केंद्र की जम्मू-कश्मीर सरकार को हिदायत, 'सही तरीके' से इस्तेमाल करें पीएसए

कट्टरपंथी अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की फाइल फोटो

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर सरकार को कहने वाली है कि पब्लिक सेफ्टी एक्ट का वह सही तरीके से यानी 'जुडिसियस यूज़' करे। यह कदम केंद्र सरकार मसर्रत आलम को लेकर जो उसकी किरकरी हुई उसे ध्यान में रखते हुए उठा रही है।

गृह मंत्रालय के एक सीनियर अफसर ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, 'हम जल्द ही राज्य सरकार को लिखने वाले हैं कि वह पब्लिक सेफ्टी एक्ट का जुडिशल यूज़ करे।' दरअसल मसर्रत की रिहाई के बाद सरकार को विपक्ष से काफी कुछ सुनना पड़ा था। इस मामले को लेकर बीजेपी और पीडीपी दोनों आमने-सामने आ गई थी।

वैसे यूपीए सरकार ने जिन तीन इंटरलॉक्यूटर्स (वार्ताकारों) को नियुक्त किया था, उन्होंने पीएसए कानून में कई संशोधन लाने की बात कही थी। उनका मानना था कि जिस भी प्रतिनिधिमंडल से वह मिले थे उन्होंने पीएसए कानून के खिलाफ ही बोला था। उनके मुताबिक, इस कानून के तहत राज्य सरकार को बेशुमार हक़ दिए गए हैं और ज़्यादातर एजेंसियां इसका गलत इस्तेमाल करती हैं।

सबसे ज़्यादा दिक्कत पीएसए के चैप्टर छह की सेक्शन आठ से थी। इसके तहत डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट या फिर कलेक्टर किसी भी शख्स को हिरासत में ले सकता है। फिर उसके उस फैसले को सरकार को 12 दिन में अप्रूव करना होता है। इंटरलॉक्यूटर्स के  मुताबिक इस समय-सीमा को घटा कर चार दिन कर देना चाहिए।

दूसरी बड़ी बात जिस पर ये इंटरलॉक्यूटर्स सरकार का ध्यान दिलाना चाहते थे वह यह थी कि पीएसए कानून के तहत अपराधों में फ़र्क़ नहीं किया गया है। अगर कोई शख्स पब्लिक सेफ्टी के लिए खतरा हैं तो उसे एक साल के लिए डिटेन किया जा सकता है और अगर वह राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा है तो दो साल तक उसे हिरासत में रखा जा सकता है।

इंटरलॉक्यूटर्स का कहना था कि पब्लिक सेफ्टी आर्डर के तहत छोटे अपराध भी आते हैं और कुछ संगीन भी इसीलिए इसके तहत किसी को एक से दो महीने तक ही डिटेन किया जाना चाहिए और जहां तक राज्य की सुरक्षा का सवाल है तो डिटेन करने की समय सीमा सिर्फ तीन महीने होनी चाहिए। उसके बाद मामले में ट्रायल होना चाहिए।

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इंटरलॉक्यूटर्स ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि किसी नाबालिग को इस कानून के तहत बुक नहीं किया जाना चाहिए। दरअसल मसर्रत के मामले ने बीजेपी को बता दिया है कि यह गठबंधन इतना आसान नहीं रहेगा। धीरे-धीरे उसे इंटरलॉक्यूटर्स द्वारा दी गई रिपोर्ट को तवज्जू देनी पड़ेगी और कश्मीर के कानून व्यवस्था की नज़र से नहीं, बल्कि लोगों और रिश्ते जोड़ने की नज़र से देखना होगा।