क्या ये मुमकिन है कि एक वक़्त में एक ही नाम का टीचर तीन अलग-अलग ज़िलों में एक साथ पढ़ा रहा हो और तीनों के पिता के नाम, आधार कार्ड और पैन कार्ड भी एक ही हों. उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में ये ख़ूब हो रहा है. इनमें एक टीचर असली है और बाक़ी फ़र्ज़ी. जब एक के बाद एक ऐसे कई मामले सामने आए तो स्पेशल टास्क फोर्स को जांच की ज़िम्मेदारी दी गई. इस जांच में अब तक 4000 से ज़्यादा ऐसे फ़र्ज़ी टीचरों की पहचान कर ली गई है. अंदेशा है कि इनकी तादाद इससे कहीं ज़्यादा है. कहा तो ये भी जा रहा है कि प्राइमरी शिक्षा पर उत्तर प्रदेश सरकार के 65 हज़ार करोड़ के बजट का क़रीब 10 से 15 हज़ार करोड़ ऐसे ही फ़र्ज़ी टीचर्स पर खर्च हो रहा है. अनिल यादव जो कि गोरखपुर में एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाते हैं. लेकिन अनिल यादव सीतपुर और अंबेडकरनगर के भी प्राइमरी स्कूल में पढ़ा रहे थे. इन्होंने पहली बार जब ITR दाखिल किया तो पता चला कि इनके पैन नंबर से दो और टीचर भी सैलरी पा रहे हैं और उनके नाम, पिता का नाम और आधार नंबर सब वही हैं. अनिल यादव को जब पता चला तो होश उड़ गया होगा कि कहीं नकली वाले इनकी हत्या कर खुद को अनिल यादव न साबित कर दें.
अनिल यादव इस समय गोरखपुर में कैंपियरगंज में हैं. उन्होंने कहा, 'मानसिक रूप से उलझन की थी कि आईटीआर दाखिल नहीं हो पा रहा था. काफी उलझन थी. हमको लग रहा था कि हम ही को मुकदमा न दाखिल करना पड़ जाए. हम ही को साबित करना पड़े कि मैं हूं ओरिजनल हूं. या अगला मुझे नकली साबित करने के चक्कर में है'.
पहले जिले में अगल-अलग टीचर भर्ती होती थी. अनिल यादव मेधावी थे उनका 6 जिलों में चयन हो गया. हर जगह काउंसलिंग की और गोरखपुर में ज्वाइन कर लिया यानी 6 जगह पद खाली रह गए. और अब देखिए की फ्रॉड कैसा हुआ.
भ्रष्टाचार का पूरा कच्चा चिट्ठा
सीतापुर और अंबेडकर नगर में जहां अनिल याद ने नौकरी ज्वाइन नहीं की वहां भी कुछ लोगों ने खुद को अनिल यादव बताकर नौकरी ज्वाइन कर ली. इसके लिए इन लोगों ने शिक्षा विभाग के लोगों को मिलाया. फिर अखबार में अनिल यादव के नाम से एडवाइरटाइज दिया गया कि उनकी सारी डिग्री खो गई हैं. फिर उसी ऐड की कटिंग लगाकर अनिल यादव के नाम से डुप्लीकेट डिग्री बनवा ली गई. फिर उन डिग्रियों को जहां नौकरी ज्वाइन की वहां वेरीफाई भी करा लिया. यही नहीं अनिल यादव के नाम से फर्जी आधार और पैन नंबर भी बनवा ली. लेकिन जब अध्यापकों के लिए इनकम टैक्स भरना जरूरी किया गया तो तीनों लोगों की सैलरी जारी होने से मामला पकड़ में आ गया.
अनिल यादव ने बताया कि उन्होंने एक एप्लीकेशन हाथों से लिखकर एसटीएफ लखनऊ को भेजा था. उसके आधार पर जांच हुई तो पता चला कि उनके फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कोई दूसरा अनिल कुमार यादव सीतापुर में कहीं पर नौकरी कर रहा है. जब उसको पकड़ा गया तो पता चला कि उसका भाई भी उनके नाम से अंबेडकरनगर में नौकरी कर रहा था.
यही कहानी गोरखपुर के खोयापट्टी प्राइमरी स्कूल के अभय लाल यादव की भी है. इनका भी कई जिलों में सेलेक्शन हो गया था. लेकिन अभय लाल ने भी गोरखपुर को ही नौकरी के लिए चुना और बाकी जगहों में इनके नाम से भी कई फर्जी लोग नौकरी कर रहे थे. अभय लाल को भी खुद को नकली साबित हो जाने का डर सता रहा था.
अभय लाल ने बताया, 'बहुत डर लग रहा था क्योंकि कई बार मुझे लखनऊ और सीतापुर जाना होता था क्योंकि जिसने भी यह किया होगा वह सही तो रहा नहीं होगा. दूसरा डर लगता था कि कहीं हमारे साथ को घटना न हो जाए क्योंकि वह लोग सब जान गए थे और जिस दिन मैं सीतापुर गया था वह सब विद्यालय छोड़कर भाग गए थे'.
अभयलाल यादव को खुद को अभया लाल यादव साबित करने में बहुत से पापड़ बेलने पड़े. उनके हर स्कूल में जांच हुई जहां वह पढ़े थे. अभय लाल ने बताया कि बीएसएस साहब ने एक समिति बनाई जहां 3 से 4 लोगों ने पूरी जांच की. कमेटी घर और जहां से हाईस्कूल, इंटरमीडिएट,बीए और बीएड किया था वहां तक जांच हुई. उसके बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी. उस रिपोर्ट के आधार पर दोनों फर्जी शिक्षकों को बर्खास्त किया गया.
