मनोहर पर्रिकर का फाइल फोटो
नई दिल्ली:
सैन्य प्रमुखों की मांगों को नजरअंदाज करते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने उनसे बिना देरी किए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन करने को कहा है. पिछले हफ्ते तीनों सर्विसेज आर्मी, नेवी और एयरफोर्स ने अपने यहां संकेत (सिग्नल) दिए थे कि जब तक विसंगतियों को दूर नहीं किया जाता तब तक सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लंबित रखा जाएगा.
सोमवार को चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन वायुसेना प्रमुख अरूप राहा ने इस सिलसिले में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाकात कर सैन्य बलों के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन से पहले इनमें व्याप्त विसंगतियों को दूर करने की जरूरत पर बल दिया.
उच्च पदस्थ सूत्रों ने NDTV को बताया कि पर्रिकर ने धैर्यपूर्वक सैन्य बलों की मांगों को सुना लेकिन दृढ़तापूर्वक कहा कि सातवें वेतन आयोग का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए और विसंगतियों पर सरकार गौर करेगी.
दरअसल सैन्य बलों की प्रमुख मांगों से एक नान-फंक्शनल अपग्रेड (एनएफयू) का मसला है. ये सुविधा नौकरशाहों को उपलब्ध है लेकिन सैन्य बलों को यह सुविधा नहीं मिलती. ये वास्तव में उच्च प्रशासनिक ग्रेड (एचएजी) में शामिल होने तक ऑटोमेटिक समयबद्ध ढंग से वेतन में बढ़ोतरी से संबंधित है. इसके अलावा सिविल नौकरशाही से भिन्न वेतनमान का मामला भी है. सरकार ने इन मुद्दों को देखने के लिए एक विसंगति आयोग का गठन किया है.
रक्षा मंत्री पर्रिकर का बलों को सख्त संदेश ऐसे समय में दिया गया है जब सरकार में मोटे तौर पर यह महसूस किया जा रहा है कि सेना के वेतन और सुविधाएं बाकी अधिकांश सरकारी सेवाओं की तुलना में बेहतर हैं.
इस संबंध में सूत्रों के मुताबिक, ''मिलिट्री को पेंशन की सुविधा उपलब्ध है जबकि अब अन्य किसी सेवा में पेंशन का प्रावधान नहीं है, इसके साथ ही मिलिट्री को वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) की सुविधा भी उपलब्ध है जबकि अन्य किसी सेवा में यह उपलब्ध नहीं है.''
इसके मद्देनजर बलों के अपने पूर्व सिग्नल से पीछे हटते हुए सातवें वेतन आयोग को क्रियान्वित करने के लिए कदम उठाना देखने वाली बात होगी.
सोमवार को चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन वायुसेना प्रमुख अरूप राहा ने इस सिलसिले में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाकात कर सैन्य बलों के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन से पहले इनमें व्याप्त विसंगतियों को दूर करने की जरूरत पर बल दिया.
उच्च पदस्थ सूत्रों ने NDTV को बताया कि पर्रिकर ने धैर्यपूर्वक सैन्य बलों की मांगों को सुना लेकिन दृढ़तापूर्वक कहा कि सातवें वेतन आयोग का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए और विसंगतियों पर सरकार गौर करेगी.
दरअसल सैन्य बलों की प्रमुख मांगों से एक नान-फंक्शनल अपग्रेड (एनएफयू) का मसला है. ये सुविधा नौकरशाहों को उपलब्ध है लेकिन सैन्य बलों को यह सुविधा नहीं मिलती. ये वास्तव में उच्च प्रशासनिक ग्रेड (एचएजी) में शामिल होने तक ऑटोमेटिक समयबद्ध ढंग से वेतन में बढ़ोतरी से संबंधित है. इसके अलावा सिविल नौकरशाही से भिन्न वेतनमान का मामला भी है. सरकार ने इन मुद्दों को देखने के लिए एक विसंगति आयोग का गठन किया है.
रक्षा मंत्री पर्रिकर का बलों को सख्त संदेश ऐसे समय में दिया गया है जब सरकार में मोटे तौर पर यह महसूस किया जा रहा है कि सेना के वेतन और सुविधाएं बाकी अधिकांश सरकारी सेवाओं की तुलना में बेहतर हैं.
इस संबंध में सूत्रों के मुताबिक, ''मिलिट्री को पेंशन की सुविधा उपलब्ध है जबकि अब अन्य किसी सेवा में पेंशन का प्रावधान नहीं है, इसके साथ ही मिलिट्री को वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) की सुविधा भी उपलब्ध है जबकि अन्य किसी सेवा में यह उपलब्ध नहीं है.''
इसके मद्देनजर बलों के अपने पूर्व सिग्नल से पीछे हटते हुए सातवें वेतन आयोग को क्रियान्वित करने के लिए कदम उठाना देखने वाली बात होगी.
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