Ground Report: अनलॉक प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी MSME के हालात में खास सुधार नहीं...

अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के पांच सप्‍ताह बाद के हालात का जायजा लेने फिर संजीव की फैक्ट्री पहुंचे तो पाया कि अब कुछ ज्यादा मशीनें चल रही थीं और बिज़नेस ऑपरेशन काफी बढ़ गया हैं मजदूरों की संख्‍या भी बढ़ी है. लेकिन सब कुछ अभी सामान्‍य नहीं हुआ है.

Ground Report: अनलॉक प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी MSME के हालात में खास सुधार नहीं...

कोरोना महामारी ने MSME की कमर तोड़कर रख दी है (प्रतीकात्‍मक फोटो)

नई दिल्ली:

कोरोना वायरस की महामारी (Coronavirus Pandemic) के चलते करीब दो माह के लॉकडाउन ने छोटे और लघु उद्योगों (MSME) की सप्लाई चैन को तोड़ दिया है, इससे उनकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभा‍वित हुई है. अब अनलॉक प्रक्रिया के अंतर्गत पिछले पांच सप्‍ताह में धीरे-धीरे फैक्टरियां खुल रही हैं लेकिन बाजार में डिमांड काफी कमज़ोर है. लिक्विडिटी का संकट भी बना हुआ है और सप्लाई चैन अब भी टूटी हुई है. NDTV संवाददाता हिमांशु शेखर ने बुलंदशहर रोड इंडस्ट्रियल एरिया में एक MSME फैक्ट्री का मंगलवार को दौरा किया तो ये महत्वपूर्ण बातें सामने आई.

NDTV  ने करीब पांच सप्‍ताह पहले 29 मई को पहली बार जब इस फैक्ट्री का दौरा किया था. उस वक्त MSME लॉकडाउन की मार झेल रहा था और हालात काफी खराब थे. तोशी आटोमेटिक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर, संजीव सचदेव ने उस वक्त कहा था, " लॉकडाउन की वजह से फैक्‍टरी सिर्फ 15 से 20% ही 'फंक्‍शनल' हो पाई है. हम अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के पांच सप्‍ताह बाद के हालात का जायजा लेने फिर आज सात जुलाई को संजीव की फैक्ट्री पहुंचे तो पाया कि अब कुछ ज्यादा मशीनें चल रही थीं और बिज़नेस ऑपरेशन काफी बढ़ गया हैं मजदूरों की संख्‍या भी बढ़ी है. इन 5 हफ़्तों में मज़दूरों की संख्या भी 7-8 से बढ़कर 25 से 30 तक पहुंच गई है. लेकिन सब कुछ अभी सामान्‍य नहीं हुआ है. संकट अब भी बना हुआ है, चुनौतियाँ बदल गयी हैं.

मौजूदा स्थिति पर संजीव ने कहा, " हर राज्य में अलग स्थिति है. कहीं लॉकडाउन रिस्ट्रिक्‍टेड है तो कहीं आंशिक तौर पर खुला है. ये सभी चीज़ें सप्लाई चैन को प्रभावित करती हैं. सप्लाई चैन अधूरा रह जाता है अगर एक भी प्रोडक्ट का पार्ट नहीं मिला तो काम बुरी तरह प्रभावित होता है. पेमेंट नहीं मिलने से उद्योग जगत की कमर मानो टूट गई है. उन्‍होंने कहा-  फैक्ट्री  चलने के लिए आपको रॉ मटेरियल के लिए आपको रोज़ पैसा चाहिए.क्लाइंट्स की ओर से अभी पेमेंट बहुत स्लो हो रही हैं. लिक्विडिटी (तरलता) की प्रॉब्‍लम है और सॉल्वेंसी (ऋण चुकाने की क्षमता) की भी".  बुलंदशहर रोड इंडस्ट्रियल एरिया में अब भी कई फैक्टरियां बंद हैं, मज़दूर भी कम हैं. काम कम है तो मज़दूरों की कमाई भी घट गयी है. 

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जब हमने एक मजदूर मोहसिन शफी से पूछा कि COVID-19 लॉकडाउन से पहले जो कमाई थी क्या वो वापस आ पायी है, तो उनका जवाब था, "नहीं सर...कमाई आधी हो गयी है ... पहले 15000 रुपये मिलते थे लेकिन अब बमुश्किल 8000 से 9000 रुपये मिल पा रहे हैं. साफ़ है, कोविड-19 संकट से पहले वाली स्थिति बहाल होने में अभी लम्बा वक्त लगेगा. बाजार में डिमांड काफी कमज़ोर है, छोटे और लघु उद्योगों को उनके प्रोडक्ट्स की पेमेंट्स में देरी हो रही है. बैंक उतना क़र्ज़ नहीं दे रहे जिसकी उन्हें ज़रूरत है जिस वजह से उन्हें संकट से जूझना पड़ रहा है. एक संकट बढ़ती स्‍टॉक का भी है जो सप्लाई चैन कमज़ोर होने और डिमांड गिरने की वजह से लगातार बढ़ रहा है, जिसमें MSME यूनिट्स का करोड़ों का पैसा फंसा हुआ है.