नई दिल्ली:
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन बातों को खारिज कर दिया है, जिनमें कहा जाता था कि वह सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के खिलाफ थे।
कुछ अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक अपनी किताब Turning Points- A Journey Through Challenges में कलाम ने लिखा है कि अगर सोनिया उस वक्त प्रधानमंत्री बनना चाहतीं, तो उनके पास उन्हें नियुक्त करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। लेकिन कलाम के मुताबिक वह 18 मई, 2004 को उस वक्त हैरान रह गए, जब सोनिया गांधी उनसे मिलने आईं और प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम का प्रस्ताव किया।
कलाम ने यूपीए सरकार के साथ राष्ट्रपति रहते हुए अपने मुश्किल संबधों के बारे में पहली बार बताया है। अपनी बेस्ट सेलिंग किताब 'विंग्स ऑफ फायर' के इस सीक्वल में कलाम ने लिखा है कि राष्ट्रपति रहते हुए वह यूपीए सरकार की ओर से लाए गए ऑफिस ऑफ प्रॉफिट बिल के समर्थन में नहीं थे, क्योंकि उनको इस बिल की नियत ठीक नहीं लगी।
दरअसल कहा जाता है कि इस बिल को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कई बड़े कांग्रेसी नेताओं को सांसद के तौर पर अयोग्य करार दिए जाने से बचाने के लिए लाया गया था। हालांकि 23 मार्च, 2006 को सोनिया गांधी ने विवाद से बचने के लिए रायबरेली लोकसभा सीट के साथ नेशनल एडवाइजरी काउंसिल से भी इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद वह मई, 2006 में दोबारा रायबरेली से लोकसभा का चुनाव जीत कर आईं।
कुछ अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक अपनी किताब Turning Points- A Journey Through Challenges में कलाम ने लिखा है कि अगर सोनिया उस वक्त प्रधानमंत्री बनना चाहतीं, तो उनके पास उन्हें नियुक्त करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। लेकिन कलाम के मुताबिक वह 18 मई, 2004 को उस वक्त हैरान रह गए, जब सोनिया गांधी उनसे मिलने आईं और प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम का प्रस्ताव किया।
कलाम ने यूपीए सरकार के साथ राष्ट्रपति रहते हुए अपने मुश्किल संबधों के बारे में पहली बार बताया है। अपनी बेस्ट सेलिंग किताब 'विंग्स ऑफ फायर' के इस सीक्वल में कलाम ने लिखा है कि राष्ट्रपति रहते हुए वह यूपीए सरकार की ओर से लाए गए ऑफिस ऑफ प्रॉफिट बिल के समर्थन में नहीं थे, क्योंकि उनको इस बिल की नियत ठीक नहीं लगी।
दरअसल कहा जाता है कि इस बिल को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कई बड़े कांग्रेसी नेताओं को सांसद के तौर पर अयोग्य करार दिए जाने से बचाने के लिए लाया गया था। हालांकि 23 मार्च, 2006 को सोनिया गांधी ने विवाद से बचने के लिए रायबरेली लोकसभा सीट के साथ नेशनल एडवाइजरी काउंसिल से भी इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद वह मई, 2006 में दोबारा रायबरेली से लोकसभा का चुनाव जीत कर आईं।
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