
प्रतीकात्मक फोटो.
इंदौर:
देश में फिलहाल एड्स के महज दो प्रतिशत मामले पुरुषों के बीच असुरक्षित यौन संबंधों के चलते सामने आते हैं लेकिन समाज की परंपरागत यौन अभिरुचियों में हो रहे बदलाव के मद्देनजर जानकारों ने चेताया है कि एड्स के फैलाव को बढ़ने से रोकने के लिए समलैंगिक समुदाय को अधिक जागरूक बनाने की जरूरत है.
इंदौर के शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के शरीर क्रिया विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर मनोहर भंडारी ने आज ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘यह वैज्ञानिक तौर पर स्थापित तथ्य है कि कंडोम पहने बिना समलैंगिक संबंध बनाने वाले पुरुषों में एड्स का खतरा कहीं ज्यादा होता है. समाज में समलैंगिक रुझान में इजाफे के चलते एड्स का खतरा भी बढ़ सकता है. लिहाजा खासकर पुरुष समलैंगिकों में एड्स के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि इस रोग के फैलाव को रोका जा सके.’ एड्स विषय के 61 वर्षीय अध्येता ने कहा, ‘दो पुरुषों के बीच यौन क्रिया के वक्त संकरे गुदा द्वार या मल मार्ग को पहुंचने वाली चोट उनमें एड्स संक्रमण के खतरे को कई गुना बढ़ा सकती है.’
उधर, समलैंगिक, उभयलिंगी और किन्नर (एलजीबीटी) समुदाय के अधिकारों के लिए सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और किन्नर अखाड़े के प्रमुख लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने कहा कि असुरक्षित यौन संबंधों के चलते एड्स के फैलाव को लेकर केवल इस तबके पर उंगली नहीं उठाई जानी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हमारे देश में एलजीबीटी समुदाय को कई भेदभावों का सामना करना पड़ता है. लेकिन एचआईवी संक्रमण किसी भी लैंगिक रुझान वाले व्यक्तियों से भेदभाव नहीं करता. जो भी व्यक्ति असुरक्षित तरीके से यौन संबंध बनाएगा, उसे एड्स का खतरा होगा. यहां इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह पुरुष है या महिला, समलैंगिक है या उभयलिंगी अथवा किन्नर.’
मिजोरम में 1990 से अब तक एचआईवी एड्स से 1,300 लोगों की मौत
‘इंडिया एचआईवी एस्टिमेशन 2015 रिपोर्ट’ में जताए अनुमान के मुताबिक देश में 21.17 लाख लोग एड्स के साथ जी रहे हैं. इन मरीजों में करीब 59 प्रतिशत पुरुष हैं. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) की रणनीतिक सूचना प्रबंधन प्रणाली (एसआईएमएस) के वर्ष 2015.16 के आंकड़े बताते हैं कि देश में विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों के असुरक्षित यौन संबंधों के चलते एड्स के 87 प्रतिशत मामले सामने आए, जबकि पुरुषों के बीच असुरक्षित सेक्स इस बीमारी के दो प्रतिशत संक्रमण के लिए जिम्मेदार साबित हुआ.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
इंदौर के शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के शरीर क्रिया विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर मनोहर भंडारी ने आज ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘यह वैज्ञानिक तौर पर स्थापित तथ्य है कि कंडोम पहने बिना समलैंगिक संबंध बनाने वाले पुरुषों में एड्स का खतरा कहीं ज्यादा होता है. समाज में समलैंगिक रुझान में इजाफे के चलते एड्स का खतरा भी बढ़ सकता है. लिहाजा खासकर पुरुष समलैंगिकों में एड्स के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि इस रोग के फैलाव को रोका जा सके.’ एड्स विषय के 61 वर्षीय अध्येता ने कहा, ‘दो पुरुषों के बीच यौन क्रिया के वक्त संकरे गुदा द्वार या मल मार्ग को पहुंचने वाली चोट उनमें एड्स संक्रमण के खतरे को कई गुना बढ़ा सकती है.’
उधर, समलैंगिक, उभयलिंगी और किन्नर (एलजीबीटी) समुदाय के अधिकारों के लिए सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और किन्नर अखाड़े के प्रमुख लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने कहा कि असुरक्षित यौन संबंधों के चलते एड्स के फैलाव को लेकर केवल इस तबके पर उंगली नहीं उठाई जानी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हमारे देश में एलजीबीटी समुदाय को कई भेदभावों का सामना करना पड़ता है. लेकिन एचआईवी संक्रमण किसी भी लैंगिक रुझान वाले व्यक्तियों से भेदभाव नहीं करता. जो भी व्यक्ति असुरक्षित तरीके से यौन संबंध बनाएगा, उसे एड्स का खतरा होगा. यहां इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह पुरुष है या महिला, समलैंगिक है या उभयलिंगी अथवा किन्नर.’
मिजोरम में 1990 से अब तक एचआईवी एड्स से 1,300 लोगों की मौत
‘इंडिया एचआईवी एस्टिमेशन 2015 रिपोर्ट’ में जताए अनुमान के मुताबिक देश में 21.17 लाख लोग एड्स के साथ जी रहे हैं. इन मरीजों में करीब 59 प्रतिशत पुरुष हैं. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) की रणनीतिक सूचना प्रबंधन प्रणाली (एसआईएमएस) के वर्ष 2015.16 के आंकड़े बताते हैं कि देश में विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों के असुरक्षित यौन संबंधों के चलते एड्स के 87 प्रतिशत मामले सामने आए, जबकि पुरुषों के बीच असुरक्षित सेक्स इस बीमारी के दो प्रतिशत संक्रमण के लिए जिम्मेदार साबित हुआ.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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