नए कृषि कानूनों के चलते पंजाब में किसानों की आत्महत्याएं बढ़ने की आशंका

दिल्ली की टिकरी बार्डर पर उन सैकड़ों किसान परिवारों की महिलाएं इकट्ठी हुईं जिनके पति, भाई या बच्चों ने कर्ज के चलते आत्महत्या कर ली

नए कृषि कानूनों के चलते पंजाब में किसानों की आत्महत्याएं बढ़ने की आशंका

प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली:

दिल्ली की टिकरी बार्डर पर आज उन सैकड़ों किसान (Farmer) परिवारों की महिलाएं इकट्ठी हुईं जिनके पति, भाई या बच्चों ने कर्ज के चलते आत्महत्या कर ली है. इन पीड़ित महिलाओं ने कहा कि पहले ही पंजाब में किसानों की आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, ऐसे में अगर नए कृषि कानूनों (Farm Laws) को लागू किया गया तो मंहगाई और गरीबी बढ़ेगी जिससे किसानों की खुदकुशी में तेजी आ सकती है. 

टिकरी बार्डर पर इकट्ठी हुईं महिलाओं में से एक मानसा से आई छिंदर कौर हैं. आधा किल्ला जमीन और मजदूरी करके इनके पति मग्गर सिंह अपना गुजारा करते थे. लॉकडाउन में मजदूरी छूट गई ऊपर से सात लाख का कर्जा था. इससे परेशान होकर उन्होंने खुदकुशी कर ली. छिंदर कौर कहती हैं कि  ''इन्होंने कर्जे के चलते आत्महत्या कर ली. ये तीन सौ रुपए दिहाड़ी कमाते थे. लॉकडाउन में हालात खराब हो गए थे सात का कर्जा अब भी है.''

टिकरी बार्डर पर लोगों को अपनी आपबीती सुनाने पंजाब के लहरागागा से सरजीत कौर भी आई हैं. दस साल पहले खेती के कर्जे से परेशान होकर उनके जवान बेटे गुरमेल सिंह ने आत्महत्या कर ली. उसकी मौत के बाद एक किल्ला जमीन भी बिक गई अब सरजीत कौर और उनकी बहू दूसरे के यहां मजदूरी करती हैं.

पंजाब यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2000 से 2016 के बीच 16500 आत्महत्याएं हुईं हैं. भारतीय किसान यूनियन के मुताबिक मंहगे रसायन और बीज के चलते किसान पहले कर्जा लेने पर मजबूर होता है फिर फसल की अच्छी कीमत न मिलने पर खुदकुशी कर लेता है. किसान संगठनों को अंदेशा है कि नए कृषि कानून के आने से किसानों में खुदकुशी का ट्रेंड बढ़ सकता है. भारतीय किसान यूनियन (BKU) की नेत्री परमजीत कौर ने कहा कि ''जो तीन आर्डिनेंस जारी किए, वो बोल रहे हैं कि ये भले के लिए हैं. लेकिन अगर ये तीन कानून पास होते हैं तो और बड़ी तादाद में खुदकुशी होंगी.''

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि बीते साल 42480 खेतिहरों और दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है, जो देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं का 30% से ज्यादा है और 2018 की तुलना में 6 फीसदी बढ़ा है. इसी के चलते किसानों से जुड़े संगठनों को लगता है कि जब निजी हाथों में किसानों की फसल की खरीद होगी तो कीमतें मिलना और मुश्किल होगा.

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खेती करना लगातार मंहगा हो रहा है और छोटे मंझोले किसान बढ़ रहे हैं. ऐसे में एक फसल की बरबादी या सस्ती खरीद किसानों को बड़े कर्जे की तरफ धकेल देती है.