
कार्ति चिदंबरम. (फाइल फोटो)
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सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 मार्च को कार्ति चिदंबरम को जमानत दी थी
सीबीआई ने कार्ति को 28 फरवरी को गिरफ्तार किया था
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जांच एजेंसी ने आरोप लगाया गया है कि हाईकोर्ट ने जमानत के स्तर पर साक्ष्यों की गुणवत्ता का 'विस्तृत अवलोकन' करके 'गलत' किया था और इससे जांच ब्यूरो का मामले पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ा है. जांच ब्यूरो ने अपनी अपील में कहा है कि कार्ति को जमानत देते समय हाईकोर्ट आरोपों के स्वरूप, इसके समर्थन वाले साक्ष्यों और मौजूदा मामले में साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की समुचित आशंका की संभावना का पता लगाए बगैर ही न्यायोचित तरीके से अपने विवेक का इस्तेमाल करने में विफल रहा.
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हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने 23 मार्च को कार्ति को जमानत प्रदान कर दी थी. सीबीआई ने कार्ति को 28 फरवरी को गिरफ्तार किया था. एकल न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा था कि राहत से उस समय तक इंकार नहीं करना चाहिए जब तक कि अपराध बहुत ही अधिक गंभीर न हो और जिसके लिए अधिक कठोर दंड का प्रावधान हो. उच्च न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की थी कि उसकी तत्कालीन कंपनी चेस मैनेजमेन्ट सर्विसेज (प्रा) लिमिटेड और एडवान्टेज स्ट्रैटेजिक कंसल्टिंग प्रा लि के बीच 'सांठगांठ' के बारे में साक्ष्य हैं, जिसने आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड से कथित मंजूरी दिलाने के लिए दस लाख रुपये का भुगतान प्राप्त किया था. लेकिन कार्ति को जमानत से इंकार करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि चेक से लिए गए इस भुगतान को कंपनी के रिकार्ड में दर्शाया गया है.
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सीबीआई ने पिछले साल 15 मई को दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में कार्ति को गिरफ्तार किया था. आरोप है कि 2007 में विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड ने आईएनएक्स मीडिया को विदेश से 305 करोड़ रुपये की रकम प्राप्त करने के लिए अनुमति प्रदान करने में अनियमित्तायें की. इस समय कार्ति के पिता पी चिदंबरम केंद्रीय वित्त मंत्री थे. सीबीआई ने शुरू में आरोप लगाया था कि कार्ति ने आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड से मंजूरी दिलाने के लिए दस लाख रुपए की रिश्वत ली. बाद में उसने इस आंकड़े में परिवर्तन करते हुए इसे दस लाख अमेरिकी डॉलर बताया था.
(इनपुट : भाषा)
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