यह ख़बर 07 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

बलात्कार से भी बदतर है बाल विवाह : अदालत

प्रतीकात्मक चित्र

नई दिल्ली:

बाल विवाह को बलात्कार से भी बदतर बुराई बताते हुए दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि इसे समाज से पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। उसने कम उम्र में बच्ची का विवाह करने के लिए लड़की के माता-पिता के खिलाफ मामला दर्ज करने को कहा।

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट शिवानी चौहान ने लड़की के माता-पिता द्वारा उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना के मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। अदालत ने मामला दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा, दहेज देना और लेना कानून के तहत दंडनीय है।

अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि बाल विवाह रोकथाम कानून और दहेज निषेध कानून के उचित प्रावधानों के तहत 14-वर्षीय लड़की के माता-पिता और उसके ससुराल वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए। ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला पहले से ही दर्ज है।

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने कहा, बाल विवाह बलात्कार से भी बदतर बुराई है और इसे समाज से पूरी तरह खत्म किया जाना चाहिए। यदि सरकार जैसे पक्षकार इस तरह के अपराध करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं करेंगे, तो ऐसा करना संभव नहीं होगा। उन्होंने दक्षिण दिल्ली के पुलिस उपायुक्त को 19 अक्टूबर को प्रोग्रेस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा, अदालत से मूक दर्शक बने रहने और इस बुराई को होते रहने देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

अदालत ने लड़की के माता-पिता को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि उन्होंने भी गंभीर अपराध किया है। अदालत ने कहा कि बाल विवाह के गंभीर नतीजे होते हैं। यह बच्चों के प्रति प्रतिवादियों (पति और उसके परिवार) द्वारा ही नहीं, बल्कि उसके अपने माता-पिता द्वारा घरेलू हिंसा का वीभत्स रूप है।

अदालत ने कहा कि बाल वधुओं के अपनी शिक्षा पूरी करने के अवसर खत्म हो जाते हैं और उन्हें शारीरिक दुरुपयोग, एचआईवी संक्रमण के संपर्क में आने तथा दूसरी बीमारियों से घिरने और गर्भावस्था या प्रसव के दौरान मृत्यु होने का अधिक जोखिम रहता है। अदालत ने कहा कि खुशकिस्मती से लड़की स्वस्थ है, लेकिन यह तथ्य किसी भी तरह से उस अपराध की गंभीरता को कम नहीं करता है, जो उसके अपने माता-पिता, रिश्तेदार और पति ने कथित रूप से उस पर किया है।

लड़की के माता-पिता की शिकायत के अनुसार बच्ची की शादी 2011 में हुई थी, जब वह नाबालिग थी। दूसरी ओर, लड़की के पति और उसके परिवार के सदस्यों का तर्क था कि उसके माता-पिता ने विवाह के वक्त वयस्क लड़की दिखाई थी।

अदालत ने लड़की के स्कूल प्रमाण पत्र पर भरोसा करते हुए पति की दलील अस्वीकार कर दी और कहा कि विवाह के वक्त वह नाबालिग थी। अदालत ने कहा, बच्ची का स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र रिकॉर्ड में है ओर इसमें उसकी जन्म तिथि 30 अगस्त, 1997 लिखी है। विवाह के समय लड़की की आयु 14-15 साल थी।

अदालत ने प्राथमिकी दर्ज करने के साथ ही पति को अपनी पत्नी को चार हजार रुपये बतौर अंतरिम गुजारा भत्ता देने का भी निर्देश दिया। इस बीच, अदालत ने दोनों पक्षों को परस्पर बातचीत से विवाद हल करने की अनुमति दी, क्योंक उन्होंने विवादों को सुलझाने की इच्छा जाहिर की थी।


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