कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन देश के कई राज्यों में अपना पैर पसार चुका है. इस बीच ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए सैंपलों की जीनोम सीक्वेंसिंग करने में परेशानी आ रही है. शीर्ष स्वास्थ्य मंत्रालय सूत्रों ने NDTV को बताया कि जीनोम सीक्वेंसिंग में रीएजेंट्स (reagent) की कमी लैब के लिए दिक्कत बन रही है. बताया जा रहा है कि एनसीडीसी( NCDC) के पास भी रीएजेंट्स की कमी है, पर फिलहाल यहां पर जीनोम सीक्वेंसिंग हो रही है. पिछले महीने की तुलना में जीनोम सिक्वेंसिंग में करीब 40% की गिरावट दर्ज की गई है. सूत्रों ने बताया कि INSACOG के फिलहाल 38 लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा है. लेकिन 5 लैब में यह काम बंद है. फंड की कमी से यह दिक्कत आ रही है.
गौरतलब है कि इस माह की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड की स्थिति की समीक्षा के लिए हुई बैठक में जीनोम सीक्वेंसिंग के महत्व को बताया था. पीएम ने गृह मंत्री अमित शाह, स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया और वरिष्ठ अधिकारियों से कहा था, 'चूंकि वायरस लगातार विकसित हो रहा है, ऐसे में हमें जीनोम सीक्वेंसिंग सहित लगातार साइंटिफिक रिसर्च की जरूरत है. हालांकि पिछले माह की तुलना में सीक्वेंसिंग करीब 40 फीसदी कम हुई है. व्यापक रूप से संक्रामक ओमिक्रॉन वेरिएंट के बाद से केवल 25 हजार जीनोम को सीक्वेंस किया है. ओमिक्रॉन को भारत में आई कोरोना की तीसरी लहर की प्रमुख वजह माना जा रहा है और नवंबर माह में इसका पहला मामला आया था. '
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बता दें कि मानव शरीर जैसे DNA से मिलकर बनता है, वैसे ही वायरस भी या तो DNA या फिर RNA से बनता है. कोरोना वायरस RNA से बना है. जीनोम सीक्वेंसिंग वो तकनीक है, जिससे इसी RNA की जेनेटिक जानकारी मिलती है. इसी प्रक्रिया को जानने में रीएजेंट्स का इस्तेमाल किया जाता है. बता दें कि रीएजेंट्स एक पदार्थ है, जिसका उपयोग विभिन्न परीक्षणों में किया जाता है.
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