माउंट एवरेस्ट को भेदकर नेपाल तक रेल पहुंचाने की तैयारी में चीन

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना हौसले का काम है, लेकिन चीन माउंट एवरेस्ट को भेदने की तैयारी में है। तिब्बत में रेल का जाल बिछाने में जुटा चीन आने वाले सालों में नेपाल तक रेल लाइन बिछाने वाला है और वह भी माउंट एवरेस्ट में सुरंग बनाकर।

चीन का इरादा माउंट एवरेस्ट के नीचे सुरंग बनाकर काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने का है। चीन के सरकारी अखबार 'चाइना डेली' ने बेशक इस बाबत ख़बर अब छापी हो, लेकिन इसकी तैयारी बहुत पहले से चल रही है। तिब्बत के दौरे पर गए दल में शामिल नेपाली पत्रकारों के पूछने पर चीन ने उन्हें भरोसा दिया था कि इस दिशा में चीन जल्द ही कुछ करेगा।

तिब्बत ऑटोनॉमस रिजन सीपीसी कमिटि के एक्ज़ेक्यूटिव डिप्टी सेक्रेटरी वू यिंग्ज़ी कहते हैं, "हमने कई रेल लाइन बिछाई है। हम शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में भरोसा करते हैं। जैसे अमेरिका और कनाडा और यूरोप के देश रेल और यातायात के मामले में साथ हो गए, वैसे ही हमें भी होना चाहिए। ये किसी देश पर निर्भर करता है कि वो कब और कहां तक रेल विस्तार चाहता है। नेपाल हमारी रेल को अपने देश तक ले जाने के लिए लगातार आग्रह करता रहा है।"

बीजिंग से ल्हासा और फिर ल्हासा से सिगात्ज़े तक रेल लाइन बिछ चुकी है। सिगात्ज़े, नेपाल सीमा के क़रीब है। इस रेल लिंक को आगे बढ़ाकर चीन काठमांडू तक पहुंच सकता है, लेकिन इसके बीच माउंट एवरेस्ट खड़ा है। तिब्बत तक रेल पहुंचाने में चीन ने जिस तरह से सुरंग और पुल को बनाने में महारथ हासिल कर ली है ऐसे में ये चुनौती बड़ी नहीं। नेपाल तक सीधी पहुंच के लिहाज़ से ये बहुत अहम है।

नेपाली पत्रकार सेला खत्री बताते हैं कि चीन लगातार नेपाल से नज़दीकी बढ़ाने पर लगा है। नेपाल को इंफ्रास्ट्रक्टर की बहुत ज़रूरत है। इसके लिए नेपाल, चीन की तरफ देख रहा है। एक बार रेल एवरेस्ट के इस पार पहुंच गई, तो फिर उसे भारत-नेपाल सीमा तक बढ़ाने में भी देर नहीं लगेगी। सोचना भारत को है, जो नेपाल के साथ सैकड़ों किलोमीटर की मैदानी सीमा होते हुए भी न तो रेल और न ही रोड का विस्तार कर पाया है।


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