फरीदाबाद के खोरी गांव में लोगों के पुनर्वास के मुद्दे को लेकर एक महापंचायत बुलाई गई थी,लेकिन महापंचायत की बजाय वहां पथराव और लाठीचार्ज हो गया. दरअसल इस गांव के 10 हज़ार से ज्यादा घरों को सुप्रीम कोर्ट ने 6 हफ्ते में तोड़ने का आदेश दिया है. जब महापंचायत के लिए खोरी गांव में भीड़ इकट्ठा होना शुरू हुई तो पुलिस ने धारा 144 का हवाला देकर लाठियां भांजी. एक महिला बेहोश होकर गिर पड़ी और दूसरी महिला को पुलिस लोगों को भड़काने का आरोप लगाकर हिरासत में ले गई. बुधवार को गांव के अंबेडकर पार्क में लोगों के पुनर्वास के मुद्दे को लेकर महापंचायत बुलाई गई थी
खोरा गांव निवासी साहिल ने बताया कि ये महापंचायत गांववालों ने बुलाई थी. कोरोना काल में हम कहां जाए. समीना खातून ने कहा कि छोटे-छोटे बच्चे उन्हें लेकर कहां जाएं, किराए पर कहां जाएं, इस समय कोई मकान भी नहीं देगा. दरअसल, 7 जून को सुप्रीम कोर्ट ने 6 हफ्ते के अंदर इस पूरे गांव के घरों को तोड़ने के आदेश दिए थे, क्योंकि गांव अरावली में बसा है. गांव की आबादी करीब 1 लाख है और यहां 10 हजार परिवार हैं. पुलिस गांव के चप्पे-चप्पे पर तैनात है और गांव खाली करा मकान तोड़ने की तैयारी अंतिम चरण में है. यहीं रहने वाले और मजदूरी करने वाले आस मोहम्मद ने बताया कि ये घर उनके पिता ने लिया था. मर जाएंगे, लेकिन यहां से नहीं जाएंगे
गांव की बिजली और पानी की सप्लाई दो हफ्ते पहले ही बंद कर दी गई थी, हालांकि गांव में बिजली के लगवाने वाले सांसद का नाम लिखा हुआ है. छतों पर सत्ताधारी पार्टी के झंडे हैं,नेताओं की सरपरस्ती में बिल्डरों ने यहां ज़मीन और मकान बेचे. गरीबों ने अपनी खून पसीने की कमाई लगा दी,लेकिन अब लोग जाएं तो कहां जाए. गांव की ही पूजा ने बताया कि न लाइट है, न पानी है, वोट डालने जाते हैं, बताओ कैसे गैर-कानूनी है. बबीता ने बताया कि तीन बच्चे हैं, लाइट नहीं है. बताइये ऑनलाइन क्लास नहीं हो पा रही है. वहीं बेबी ने बताया कि कोई नेता नहीं, कोई पार्षद नहीं, जनता को यूज कर लेते हैं, फिर छोड़ देते हैं. जवान लड़कियों को लेकर कहां जाएं. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, ये सिर्फ नाम के लिए है.
बता दें कि यहां गांव वालों के समर्थन में किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी पहुंचे. उनका कहना है कि सरकार पहले यहां से बिल्डरों और बड़े होटलों को हटाए,गांव के लोगों को कहीं बसाए. गुरुनाम ने बताया कि अगर सरकार इनके लिए कुछ नहीं करेगी तो ये हमारे धरनास्थल पर हमारे साथ रह सकते हैं.
गौरतलब है कि एकतरफ सुप्रीम कोर्ट का आदेश है तो दूसरी तरफ 10 हजार परिवारों के सामने आशियाने का संकट है, जिन नेताओं और बिल्डरों ने इस गांव को बसाया या घर बनाए अब वो भी नजर नहीं आ रहे हैं.
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