कोरोना वायरस (Coronavirus) और लॉकडाउन की वजह से देश में बेरोजगारी का स्तर बढ़ गया है. इससे निपटने के लिए राज्य सरकारों भी कोशिश कर रही हैं. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने चीन से निकलने वाली कंपनियों को उत्तर प्रदेश में स्वागत करने का ऐलान किया है और कहा है सरकार उनको हर संभव मदद मुहैया कराएगी. इस कड़ी में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पीछे नही हैं. मध्य प्रदेश सरकार की ओर से दावा किया गया है कि राज्य सरकार ने औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाकर रोजगार के अवसरों में वृद्धि, नये निवेश को प्रोत्साहित करने और श्रमिकों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से श्रम सुधारों की घोषणा की है. लेकिन इन श्रम कानूनों में किए गए बदलावों से जहां दोनों राज्य सरकारें विपक्ष के निशाने पर गई हैं. वहीं बीजेपी के वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने दोनों राज्य सरकारों को मजदूर विरोधी बताया है.
क्या कहना है भारतीय मजदूर संघ का
भारतीय मज़दूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने एनडीटीवी से कहा, 'हम राज्य सरकारों की इस पहल के सख्त खिलाफ हैं..बीएमएस नेताओं ने श्रम कानून में बदलाव करने के राज्य सरकारों के फैसले की समीक्षा की है. हम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत हर राज्य सरकार से ये पूछना चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने में मौजूदा श्रम कानून कैसे रोड़ा बन रहे हैं? हम किसी भी हालत में श्रमिकों के अधिकारों को स्थगित करने के फैसले के सख्त खिलाफ हैं'.
मध्य प्रदेश सरकार ने क्या किए बदलाव
- श्रम कानूनों बदलाव की वो बातें जो सीधे मजदूर विरोधी हैं तो पहले अगर कोई न्यूनतम मज़दूरी ना दे तो लेबर इंस्पेक्टर को अधिकार थे ...कानून तोड़ने वाले पर वो मुकदमा लगा सकता है जिसमें 6 महीने की जेल, 7 गुना जुर्माने का भी प्रावधान था लेकिन अब जांच और निरीक्षण से मुक्ति दे दी गई है.
- पहले ये भी प्रावधान थे कि श्रम आयुक्त आदेश दे तो निरीक्षण कराया जा सकता था, शिकायत करने पर वो ऐसे आदेश दे सकते थे लेकिन अब उसे हटा दिया गया है.
- पहले से ही 90 प्रतिशत से ज्यादा में श्रम कानूनों का उल्लंघन होता है फिर चाहे 8 घंटे काम की शर्त हो, साप्ताहिक अवकाश या फिर ओवरटाइम की लेकिन अब इस शिकायत के मायने नहीं है.
- मध्यप्रदेश औद्योगिक संबंध अधिनियम 1960 लागू थे तो कम से सत्तारूढ़ दल से संबंधित ही सही कामगारों के यूनियन को मान्यता मिल जाती थी जो अब नहीं होगी.
- श्रमिक को अधिकार था सीधे लेबर कोर्ट चला जाए लेकिन उसमें जो संशोधन होते रहे पहले ही प्रक्रिया को बहुत जटिल और थकाऊ बनाया जा चुका है जिसमें विवाद की स्थिति में पहले लेबर ऑफिस जाए वो बैठक करेंगे. महीने, सालों फिर लेबर कमिश्नर के पास जाएगा, फिर लेबर कोर्ट उसमें फिर बदलाव हो गया.
- दुकान एवं स्थापना अधिनियम 1958 में जो संशोधन हुआ उसमें 6-12 बजे रात तक दुकानें खुली रह सकती हैं. लेकिन जिन लोगों से दुकानों में काम कराया जाता है उसमें से कितनों को डबल शिफ्ट या दूसरी शिफ्ट के लिये कामगार रखे जाएंगे उनके श्रम कानूनों के लिये क्या आवाज़ उठाने की गुंजाइश बची है?
- पहले प्रावधान थे कि किसी उद्योग में जहां 100 मजदूर हैं उसे बंद करने के लिये इजाज़त लेनी होगी, कामगारों को सुनना होगा लेकिन 1000 दिन खुले रहने यानी लगभग 3 साल काम हुआ तो किसी तरह का कानून लागू नहीं होगा ...
उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही हुआ
- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्री परिषद की बैठक में ''उत्तर प्रदेश चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020'' को मंजूरी दी गई, ताकि फैक्ट्रियों और उद्योगों को तीन श्रम कानूनों तथा एक अन्य कानून के प्रावधान को छोड़ बाकी सभी श्रम कानूनों से छूट दी जा सके.
- महिलाओं और बच्चों से जुड़े श्रम कानून के प्रावधान और कुछ अन्य श्रम कानून लागू रहेंगे. यहां भी अब मजदूरों की शिफ्ट 8 घंटे के बजाए 12 घंटे की होगी.ॉ
- पहले ओवरटाइम का पैसा सैलरी के प्रतिघंटे का दोगुना मिलता था अब इसमें सैलरी के ही हिसाब से मिलेगा.
- यानी किसी मजूदरी मजदूरी अगर 8 घंटे की 80 रुपये है तो 12 घंटे के हिसाब से 120 रुपये मिलेंगे. इसी अनुपात में अब 12 घंटे की शिफ्ट वाली नौकरी में सैलरी दी जाएगी.
- 12 घंटे की शिफ्ट में 6 घंटे बाद 30 मिनट का ब्रेक दिया जाएगा.
- औद्योगिक विवादों का निपटारा, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों का स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति संबंधित कानून खत्म कर दिए गए हैं.
- ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी अनुबंध श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों से जुड़े कानून खत्म, भी समाप्त कर दिए गए हैं.
- उद्योगों को अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में काम कराने की छूट दी गई है.
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साधा निशाना
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने शनिवार को कहा कि श्रम कानून में बदलाव श्रमिकों के व्यापक हित में होना चाहिये, ना कि उनके अहित में. मायावती ने ट्वीट किया, ‘‘कोरोना वायरस संकट के बीच मजदूरों/श्रमिकों का सबसे बुरा हाल है. इसके बावजूद उनसे आठ के बजाए 12 घंटे काम लेने की शोषणकारी व्यवस्था पुनः लागू करना अति-दुःखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण है. श्रम कानून में बदलाव देश की रीढ़ श्रमिकों के व्यापक हित में होना चाहिये, ना कि उनके अहित में.
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