आज जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की जयंती है.
नई दिल्ली:
आज देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन (Jawaharlal Nehru Birthday) है. एक तरफ, पीएम मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए आजादी की लड़ाई में उनकी भूमिका और बतौर प्रथम प्रधानमंत्री देश के विकास में योगदान के लिए याद किया है. तो दूसरी तरफ, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मौजूदा सरकार पर नेहरू की विरासत को कमतर करने का आरोप लगाया है. हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब जवाहरलाल नेहरू की विरासत को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हों. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हों. यह सिलसिला लंबे वक्त से चलता आ रहा है. विपक्ष के तमाम नेता जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े मसलों पर प्रश्न तो उठाते ही रहे हैं, लेकिन उससे कहीं ज्यादा कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएन) में ले जाने और चीन के साथ युद्ध में पराजय को लेकर उन पर निशाना साधते रहे हैं. यह आरोप भी लगता रहा है कि चीन को लेकर नेहरू नरम रुख (सॉफ्ट कॉर्नर) रखते थे. हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि 1962 के युद्ध में चीन से पराजय के बाद जवाहरलाल नेहरू ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, जो उनकी छवि और तमाम आरोपों से उलट थी.
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1962 के युद्ध में चीन से हार के बाद जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की वैश्विक स्तर पर छवि कमजोर तो हुई ही. देश की सियासत में उनकी छवि पर भी बुरा असर पड़ा. विपक्ष पूरी तरह हमलावर था. हार के साल भर बाद अंतत: नेहरू ने अपनी चुप्पी तोड़ी. विख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखते हैं, 'जून 1963 में नेहरू ने एक प्रेस कांफ्रेंस की. वह पिछले कई महीनों में पहली बार प्रेस के सामने आ रहे थे. और जब नेहरू ने बोलना शुरू किया तो करीब डेढ़ घंटे बोलते रहे. प्रेस कांफ्रेंस में चीनी प्रधानमंत्री के प्रति उन्होंने अपनी भड़ास जमकर निकाली'. हार पर नेहरू ने कहा, 'चीन एक सैनिक मानसिकता का राष्ट्र है जो हमेशा सैन्य साजो-सामान को मजबूत करने पर जोर देता है....यह उनके अतीत के गृहयुद्ध की ही एक निरंतरता है. इसलिये आमतौर पर वे मजबूत स्थिति में हैं'. नेहरू ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में विपक्षी नेताओ पर भी निशाना साधा और यहां तक कह डाला कि 'हमारे विपक्षी नेताओं की आदत है कि वे बिना किसी सिद्धांत के हर किसी से गठजोड़ कर लेते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि वे चीनियों से गठजोड़ कर लें'.
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...और विपक्ष का हो गया गठजोड़
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में विपक्षी नेताओं के गठजोड़ का ज़िक्र किया था और कुछ दिनों बाद हुआ भी वैसा ही. विपक्ष के तमाम नेताओं ने नेहरू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. जिसमें मीनू मसानी, जेबी कृपलानी और राम मनोहर लोहिया जैसे कद्दावर नेता शामिल थे. नेहरू सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया. बकौल रामचंद्र गुहा, 'यह एक ऐसा कदम था जिसकी आजादी के बाद से नवंबर 1962 तक किसी ने कल्पना भी नहीं की थी'. हालांकि सरकार के पास पर्याप्त बहुमत था और सरकार पर किसी तरह का खतरा नहीं था, लेकिन विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस देखने लायक थी. बहस 4 दिनों तक चलती रही और कांग्रेस सरकार पर एक के बाद एक आरोप लगे.
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