सांकेतिक तस्वीर
नई दिल्ली:
दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि ट्रांसजेंडरों को उनकी लैंगिक पहचान की वजह से उत्पीड़न, हिंसा और उपहास का सामना करना पड़ता है और वे समाज के हाशिए पर रह रहे हैं। अब उन्हें मुख्यधारा में लाने का समय आ गया है।
कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडरों के पक्ष में साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बावजूद उनका कटु अनुभव, व्यथा और दर्द अब भी कम नहीं हुआ है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने यह टिप्पणी अमेरिका में बसे एक एनआरआई ट्रांसजेंडर के बचाव में आते हुए कही। उसने आरोप लगाया कि उसे उसके माता-पिता सुधारने और 'सही लड़की बनना' सिखाने के लिए जबरन भारत लाए। न्यायाधीश ने ट्रांसजेंडरों के प्रति पूर्वाग्रह इतना अनियंत्रित और अधिकारपूर्ण है कि परिवार भी व्यापक दबाव में आ जाते हैं।
अदालत ने कहा, 'इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि ट्रांसजेंडरों को भी हिंसा और भेदभाव से रक्षा समेत बुनियादी मानवाधिकार हासिल हैं। उन्हें गरिमा और आत्मनिर्णय का अधिकार हासिल है। ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्यधारा में लाने का हमारे लिए समय आ गया है।' अदालत ने 18 वर्षीय याचिकाकर्ता शिवानी भट्ट को बहादुर बताया।
कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडरों के पक्ष में साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बावजूद उनका कटु अनुभव, व्यथा और दर्द अब भी कम नहीं हुआ है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने यह टिप्पणी अमेरिका में बसे एक एनआरआई ट्रांसजेंडर के बचाव में आते हुए कही। उसने आरोप लगाया कि उसे उसके माता-पिता सुधारने और 'सही लड़की बनना' सिखाने के लिए जबरन भारत लाए। न्यायाधीश ने ट्रांसजेंडरों के प्रति पूर्वाग्रह इतना अनियंत्रित और अधिकारपूर्ण है कि परिवार भी व्यापक दबाव में आ जाते हैं।
अदालत ने कहा, 'इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि ट्रांसजेंडरों को भी हिंसा और भेदभाव से रक्षा समेत बुनियादी मानवाधिकार हासिल हैं। उन्हें गरिमा और आत्मनिर्णय का अधिकार हासिल है। ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्यधारा में लाने का हमारे लिए समय आ गया है।' अदालत ने 18 वर्षीय याचिकाकर्ता शिवानी भट्ट को बहादुर बताया।
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