यह ख़बर 31 जनवरी, 2012 को प्रकाशित हुई थी

भ्रष्ट जनसेवकों के खिलाफ 4 महीने में चले मुकदमा

खास बातें

  • जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंत्रियों के खिलाफ केस की अनुमति देने का फैसला चार महीने में हो जाना चाहिए।
नई दिल्ली:

सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने वाले आवेदन पर केंद्र सरकार से मंगलवार को तीन महीने के भीतर निर्णय लेने को कहा।

न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की खंडपीठ ने कहा कि यदि सरकार महान्यायवादी की राय लेना चाहेगी तो उस मामले में समय सीमा एक महीने और बढ़ाई जा सकती है। वहीं, न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि यदि सरकार इस तरह के किसी आवेदन पर निर्णय कर पाने में विफल होती है तो उस आवेदन को मंजूर मान लिया जाए। उन्होंने संसद को भी सुझाव दिया कि उसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 में संशोधन पर विचार करना चाहिए, ताकि मुकदमे की अनुमति चाहने वाले आवेदनों पर निर्णय लेने की समय सीमा निर्धारित की जा सके।

इसके साथ ही न्यायालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों को इसके लिए कड़ी फटकार लगाई कि उन्होंने प्रधानमंत्री को सही परामर्श नहीं दिया। न्यायालय ने हालांकि इस मामले में देरी के लिए प्रधानमंत्री को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया।

न्यायालय ने यह निर्देश जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि 2जी घोटाले में पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी के लिए दिए गए उनके आवेदन का प्रधानमंत्री ने 16 महीने तक जवाब नहीं दिया।

न्यायालय के इस आदेश पर जहां मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और स्वामी ने केंद्र सरकार के खिलाफ हमलावर तेवर अपना रखे हैं, वहीं कांग्रेस ने इस पर सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि न्यायालय के फैसले में मनमोहन सिंह को 'निर्दोष' बताया गया है।

इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए खंडपीठ ने कहा, "जिनसे प्रतिवादी संख्या एक (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) को उचित सलाह देने और उनके समक्ष कानूनी पक्ष रखने की अपेक्षा की जाती है, दुर्भाग्यवश वे ऐसा करने में विफल रहे। प्रतिवादी एक जिस पद पर हैं, उनसे उनके समक्ष पेश हर मामले में मिनट-मिनट की जानकारी पर व्यक्तिगत रूप से नजर बनाए रखने की अपेक्षा नहीं की जाती, बल्कि इसके लिए वह अपने सलाहकारों तथा अन्य अधिकारियों पर निर्भर होते हैं।"

प्रधानमंत्री कार्यालय ने न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, "सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के आलोक में इस पर विचार कर रही है कि ऐसे आवेदनों से किस प्रकार निपटा जाए।"

केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा, "मंजूरी प्रदान करने वाले सभी प्राधिकार को न्यायालय के निर्देशों का अनुसरण करना है।"

उधर, स्वामी ने न्यायालय के इस आदेश को भारतीय संविधान के लिए एक बड़ी जीत बताया। उन्होंने कहा, "इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जीत सम्भव हो सकेगी। न्यायालय के आदेश से भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी का मुद्दा सुलझ गया है। यह एक बड़ी बाधा थी।"

वहीं, भाजपा ने इसे केंद्र सरकार के मुंह पर तमाचा बताया। पार्टी के वरिष्ठ नेता बलबीर पुंज ने संवाददाताओं से कहा, "भाजपा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करती है। यह निर्णय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के मुंह पर तमाचा है।"

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कांग्रेस ने इस पर सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी नेताओं ने इस पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से पहले फैसले के पूर्ण अध्ययन की बात कही। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा, "हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन पार्टी इसे पढ़े बिना कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहती।"