टूलकिट मामले (Toolkit case) में आरोपी दिशा रवि (Disha Ravi) को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को जमानत दे दी है. कोर्ट ने पुलिस की कहानी और दावों को खारिज करते हुए कहा कि पुलिस के कमजोर सबूतों के चलते एक 22 साल की लड़की जिसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है,उसे जेल में रखने का कोई मतलब नहीं है. मंगलवार को एक दिन की पुलिस रिमांड के बाद जब दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने टूलकिट मामले में आरोपी दिशा रवि को कोर्ट में पेश किया. पुलिस दिशा रवि को निकिता के सामने बिठाकर पूछताछ करने के लिए 4 दिन की पुलिस रिमांड मांग ही रही थी कि इसी बीच सेशंस कोर्ट से खबर आई कि दिशा की जमानत मंजूर कर ली गयी है.
1.जमानत देते वक्त कोर्ट ने पुलिस के सभी आरोपों और दावों के खारिज़ कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पुलिस के अधूरे सबूतों के मद्देनजर मुझे कोई कारण नजर नहीं आता कि 22 साल की लड़की को जेल में रखा जाए, जबकि उसका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है. व्हाट्सऐप ग्रुप बनाना, टूल किट एडिट करना अपने आप में अपराध नहीं है. महज व्हाट्सऐप चैट डिलीट करने से PJF संगठन से जोड़ना ठीक नहीं.ये ऐसा सबूत नहीं है, जिससे अलगाववादी सोच साबित हो. 26 जनवरी को शांतनु के दिल्ली आने में कोई बुराई नहीं.
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2.टूलकिट या उसके हाईपर लिंक में देशद्रोह जैसी कोई सामग्री नहीं. सरकार से किसी बात कर सहमत न होने पर किसी को देशद्रोह के आरोप में जेल में नहीं डाला जा सकत. लोकतांत्रिक देश में अपनी बात रखने का हर किसी को मौलिक अधिकार है. असंतोष का अधिकार दृढ़ता में निहित है. मेरे विचार से बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में ग्लोबल ऑडियन्स की तलाश का अधिकार शामिल है. संचार पर कोई भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं. एक नागरिक के पास कानून के अनुरूप संचार प्राप्त करने के सर्वोत्तम साधनों का उपयोग करने का मौलिक अधिकार है. ये समझ से बाहर है कि प्रार्थी ने अलगाववादी तत्वों को वैश्विक प्लेटफॉर्म कैसे दिया.
3.कोर्ट ने ने कहा कि हमारी सभ्यता 5000 साल पुरानी है,कोर्ट ने ऋग्वेद का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारे पास ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहे हैं जो किसी से न दबे और उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके,हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे मामलों में साज़िश साबित करना आसान नहीं
4.आदेश में ये भी कहा है कि टूल किट से हिंसा को लेकर कोई कॉल की बात साबित नहीं होती.एक लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार पर नजर रखते हैं, सिर्फ इसलिए कि वो सरकारी नीति से सहमत नहीं हैं, उन्हें जेल में नहीं रखा जा सकता. देशद्रोह के क़ानून का ऐसा इस्तेमाल नहीं हो सकता.
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