सुप्रीम कोर्ट से केरल के पत्रकार की यूपी में गिरफ्तारी की जांच कराने की मांग

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा पत्रकार सिद्दीक कप्पन की कथित अवैध गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल किया

सुप्रीम कोर्ट से केरल के पत्रकार की यूपी में गिरफ्तारी की जांच कराने की मांग

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन (फाइल फोटो).

नई दिल्ली:

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (Kerala Union of Working journalists) ने उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) द्वारा पत्रकार सिद्दीक कप्पन (Siddique kappan) की कथित अवैध गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक सेवानिवृत्त जज से स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाबी हलफनामे में यूपी सरकार (UP Government) के दावों पर सवाल उठाए गए हैं. यूनियन ने कहा है कि कप्पन की रिहाई की मांग करने वाली याचिका के जवाब में यूपी सरकार द्वारा दी गई दलीलें झूठी और तुच्छ हैं. हलफनामे में कहा गया है कि 56 दिनों तक सिद्दीक को हिरासत में रखना गैरकानूनी है. साथ ही पुलिस द्वारा उसे हिरासत में यातना देने का भी आरोप लगाया गया है. 

पिछली सुनवाई में सीजेआई एसए बोबडे की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि यूपी सरकार को केरल वर्किंग जर्नलिस्ट्स के वकील के कप्पन से मिलकर वकालतनामा पर हस्ताक्षर कराने में कोई आपत्ति नहीं है. हालांकि उन्होंने एसोसिएशन द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने पर सवाल उठाया था.

राज्य सरकार ने एसोसिएशन के दावों को झूठा बताते हुए कहा था कि कप्पन को गिरफ्तार करने के बाद उसके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तारी के बारे में तुरंत सूचित किया गया था. अभी तक परिवार का कोई सदस्य जेल में मिलने नहीं आया. उसके घर वालों से बात कराई गई है.

सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से कहा, वह हलफनामे के जरिए उत्तर प्रदेश सरकार का जवाब पेश करें. इस दौरान सीजेआई ने कहा कि पिछली सुनवाई में कुछ मीडिया ने अनुचित रिपोर्टिंग की.

गौरतलब है कि एसोसिएशन ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर कहा था कि कप्पन को 5 अक्टूबर को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया. यूपी ने अपने हलफनामे में कहा है कि कप्पन, जो पीएफआई के ऑफिस सेक्रेटरी हैं, एक पत्रकार कवर का इस्तेमाल कर रहे थे. वे  'तेजस 'नाम से केरल  आधारित अखबार का पहचान पत्र दिखा रहे थे, जो 2018 में बंद हो गया था.

यूपी ने हलफनामे में कहा कि जांच में पता चला है कि कप्पन अन्य पीएसआई कार्यकर्ताओं और उनके छात्र विंग (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) के नेताओं के साथ जातिवाद विभाजन और कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने के लिए पत्रकारिता की आड़ में हाथरस जा रहे थे.

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राज्य सरकार ने यह भी साफ किया कि कप्पन अवैध हिरासत में नहीं है बल्कि एक सक्षम अदालत द्वारा पारित न्यायिक आदेश के तहत वह न्यायिक हिरासत में है. राज्य सरकार ने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने झूठ का सहारा लिया है और केवल मामले को सनसनीखेज बनाने के लिए शपथ पत्र में कई गलत बयान दिए हैं. यही नहीं अब तक की जांच में कप्पन के प्रतिबंधित संगठनों के साथ संबंध होने के सबूत भी सामने आए हैं.