वहीं बाराबंकी में एसटीएफ ने दो ऐसे अध्यापकों को गिरफ्तार किया जो पिता और पुत्र हैं. एसटीएफ ने इस केस के बारे में बताया कि गिरिजेश कुमार त्रिपाठी ने एक अन्य टीचर जयकुश दुबे की डिग्री लगाकर 1997 में नौकरी पाई. फिर उन्होंने बताया कि अपने बेटे अदित्य त्रिपाठी के साल 2016 में बालिग होने पर एक दूसरे टीचर रविशंकर त्रिपाठी की डिग्री इस्तेमाल कर नौकरी दिला दी. हालांकि गिरिजेश का दावा है कि वे फर्जी नही हैं. ये तो उन दोनों के घर के नाम हैं.
हालांकि मामला यहीं तक खत्म होता नहीं नजर आ रहा था. एसटीएफ कहां तो एक मामले की जांच के लिए निकली थी लेकिन यहां तो 'एक ढूढ़ों तो हजार मिलने' वाली कहावत लागू हो रही थी और देखते ही देखते ही 4000 फर्जी टीचर मिल चुके थे.
अब तक कहां-कहां से मिले कितने फर्जी अध्यापक
मथुरा- 124
सिद्धार्थ नगर-97
बाराबंकी-12
अमेठी-10
आजमगढ़-5
बलरामपुर-5
महराजगंज-4
देवरिया-3
सुल्तानपुर-3
बरेली-2
सीतापुर-2
अंबेडकरनगर-1
गोरखपुर-1
उत्तर प्रदेश में प्राइमरी शिक्षा का बजट 65 हजार करोड़ रुपया है. फर्जी अध्यापक की जांच करने वालों का अंदेशा है कि इसमें 10000 से 15000 हजार करोड़ रुपये सालाना इन फर्जी शिक्षकों पर खर्च हो रहा है. एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश ने बताया कि जब जांच का काम शुरू हुआ तो लगा कि यह एक छोटा मामला है. लेकिन बाद में इतनी बड़ी समस्या निकल आई है. सबसे पहला खुलासा मथुरा में हुआ जहां 85 अध्यापकों की बात सामने आई थी.
बरेली में गिरफ्तार फर्जी अध्यापक उमेश कुमार और विनय कुमार 40-40 लाख रुपये की सैलरी अब तक पा चुके हैं.
सिद्धार्थनगर में फर्जी टीचर राकेश सिंह ने भेद खुल जाने के बाद बीएसए ऑफिस में चोरी भी करवा दी जिसमें उनकी डिग्री भी चोरी हो गई. जब वहां एक क्लर्क राकेश मणि को पता चला तो वह राकेश सिंह को ब्लैकमेल करने लगा. इससे परेशान होकर राकेश सिंह ने राकेश मणि पर दो महिलाओं से रेप के मुकदमे दर्ज करवा दिए.
इसी तरह बिंदेश्वरी पहले शिक्षा विभाग में सफाई कर्मचारी थे. बाद में एक टीचर शशिकेश की डिग्री लगाकर टीचर बन गए.
STF के आईजी अमिताभ यश ने बताया, ' सिद्धार्थनगर बीएसए के स्टेनो हरेंद्र सिंह को कई फर्जी टीचर की जानकारी हो गई थी. एसटीएफ के आरोप हैं कि स्टेनो साहेब ने समाजसेवी फहीम के नाम से फर्जी लेटर पैड छपवा दिया फिर उसी लेटरपैड पर बीएसए के नाम पर फर्जी टीचर का नाम लिखकर उनकी जांच कराने की मांग की. बीएसए के नाम पोस्ट की गई चिट्ठी स्टेनो साहब के ही पास आई थी. वह उस चिट्ठी को रजिस्टर में एंट्री करते फिर फर्जी टीचर को बुलाकर कहते कि आपके खिलाफ फर्जी टीचर होने की जांच कराने की चिट्ठी आई है. इसे दबाने में बहुत रुपया खर्च होगा फिर क्या होगा आप समझ सकते हैं'.
अमिताभ यश ने बताया, इनकी संख्या काफी ज्यादा है और जितनी हमारा अंदाजा है उससे भी ज्यादा हो सकती..यही सोचकर हर जिले में एक समिति बनाई गई जो सैलरी देने वाले बेसिक शिक्षा विभाग के कर्मचारी को वेरिफाई करेगा. हर किसी का सत्यापन होना है लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक किसी समिति ने रिपोर्ट नहीं दी है.
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब सवा लाख प्राइमरी टीचर हैं. जिनमें 2 करोड़ बच्चो को पौने छह लाख टीचर पढ़ाते हैं. एसटीएफ ने बताया कि उत्तर प्रदेश में फर्जी टीचर बनने के 6 तरीके काफी लोकप्रिय हैं जैसे :
1- फर्जी डिग्री से नौकरी पाना
2- दूसरों के नाम पर नौकरी पाना
3- बिना अप्लाई किए फर्जी नियुक्ति पत्र से नौकरी पाना.
4-फर्जी जाति प्रमाणपत्र से रिजर्वेशन से नौकरी पाना.
5- फर्जी विकलांग सर्टिफिकेट बनवाकर कोटे से नौकरी पाना.
6- अल्पसंख्यक स्कूलों में नाकाबिल दोस्तों और रिश्तेदारों को कोटे के जरिए नौकरी दिलवा देना.
STF का कहना है कि यह फर्जीवाड़ा इतना बड़ा है कि सबको पकड़ने के लिए हमारी टीम बहुत छोटी है. अमिताभ यश का कहना है कि सभी जिलों को अलग-अलग काम करके इस पूरी समस्या से निपटना होगा.
VIDEO: रवीश कुमार का प्राइम टाइम: यूपी में सामने आया फर्जी शिक्षक घोटाला
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