1983 के क्रिकेट विश्व कप (1983 Cricket World Cup) में भारत की जीत को लेकर बनाई गई फिल्म 83 (Film 83) सिनेमाघरों के साथ-साथ लोगों के दिलों पर भी छा गई है. इस फिल्म में अपने पिता लाला अमरनाथ (Lala Amarnath) का किरदार निभा रहे जाने माने पूर्व क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ (Former Cricketer Mohinder Amarnath) और अमरनाथ का किरदार निभाने वाले साकिब सलीम (Saqib Saleem) से एनडीटीवी ने खास बातचीत की. इस दौरान दोनों ने फिल्म की शूटिंग को लेकर कई तरह की बातों पर चर्चा की. साथ ही बताया कि किन परेशानियों का उन्हें सामना करना पड़ा. फिल्म 83 में अपने पिता का किरदार निभाने वाले पूर्व क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ ने कहा कि ये मेरे लिए एक तरह की ऑनर था कि मैं अपना पिता का किरदार निभा सकूं. मैं बचपन में सुनता था कि वो कितने बहतरीन खिलाड़ी थे. लेकिन पिता के तौर पर आप अलग तरह से देखते हैं. इंडियन क्रिकेट में पहले स्टार मेरे पिता थे.
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उन्होंने बताया कि 1983 में मेरे जीवन में मैंने जो भी हासिल किया है, वो उनकी वजह से ही किया है. मेरे लिए इससे बड़ा अवार्ड क्या हो सकता है कि मैं अपने पिता का किरदार निभा सकूं. मैं मैच से पहले अपने पिता से बात किया करता था. तो मेरे पिता कहते थे कि तू अच्छे से खलना मेरी उम्र 10 साल कम हो जाएगी. वो जो दिल होता था उसे बोल देते थे. जब भी वो कुछ बोला करते थे तो तो हम ध्यान से सुनते थे.
अमरनाथ ने कहा कि मेरे लिए सारा काम करना रुटीन था. उस समय फीज़ियों नहीं हुआ करते थे. मेरे लिए अच्छा था कि लोग एक दूसरे के साथ प्यार से रहते थे. ये मेरे लिए ऑनर था कि आप वाइस कैप्टन हैं तो मिल के तय किया करते थे. मैं ट्रेनर था और कोच की जरूरत किसी को नहीं थी क्योंकि सब सीनियर लोग थे. ये भारत टीम ने कप जीता था. जब पता चला कि माइकल आउट है तो मैं इंतजार नहीं कर पा रहा था. जैसे ही पता चला कि आउट है तो मैं पवेलियन की तरफ भागा. मुझे विकेट नजर आई, लेकिन वो गड़ी हुई थी तो निकली नहीं. सबसे अच्छा था कि ये हमने देश के लिए किया. लोग क्रिकेटर्स के लिए दुआएं करते हैं. वहां भी जब हमने ट्रॉफी उठाई तो नीचे सारे इंडियन हमें देख रहे थे.
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वहीं साकिब सलीम ने कहा कि मैंने अखबार में पढ़ा था कि 83 वर्ल्ड कप पर एक फिल्म बन रही है और कबीर खान इसे डायरेक्ट कर रहे हैं. मेरे दिमाग में एक चीज आई कि मोहिंदर अमरनाथ कौन प्ले कर रहा है. मैंने तुरंत कबीर खान को फोन किया और कहा कि मिलना है तो उन्होंने कहा आ जा. फिर मेरा ऑडिशन हुआ और उनका फोन आया कि आप सिलेक्ट हो गए हो. मैं जिमी सर की वीडियो देखता रहता हूं. मैंने सोचा कि मैं इसे स्पोर्ट्स पर्सन की तरह लूंगा. फिर खुद ही सब सीखने लगा और प्रैक्टिस करने लगा. फिर क्रिकेट ट्रेनिंग हुई तो और सीखा. मैं जिमी अमरनाथ था. मुझे स्टैंड आउट करने की ज़रूरत नहीं थी. मैंने अपने पिता की बात को फॉलो किया कि कभी किसी को नीचा मत दिखाओ और बस अपना काम ठीक से करो. मैं बुरा गाता हूं, लेकिन मैंने कोशिश की. मैं जिम्मी सर का लाल रुमाल रखा करता था.
उन्होंने कहा कि दिक्कत बहुत हुई. सीखने के लिए मुझे सब कुछ भूलना पड़ा. जिमी जी के जैसा बनने के लिए मुझे बहुत कोशिश करनी पड़ी. मुझे स्टेप आउट तरके जो शॉट मारते थे, उसे करने में दिक्कत हुई. सर के हुक शॉट की मैं प्रैकटिस करता रहा. चुनौती से ज्यादा ये मेरे लिए एक ज़िम्मेदारी थी. ये 1983 वो समय था जब हिन्दुस्तान वर्ल्ड चैंपियन बन गया. लेकिन यहां मैं सारे क्रेडिट कबीर ख़ान को दूंगा. हम सब के लिए ये खूबसूरत फिल्म बना दी. लंदन के लिए जब शूट करने जा रहे थे तो दिमाक में था कि शूट के लिए नहीं वर्ल्ड कप खेलने जा रहे हैं. मेरा सपना था क्रिकेट खेलने का, लेकिन अब मौका मिला. कबीर ने बताया कि रीयल ट्रॉफी के साथ शूट होगा. ये सुनकर हम सब रोने लगे. इससे बड़ी चीज मेरी लाइफ में नहीं हो सकती थी. जब मेरे हाथ में ट्रॉफी थी तो मैंने अपनी मां को फोन किया, हम दोनों रोने लगे.
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