यह ख़बर 25 दिसंबर, 2012 को प्रकाशित हुई थी

गैंगरेप कांड : शीला की चिट्ठी लीक होने पर दिल्ली पुलिस ने की जांच की मांग

खास बातें

  • शीला ने गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को लिखे पत्र में बलात्कार पीड़िता के बयान रिकॉर्ड कराने में पुलिस के आला अफसरान पर ‘दखलंदाजी’ के आरोप लगाए हैं वहीं दिल्ली पुलिस ने गृहमंत्री को लिखे शीला के पत्र के ‘लीक किए जाने’ की जांच की मांग की है।
नई दिल्ली:

दिल्ली में सामूहिक बलात्कार पर आरोप-प्रत्यारोप के दौर के बाद अब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और दिल्ली पुलिस के बीच टकराव शुरू हो गया है। जहां शीला ने गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को लिखे पत्र में बलात्कार पीड़िता के बयान रिकॉर्ड कराने में पुलिस के आला अफसरान पर ‘दखलंदाजी’ के आरोप लगाए हैं वहीं दिल्ली पुलिस ने गृहमंत्री को लिखे शीला के पत्र के ‘लीक किए जाने’ की जांच की मांग की है।

दिल्ली पुलिस को केन्द्रीय गृह मंत्रालय से राज्य सरकार के दायरे में लाए जाने की जोरदार मांग कर रही शीला ने शिंदे को लिखे एक पत्र में उपमंडलीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) की शिकायत की उच्च स्तरीय जांच करने की मांग की है।

सूत्रों ने बताया कि एसडीएम ऊषा चतुर्वेदी ने दावा किया है कि जब वह पीड़िता का बयान दर्ज कर रही थीं तो तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने पीड़िता के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग करने से रोका था। यह आरोप लगाया गया है कि पुलिस अधिकारी चाहते थे कि उपमंडलीय मजिस्ट्रेट इसके लिए उस प्रश्नावली का उपयोग करें जो अधिकारियों ने तैयार की थी।

सूत्रों ने बताया कि जब ऊषा चतुर्वेदी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो पुलिस अधिकारियों ने उनके साथ बदसलूकी की। पुलिस ने एसडीएम की ओर से लगाए गए इन सारे आरोपों से इनकार किया है। उसने गृहमंत्री को लिखे गए शीला के पत्र के ‘लीकेज’ की उच्च स्तरीय जांच की भी मांग की।

दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत ने कहा, ‘हम एसडीएम ऊषा चतुर्वेदी की ओर से लगाए गए आरोपों से इनकार करते हैं।’ भगत ने कहा, ‘दिल्ली पुलिस मुख्यमंत्री की ओर से लिखे गए बेहद गोपनीय पत्र को मीडिया को लीक किए जाने की उच्च स्तरीय जांच की मांग करती है।’

दिल्ली पुलिस ने अपनी नाराजगी उजागर करते हुए कहा है कि शीला जिम्मेदारी उसपर डाल रही है और इस मोड़ पर शिंदे को पत्र लिख कर ‘गैर-मुद्दे’ को आगे ला रही हैं।

पुलिस का रुख पेश करते हुए भगत ने कहा कि उपायुक्त (वसंत विहार) ने डिविजनल कमिश्नर को पत्र लिखा था और पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए एक एसडीएम की सेवा मांगी थी। चतुर्वेदी को यह काम सौंपा गया।

दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता ने कहा कि सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने एसडीएम को बताया कि पीड़िता बयान दर्ज कराने के लिए फिट है।

भगत ने कहा, ‘जब एसडीएम वहां पहुंची और कैमरामैन अंदर जा रहा था, पीड़िता के परिवार ने यह सोचते हुए वीडियोग्राफी टीम की मौजूदगी पर एतराज जताया कि वे मीडिया से हैं। इसके बाद उन्हें प्रक्रिया के बारे में बताया गया लेकिन तब परिवार ने लिखित रूप से कहा कि वे बयान दर्ज करने की प्रक्रिया के लिए वीडियोग्राफी नहीं चाहेंगे।’

उन्होंने कहा कि जब परिवार ने ऐतराज किया तो डॉक्टरों ने बयान दर्ज कराने की कार्यवाही रिकॉर्ड करने के लिए वीडियो टीम को इजाजत नहीं दी।

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भगत ने यह भी कहा कि जब एसडीएम पीड़िता का बयान दर्ज कर रही थी तो कोई भी पुलिस अधिकारी कमरे में नहीं था और पीड़िता ने इस संबंध में खुद ही कागजात पर दस्तखत किए। उन्होंने कहा, ‘दिल्ली पुलिस की तरफ से कोई दखलंदाजी नहीं की गई।’