केंद्र ने SC से कहा, 'महाराष्ट्र सरकार के पास मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने का विधायी अधिकार'

महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम, 2018 के तहत मराठा समुदाय के लोगों को नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देना, संवैधानिक है. केंद्र सरकार का मानना है कि एसईबीसी अधिनियम, 2018 संवैधानिक है. 

केंद्र ने SC से कहा, 'महाराष्ट्र सरकार के पास मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने का विधायी अधिकार'

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली:

मराठा आरक्षण मामले (Maratha Reservation Issue) को लेकर केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने का विधायी अधिकार प्राप्त है और उसके द्वारा लिया गया यह आरक्षण संवैधानिक है. केंद्र का कहना है कि संविधान के 102वें संशोधन से राज्य सरकार को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) की सूची बनाने का अधिकार खत्म नहीं हो जाता है. बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पांच जजों के संविधान पीठ के समक्ष कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम, 2018 के तहत मराठा समुदाय के लोगों को नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देना, संवैधानिक है. केंद्र सरकार का मानना है कि एसईबीसी अधिनियम, 2018 संवैधानिक है. 

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मेहता ने कहा कि 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में जोड़े गए अनुच्छेद- 342 ए में केंद्र सरकार को एसईबीसी का पता लगाने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस मसले पर जो राय रखी है, उसे केंद्र सरकार का पक्ष समझा जाए. दरअसल,  पिछले 18 मार्च को अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि 102वां संशोधन राज्यों को एसईबीसी के तहत कानून बनाने से नहीं रोकता है. बता दें कि वेणुगोपाल ने इसे संवैधानिक बताया था.

सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि अनुच्छेद-342 ए सविधान संशोधन के तहत बनाया गया है और इसके तहत जो प्रावधान किया गया है वह राज्य को एसईबीसी घोषित करने के अधिकार से वंचित नहीं करता है. बता दें कि मराठा आरक्षण मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी. 

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इससे पहले सोमवार को मराठा आरक्षण मामले (Maratha Reservation Issue) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा था कि राज्यों को शिक्षा को बढ़ावा देने और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए संस्थानों की स्थापना के लिए और कदम उठाने चाहिए क्योंकि "सकारात्मक कार्रवाई" सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं है. जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाले पांच जजों के संविधान पीठ ने सोमवार को कहा था कि इस उद्देश्य के लिए राज्यों द्वारा कई अन्य काम किए जा सकते हैं तो अन्य चीजें क्यों नहीं की जा सकतीं, शिक्षा को बढ़ावा देने और अधिक संस्थानों की स्थापना क्यों नहीं हो सकती? कहीं न कहीं इस मैट्रिक्स को आरक्षण से आगे बढ़ना चाहिए. सकारात्मक कार्रवाई सिर्फ आरक्षण नहीं है.'