केरल उच्च न्यायालय ने अपनी मां को पीटते देख चाचा की हत्या करने वाले एक युवक की उम्रकैद की सजा को कम कर दिया है. युवक तीन साल से अधिक की सजा पहले ही काट चुका है. उच्च न्यायालय ने एक चीनी कहावत का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘यदि आप क्रोध के क्षण में धैर्य रखते हैं, तो आप सौ दिनों के दुःख से बच जाएंगे.'' उच्च न्यायालय ने कहा, लेकिन दुर्भाग्य से एक बेटा अपनी मां पर हो रहे हमले को देखकर जबरदस्त जुनून का शिकार हो गया. निचली अदालत ने अप्रैल 2016 में युवक को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और उस पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया था.
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घटना जनवरी 2010 में हुई. आरोपी की मां और चाचा के बीच जमीन से लकड़ियां हटाने को लेकर तीखी बहस हुई थी. इसी दौरान युवक के चाचा ने उसकी मां को धक्का दे दिया था. अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि युवक ने यह देखकर आपा खो दिया और हस्तक्षेप किया और इसी क्रम में उसने चाचा को चाकू घोंप दिया.
उच्च न्यायालय ने हत्या के लिए दोषसिद्धि के बजाय अभियुक्त को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया. अदालत ने कहा कि युवक का अपने चाचा को मारने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन उसे पता था कि पीड़ित को चाकू से मारने से उसकी मृत्यु हो सकती है.
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अदालत ने आरोपी को कारावास की सजा सुनाई जिसमें तीन साल से अधिक की सजा वह पहले ही काट चुका है और उस पर लगाए गए जुर्माने को बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया. उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि और सजा को यह कहते हुए संशोधित किया कि "आरोपी अपनी मां पर हुए हमले से अचानक बौखला गया था. उसने सिर्फ एक बार चाकू से वार किया था. आरोपी ने कभी भी चाचा की मौत का कारण बनने का इरादा नहीं किया था. वह चाचा के साथ अस्पताल भी गया था. इस अपराध के समय आरोपी की उम्र केवल 19 वर्ष थी."
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