नई दिल्ली:
प्राप्त हुई ताजा तस्वीरों से जाहिर होता है कि चीन अपने पहले स्वदेश-निर्मित विमानवाहक पोत (एयरक्राफ्ट करियर) को बहुत जल्द पूरा कर लेगा.
चीन के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत टाइप 001-ए के लगभग तैयार होने की एनडीटीवी की खबर के एक महीने बाद प्राप्त ताजा तस्वीरों से लगता है कि अब विमानवाहक पोत का 'आइलैंड', जो इस युद्धपोत का मुख्य नियंत्रण केंद्र है, समुद्र में ट्रायल के लिए इंस्टॉल किया जा चुका है. पोत के आइलैंड में ब्रिज, एविएशन संबंधी सुविधाएं और बैटल कंट्रोल स्पेस (युद्ध-नियंत्रण संबंधी पर्याप्त स्थान) है. इसके इंजनों पर एयर-इनटेक और फनल के अलावा रडार और सेंसर भी लगा दिए गए हैं.
टाइप 001-ए पोत का निर्माण बीजिंग के पूर्व में स्थित डलियन पोर्ट के ड्राई-डॉक पर किया जा रहा है. इसका वजन 60,000 टन हो सकता है और यह रूसी एसयू-27 के चीनी वर्जन वाले 36 जे-15 फाइटर्स सहित लगभग 50 एयरक्राफ्ट ले जाने में सक्षम होगा. वैसे ट्रायल की प्रक्रिया पूरी होने में कुछ साल लेगी और नया चीनी करियर 2020 से पहले कमिशन हो सकना मुश्किल ही है.
टाइप 001-ए दूसरा चीनी एयरक्राफ्ट करियर है. इसे चीन के पहले पोत लियोनिंग की तर्ज पर तैयार किया गया है, जो मूल रूप से रूस में बनाया गया था. हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद इसे यूक्रेन स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां से कई साल बाद चीन ने इसे हासिल कर लिया था.
जे-15 लड़ाकू विमान के नए संस्करण, जिसे जे-15ए कहा गया है, की तस्वीरें उल्लेखनीय ढंग से चीनी सोशल मीडिया में सामने आई हैं. इन लड़ीकू विमानों के नोज़-व्हील में कैटापल्ट लॉन्च मैकेनिज़्म मौजूद है, जिससे साफ संकेत मिलते हैं कि आने वाले चीनी विमानवाहक पोत तथा उनके मुख्य लड़ाकू विमान लियाओनिंग तथा टाइप 001ए से कहीं ज़्यादा सक्षम होंगे.
कैटापल्ट लॉन्च सिस्टम, जो पोत पर मौजूद लड़ाकू विमानों के नोज़-व्हील से जुड़ा होता है, स्टीम से चलने वाला पिस्टन या इलेक्ट्रोमैग्नैटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS) इस्तेमाल करता है, जिसके ज़रिये लड़ाकू विमान को पोत के छोटे-से डेक से ही प्रोपेल कर उड़ा दिया जाता है. इस वक्त लियाओनिंग तथा टाइप 001-ए 'स्की-जंप' लॉन्च सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें पोत पर मौजूद विमान सिर्फ अपने इंजन की ताकत का प्रयोग कर रनवे पर दौड़ते हुए उस तिरछे ढांचे की मदद से उड़ान भरते हैं, जिसकी शक्ल 'स्की-जंप' से मिलती-जुलती है. कैटापल्ट लॉन्च सिस्टम से हासिल होने वाली अतिरिक्त गति की गैरमौजूदगी में चीन के मौजूदा जे-15 लड़ाकू विमानों को उड़ान भरने के लिए हल्का रखना पड़ता है, जिसका अर्थ होता है कि उन्हें कम हथियारों या कम ईंधन के साथ उड़ान भरनी पड़ती है, जिससे वे ऑपरेशनल तैनाती के समय 'कम सक्षम' रह जाते हैं.
चीन के पहले स्वदेश-निर्मित विमानवाहक पोत के पूरा हो जाने की गति भारतीय नौसेना के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि भारत के स्वदेश-निर्मित विमानवाहक पोत, जिसका नाम पहले पोत के बेड़े में शामिल होने पर 'विक्रांत' होगा, के जल्द ही पूरा हो जाने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, जबकि उसकी शुरुआत चीन के 001-ए से पूरे तीन साल पहले हो गई थी.
भले ही विक्रांत का बाहरी ढांचा, सुपरस्ट्रक्चर तथा इंजन जोड़ दिए गए हैं, लेकिन इसका इस्राइली एमएफ-स्टार (मल्टी-फंक्शन सर्वेलैंस, ट्रैक एंड गाइडेंस) प्राइमरी सेंसर, राडार तथा लंबी दूरी की धरती से हवा में मार करने में सक्षम बराक 8 मिसाइलें अभी हासिल ही नहीं किए गए हैं. पिछले साल अपनी रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने कहा था, "आईएनएस विक्रमादित्य (भारत का एकमात्र ऑपरेशनल विमानवाहक पोत) के सेवा में है तथा आईएनएस विराट के 2016-17 में डीकमीशन कर दिए जाने की संभावना है, इसलिए इस तरह स्वदेशी विमानवाहक पोत के तैयार किए जाने की टाइमलाइन को बार-बार आगे सरकाया जाना भारतीय नौसेना की क्षमताओं पर विपरीत असर डालेगा..."
