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समानता के साथ देश का विज्ञान और तकनीकी विकास चाहते थे बाबासाहब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भीम-आधार डिजिटल भुगतान का शुभारंभ करेंगे
डॉ भीमराव आंबेडकर के नामकरण का है रोचक किस्सा
डॉ आंबेडकर देश के तकनीकी विकास के लिए संकल्पित थे. उन्होंने पहले संसदीय चुनाव (1951-52) के पहले घोषणापत्र में कहा था कि खेती में मशीनों का प्रयोग होना चाहिए. भारत में अगर खेती के तरीके आदिम बने रहेंगे तो कृषि कभी भी समृद्ध नहीं हो सकती. मशीनों का प्रयोग संभव बनाने के लिए छोटी जोत के बजाय बड़े खेतों पर खेती की जानी चाहिए. डॉ आंबेडकर अमेरिका से समझौता भी करना चाहते थे. उनकी ऐसी मंशा अमेरिकियों को गलत या सही बताने के लिए नहीं थी बल्कि उनसे तकनीकी ज्ञान अर्जित करने के लिए थी.
डॉ आंबेडकर का तकनीकी विकास का सपना देश में साकार हो रहा है और आर्थिक संचार तकनीक से उनका नाम भी जुड़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबासाहब की 126वीं जयंती पर शुक्रवार को डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए भीम-आधार डिजिटल भुगतान मंच की शुरुआत करेंगे. भीम ऐप के व्यापारिक इंटरफेस भीम-आधार के जरिए आधार का इस्तेमाल कर डिजिटल भुगतान किया जा सकेगा. इससे हर भारतीय अपने बॉयोमेट्रिक डाटा का इस्तेमाल कर डिजिटल भुगतान कर सकेगा. इस तरह देश का हर व्यक्ति डिजिटल भुगतान की तकनीक से जुड़ जाएगा.
खास बात यह है कि इससे कोई भी भारतीय बिना स्मार्टफोन, इंटनेट, डेबिट या क्रेडिट कार्ड के इस प्लेटफार्म के जरिए डिजिटल भुगतान कर सकेगा. यह बाबासाहेब आंबेडकर के सभी के लिए सामाजिक और वित्तीय सशक्तीकरण के दृष्टिकोण को साकार करेगा. मोदी भीम कैशबैक और रेफेरल बोनस के तौर पर दो नई प्रोत्साहन योजनाओं की भी शुरुआत करेंगे, जो छह माह की अवधि में 495 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ जमीनी स्तर पर डिजिटल भुगतान की संस्कृति को ले जाएगी.
भीमराव सकपाल इस तरह हुए आंबेडकर...
देश के संविधान के रचियता डॉ भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे. सवाल उठता है कि जब उनके पिता का सरनेम सकपाल था तो उनका सरनेम आंबेडकर कैसे?
भीमराव आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और निचली जाति मानते थे. अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव का सामना करना पड़ा. प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको अस्पृश्यता के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा रहा था. उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल' के बजाय ‘आंबडवेकर' लिखवाया. वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे और उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन रहा है. इस तरह भीमराव आंबेडकर का नाम अंबाडवे गांव से आंबाडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज किया गया. एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर को बाबासाहब से विशेष स्नेह था. इस स्नेह के चलते ही उन्होंने उनके नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर अपना उपनाम ‘आंबेडकर’ जोड़ दिया.
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