जब भारत और पड़ोसी देश चीन के बीच तनाव दशकों के चरम पर चल रहा है, चीनी सेना का एक पूर्व जवान है, जो दोनों देशों के बीच शांति की इच्छा रखता है. ये कहानी है एक ऐसे युद्ध बंदी की जो कि 1962 की जंग में गलती से भारत की सीमा में प्रवेश कर गया और फिर अगले सात सालों तक देश की अलग अलग जेलों में युद्ध बंदी की तरह रहा. आजाद हुआ तो उसने भारत को ही अपना घर बना लिया, यहीं शादी हुई और यहीं रच-बस गया. भारत की सरकार और यहां के लोगों ने भी उसे प्यार और सम्मान दोनों ही दिया. बॉर्डर पर तनाव है और उसकी पथराई आंखें जो जंग देख चुकी हैं और नहीं चाहतीं कि फिर दोनों देश जंग में आमने-सामने हों.
भारत-चीन तनाव के बीच गलवान से 2,000 किलोमीटर दूर बालाघाट के राजबहादुर उर्फ वांग छी नहीं चाहते कि यह तनाव बढ़े. उनका कहना है, 'लड़ाई कोई अच्छा नहीं. कोई फायदा नहीं है. सबको नुकसान है. लड़ाई नहीं करना तो बहुत अच्छा है. मुझे ये कहना है.' 62 की जंग में चीन की सेना में रहे वांग छी अब बालाघाट के तिरोड़ी में अपने परिवार के साथ रहते हैं, यहीं शादी की और यहां उनके पोते-पोती सब हैं.
इनकी कहानी पूरी फिल्मी है. वांग छी जंग के बाद गलती से भारत की सरहद में आ गए. रेडक्रॉस की जीप दिखी तो लगा कि चीन की है और वो उसमें सवार हो गए. इसके बाद वो गिरफ्तार हुए, जिसके बाद उन्हें असम छावनी में रखा गया. 1963-69 तक देश की अलग अलग जेलों में रहे. फिर बालाघाट के तिरोड़ी में बस गए.
वांग छी जंग के बाद गलती से भारत की सरहद में आ गये रेडक्रॉस की जीप दिखी तो लगा कि #चीन की है, उसमें सवार हो गए गिरफ्तार हुए, असम छावनी में रहे 1963-69 तक देश की अलग अलग जेलों में रहे
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) June 22, 2020
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तिरोड़ी की स्थानीय निवासी रेणुका कठौते ने वांग छी के बारे में कहा, 'उनका व्यवहार बहुत अच्छा है, बचपन से देख रहे हैं. जब चीन जा रहे थे तब सबने कहा क्यों जा रहे हो जल्दी लौटकर आना, बहुत अच्छा व्यवहार है उनका.'
वांग छी को भारत ने अपना लिया है, लेकिन चीन में अपनों से मिलने जाने के लिए उन्हें पांच दशकों तक इंतजार करना पड़ा था. वांग छी की बूढ़ी आंखों ने जंग देखा ही नहीं, लड़ा भी है और इसका अंजाम भी भुगता है, जिसकी वजह से वो चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच अमन कायम रहे.
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