चीन के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत टाइप 001-ए के लगभग तैयार होने की एनडीटीवी की खबर के एक महीने बाद प्राप्त ताजा तस्वीरों से लगता है कि अब विमानवाहक पोत का 'आइलैंड', जो इस युद्धपोत का मुख्य नियंत्रण केंद्र है, समुद्र में ट्रायल के लिए इंस्टॉल किया जा चुका है. पोत के आइलैंड में ब्रिज, एविएशन संबंधी सुविधाएं और बैटल कंट्रोल स्पेस (युद्ध-नियंत्रण संबंधी पर्याप्त स्थान) है. इसके इंजनों पर एयर-इनटेक और फनल के अलावा रडार और सेंसर भी लगा दिए गए हैं.
टाइप 001-ए पोत का निर्माण बीजिंग के पूर्व में स्थित डलियन पोर्ट के ड्राई-डॉक पर किया जा रहा है. इसका वजन 60,000 टन हो सकता है और यह रूसी एसयू-27 के चीनी वर्जन वाले 36 जे-15 फाइटर्स सहित लगभग 50 एयरक्राफ्ट ले जाने में सक्षम होगा. वैसे ट्रायल की प्रक्रिया पूरी होने में कुछ साल लेगी और नया चीनी करियर 2020 से पहले कमिशन हो सकना मुश्किल ही है.
टाइप 001-ए दूसरा चीनी एयरक्राफ्ट करियर है. इसे चीन के पहले पोत लियोनिंग की तर्ज पर तैयार किया गया है, जो मूल रूप से रूस में बनाया गया था. हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद इसे यूक्रेन स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां से कई साल बाद चीन ने इसे हासिल कर लिया था.
जे-15 लड़ाकू विमान के नए संस्करण, जिसे जे-15ए कहा गया है, की तस्वीरें उल्लेखनीय ढंग से चीनी सोशल मीडिया में सामने आई हैं. इन लड़ीकू विमानों के नोज़-व्हील में कैटापल्ट लॉन्च मैकेनिज़्म मौजूद है, जिससे साफ संकेत मिलते हैं कि आने वाले चीनी विमानवाहक पोत तथा उनके मुख्य लड़ाकू विमान लियाओनिंग तथा टाइप 001ए से कहीं ज़्यादा सक्षम होंगे.
कैटापल्ट लॉन्च सिस्टम, जो पोत पर मौजूद लड़ाकू विमानों के नोज़-व्हील से जुड़ा होता है, स्टीम से चलने वाला पिस्टन या इलेक्ट्रोमैग्नैटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS) इस्तेमाल करता है, जिसके ज़रिये लड़ाकू विमान को पोत के छोटे-से डेक से ही प्रोपेल कर उड़ा दिया जाता है. इस वक्त लियाओनिंग तथा टाइप 001-ए 'स्की-जंप' लॉन्च सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें पोत पर मौजूद विमान सिर्फ अपने इंजन की ताकत का प्रयोग कर रनवे पर दौड़ते हुए उस तिरछे ढांचे की मदद से उड़ान भरते हैं, जिसकी शक्ल 'स्की-जंप' से मिलती-जुलती है. कैटापल्ट लॉन्च सिस्टम से हासिल होने वाली अतिरिक्त गति की गैरमौजूदगी में चीन के मौजूदा जे-15 लड़ाकू विमानों को उड़ान भरने के लिए हल्का रखना पड़ता है, जिसका अर्थ होता है कि उन्हें कम हथियारों या कम ईंधन के साथ उड़ान भरनी पड़ती है, जिससे वे ऑपरेशनल तैनाती के समय 'कम सक्षम' रह जाते हैं.
चीन के पहले स्वदेश-निर्मित विमानवाहक पोत के पूरा हो जाने की गति भारतीय नौसेना के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि भारत के स्वदेश-निर्मित विमानवाहक पोत, जिसका नाम पहले पोत के बेड़े में शामिल होने पर 'विक्रांत' होगा, के जल्द ही पूरा हो जाने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, जबकि उसकी शुरुआत चीन के 001-ए से पूरे तीन साल पहले हो गई थी.
भले ही विक्रांत का बाहरी ढांचा, सुपरस्ट्रक्चर तथा इंजन जोड़ दिए गए हैं, लेकिन इसका इस्राइली एमएफ-स्टार (मल्टी-फंक्शन सर्वेलैंस, ट्रैक एंड गाइडेंस) प्राइमरी सेंसर, राडार तथा लंबी दूरी की धरती से हवा में मार करने में सक्षम बराक 8 मिसाइलें अभी हासिल ही नहीं किए गए हैं. पिछले साल अपनी रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने कहा था, "आईएनएस विक्रमादित्य (भारत का एकमात्र ऑपरेशनल विमानवाहक पोत) के सेवा में है तथा आईएनएस विराट के 2016-17 में डीकमीशन कर दिए जाने की संभावना है, इसलिए इस तरह स्वदेशी विमानवाहक पोत के तैयार किए जाने की टाइमलाइन को बार-बार आगे सरकाया जाना भारतीय नौसेना की क्षमताओं पर विपरीत असर डालेगा..."
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