यह ख़बर 25 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, फतवे 'धार्मिक-राजनीतिक' नजरिया, इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आज साफ किया कि वह मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से जारी धार्मिक फरमान या फतवे में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

शरी अदालत और उनके फतवों के खिलाफ दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, 'ये धार्मिक-राजनीतिक मुद्दे हैं। हमें इन पर फैसला नहीं कर सकते। इस देश में कुछ लोग मानते हैं कि गंगा जल सभी बीमारियों को ठीक कर सकता है। यह निजी श्रद्धा का विषय है।'

गौरतलब है कि दिल्ली स्थित एक वकील विश्वलोचन मदन ने एक जनहित याचिका दायर कर देश में दारुल कजा और दारुल इफ्ता जैसी संस्थाओं द्वारा संचालित सामानांतर अदालतों को चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।

मदन का तर्क था कि ऐसे फतवों की वजह से एक मुस्लिम लड़की को अपने पति को छोड़कर अपने उस ससुर के साथ रहना पड़ा जिस पर उसने रेप का आरोप लगाया था।

मदन ने कहा कि दारुल कजा और दारुल-इफ्ता देश के 52 से 60 जिलों में सक्रिय हैं, जहां मुस्लिम बड़ी तादाद में रहते हैं। उन्होंने कहा कि मुसलमान फतवों को चुनौती तक नहीं दे सकते, जबकि ये फतवे उनकी जिंदगी और नागरिक के तौर पर उनकी आजादी में दखल डालते हैं।

इस पर कोर्ट ने वकील मदन से कहा कि आप ज्यादा ड्रमैटिक हो रहे हैं। अदालत ने कहा, 'आप ज्यादा ड्रमैटिक न हों, उस लड़की का बचाव हम करेंगे। आप समझ रहे हैं कि सारे फतवे कुतर्की होते हैं। कुछ फतवे समझदारी भरे भी हो सकते हैं और लोगों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। इस देश के लोग बहुत समझदार हैं। अगर दो मुसलमान मध्यस्थता कराने के लिए राजी हैं तो इस पर कौन रोक लगा सकता है?'

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वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तर्क दिया कि अगर कोई फतवा मूल अधिकार को प्रभावित करता है तो कोई भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।