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This Article is From Jun 05, 2017

जीएम सरसों पर जीईएसी के फ़ैसले को जल्द हरी झंडी दिखाने की सरकारी वैज्ञानिकों ने की मांग

जीएम सरसों से पहले भारत के संगठन बीटी बैंगन पर सवाल खड़े कर चुके हैं. बीटी कॉटन के अनुभव पर भी बहस चल रही है.

जीएम सरसों पर जीईएसी के फ़ैसले को जल्द हरी झंडी दिखाने की सरकारी वैज्ञानिकों ने की मांग
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
नई दिल्‍ली: जीएम सरसों को जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेज़ल कमेटी यानी जीईएसी की मंज़ूरी को लेकर उठ रहे सवालों के बीच सरकार से जुड़े वैज्ञानिक सोमवार को एक साथ सामने आए. उनकी मांग है कि सरकार जीएम सरसों पर जीईएसी के फ़ैसले को जल्द हरी झंडी दिखाए. डिपार्टमेन्ट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड एजुकेशन के सचिव टी महापात्रा ने कहा कि जीएम सरसों से देश में सरसों की पैदावार 25 फीसदी तक बढ़ जाएगा और इसके असर से जुड़े सारे तथ्यों की समीक्षा की जा चुकी है. इन कृषि वैज्ञानिकों की दलील है कि जीएम सरसों के इस्तेमाल से सरसों तेल आयात पर देश की निर्भरता कम होगी.

ये सफाई ऐसे वक्त पर आयी है जब जीएम सरसों को दी गयी मंज़ूरी के खिलाफ आवाज़ तेज़ हो रही है और संघ परिवार से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर गुज़ारिश की है कि सरकार GEAC की मंज़ूरी को हरी झंडी ना दे क्योंकि जीएम सरसों टौक्सिक है और इससे पैदावार नहीं बढ़ेगी.

सवाल किसानों से जुड़े संगठन भी उठा रहे हैं. किसान संगठनों के एक बड़े नेटवर्क 'भारत बीज स्वराज मंच' के जैकब नैल्लीथानम ने एनडीटीवी से कहा, "जीएम सरसों के कमर्शियलाइज़ेशन से सरसों की जो मौजूदा वैराइटी है वह क्रॉस पॉलिनेशन के माध्यम से दूषित हो जाएंगी और दूसरा इससे हमारी सभी किस्में प्रदूषित हो जाएंगी जीन से जो एसटी टॉलरेंस का जीन है.''

जीएम सरसों से पहले भारत के संगठन बीटी बैंगन पर सवाल खड़े कर चुके हैं. बीटी कॉटन के अनुभव पर भी बहस चल रही है. जीएम सरसों को लेकर संघ परिवार से जुड़े कई संगठन भी विरोध में हैं. सरकार के लिए फ़ैसला आसान नहीं होगा.

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