट को दर्शाया गया है. यह अपने आप में एक अलग एक्सपीरियंस है. डाक मिलने वाले को तुरंत पता चल जाएगा कि पत्र कहां से पोस्ट किया गया है". 

डल झील के आसपास रह रहे लोगों के लिए खास है ये डाकघर

वैसे ये डाक घर डल झील के आस-पास के इलाकों में रहने वाले कई स्थानीय लोगों के लिए कई अन्य उद्देश्यों की पूर्ति भी करता है. उनके लिए यह बैंक का काम करता है. यहां आप अपना बचत खाता भी खोल सकते हैं. जानकारी के मुताबिक़ यह महाराजा के समय से लेकर ब्रिटिश काल तक का 200 साल पुराना डाकघर है. इसे अंततः फ्लोटिंग डाकघर कहा गया और डाक भेजने की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

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पोस्ट मास्टर ने कही ये बात

पोस्ट मास्टर फारूक अहमद ने कहा, "वैसे यहां ज़्यादा पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, तो हमारे पास बात करने का भी समय नहीं होता. हजारों लोग इस डाकघर में तस्वीरें खिंचवाने आते हैं. वे यहां से विशेष कवर, पोस्टकार्ड और टिकट खरीद सकते हैं. डाकिया शिकारा किराए पर लेता है और हाउसबोट में चिट्ठियां पहुंचाता है. यह काम सालों से चल रहा है और अभी भी जारी है.'' मोहम्मद इस्माइल कई सालों से इंडिया पोस्ट में पोस्टमैन के तौर पर काम कर रहे हैं. वे झील के किनारे रहने वाले लोगों को हर रोज़ चिट्ठियां पहुंचाते हैं. 

मोहम्मद इस्माइल ने कही ये बात

मोहम्मद इस्माइल ने कहा, ''मैं दस सालों से डल झील में चिट्ठियां पहुंचा रहा हूं. झील पर ताज़ी हवा में सांस लेना मेरे स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है. मैं एक दिन में करीब 100-150 पत्र पहुंचाता हूं. झील के अंदर एक सीआरपीएफ कैंप भी है, उन्हें बहुत सारे पत्र मिलते हैं और मैं उन्हें पहुंचाता हूं. इन पत्रों को पहुंचाने में मुझे घंटों लग जाते हैं. मैं 11 बजे शुरू करता हूं और 5:30 बजे खत्म करता हूं.'' 

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सोशल मीडिया और इंटरनेट को लेकर स्थानीय लोगों के हैं ये विचार

उधर झील के किनारे रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि इंटरनेट और सोशल नेटवर्क ने पत्र लिखने और भेजने के काम को काफ़ी हद तक प्रभावित किया है. लेकिन कुछ लोग चिट्ठी लिखना अभी भी पसंद करते है कुछ और इसे मिस करते हैं क्योंकि पहले के समय में पत्र प्राप्त करना या भेजना भावनात्मक होता था. हाउसबोट के मालिक नूर मोहम्मद ने कहा, ''आज के जमाने में लोग चिट्ठी कम लिखते हैं. अब ईमेल और सोशल मीडिया का जमाना है. लेकिन अभी भी कुछ लोग भेजते है. वैसे ये उस जमाने का है जब चिट्ठी लिखना और भेजना एक चलन था. जब चिट्ठी आने की अलग ख़ुशी होती थी उसे खोल कर पढ़ना एक अलग एहसास होता था." शिकारा चलाने वाले और बैंस से पैसे निकलवाने "आए फारुक साबह ने कहा, ये सब लोग कश्मीर में होने वाले चुनाव को लेकर भी बहुत उत्साहित है. "दस साल बाद चुनाव हो रहे हैं. बहुत अच्छी बात है क्योंकि अब हमारे पास हमारी बात सुनने वाला तो कोई होगा."

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