यह ख़बर 31 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

स्थापित तथ्यों के विपरीत बयान न दें : इतिहासकारों का पीएम और नेताओं से आह्वान

पीएम मोदी की फाइल फोटो

नई दि्ल्ली:

इतिहास पुनर्लेखन के प्रयासों को लेकर गंभीर चिंता जताते हुए प्रख्यात इतिहासकारों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित राजनीतिक नेताओं से कहा है कि वे स्थापित ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत बयान न दें। उन्होंने दावा किया कि हल्की एवं गैर जिम्मेदाराना टिप्पणियों से भारत की छवि धूमिल होती है।

इतिहासकारों ने कहा कि वे इस बात से विचलित हैं कि कुछ ‘‘प्रभावशाली क्षेत्रों’’ से यह आवाज उठायी जा रही है कि प्राचीन मिथकों एवं अटकलों से भरे तिथिक्रमों के आधार पर भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘‘दुर्भाग्यवश प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि प्राचीन काल में भारतीय ने ऐसी प्लास्टिक सर्जरी सीखी थी और अब भुला दी है जो आज भी संभव नहीं हो पा रही है।’’ इतिहासकारों ने प्रख्यात इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के प्लेटेनियम जुबली सत्र में पारित एक प्रस्ताव में कहा, ‘‘बहुतों का ऐसा विश्वास है कि जल्द ही पाठ्यपुस्तकों में सुधार या उनका पुनर्लेखन किया जायेगा ताकि हमारे स्कूलों के छात्रों को इस प्रकार का बेहद गुमराह करने वाला और विभाजनकारी इतिहास पढ़ाया जा सके।’’ इतिहास कांग्रेस की स्थापना 1935 में की गई थी और यह भारतीय इतिहासकारों की सबसे बड़ी पेशेवर एवं अकादमी संस्था है।

प्रस्ताव में कहा गया, ‘‘अपने अस्तित्व के दौरान यह (कांग्रेस)’ इतिहास की वैज्ञानिक पद्धति के मकसद के लिए प्रतिबद्ध रहा है और पक्षपातपूर्ण ढंग या उग्र राष्ट्रभक्ति के बिना इसका पालन किया जा रहा है।’’

प्रस्ताव में कहा गया कि इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस इस बात को लेकर विश्वस्त है कि सभी सच्चे इतिहासकार अपने पेशे के मूल्यों पर अड़िग रहेंगे और हमारे विगत को विकृत करने के प्रयासों का विरोध करेंगे। कांग्रेस ने प्रस्ताव में कहा, ‘‘यह राजनीतिक प्रतिष्ठान के सभी सदस्यों का आह्वान करता है कि वे स्थापित ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत बयान देने से बचें। उन्हें समझना चाहिए कि इस प्रकार के हल्के एवं गैर-जिम्मेदाराना बयानों से देश की प्रतिष्ठा धूमिल होती है।’’

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एक अन्य प्रस्ताव में कांग्रेस ने कहा कि वह विश्व विरासत स्थल हुमायूं का मकबरा में ‘‘तथाकथित’’ मरम्मत कार्य को लेकर विचलित है। उसने ध्यान दिलाया कि इस प्रकार के ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा के लिए जिन निजी एजेंसियों को जिम्मेदारी दी जाती है, प्रतीत होता कि वे स्मारकों एवं पुरातत्व स्थलों के संरक्षण के स्थापित मानकों का उल्लंघन करती हैं।