प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नोटबंदी की कवायद को बड़ी राहत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बैंक खाताधारकों पर नगदी निकालने की सीमा तय किए जाने का फैसला एक नीतिगत निर्णय है, जो न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है.
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने यह फैसला उस अर्जी पर सुनाया जिसमें बैंकों से रोजाना नगदी निकालने की सीमा तय करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी. पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसमें 'दम नहीं है' क्योंकि 'गैर-नगद लेन-देन' पर कोई 'बंदिश नहीं' है.
न्यायालय ने कहा, "यह भी जोड़ा जा सकता है कि विशिष्ट राशि के बैंक नोटों को नौ नवंबर 2016 से वापस लेने के फैसले को अमल में लाने का तौर-तरीका एक नीतिगत निर्णय है, जो न्यायिक समीक्षा के अधिकार के दायरे से बाहर है." पीठ ने कहा, "कानून निर्धारित है कि अदालत तभी दखल दे सकती है जब तैयार की गई नीति पूरी तरह मनमानी हो या तर्कसंगत नहीं हो और लचीला नहीं हो और असत्यापित बयान हो, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन होता हो."
उच्च न्यायालय का आदेश अहम है क्योंकि नोटबंदी से जुड़े मामले से उच्चतम न्यायालय को भी अवगत कराया गया है और आठ नवंबर की अधिसूचना को चुनौती देने वाली अर्जियों पर शीर्ष अदालत में सुनवाई हो रही है. उच्चतम न्यायालय केंद्र की उस अर्जी पर भी सुनवाई कर रहा है जिसमें अलग-अलग उच्च न्यायालयों में लंबित ऐसी सभी याचिकाओं को या तो शीर्ष न्यायालय या किसी एक उच्च न्यायालय में भेजने की गुजारिश की गई है.
पीठ ने 25 नवंबर को वह अपील खारिज कर दी थी जो एक उद्योगपति अशोक शर्मा ने दायर की थी. इस अपील में केंद्र सरकार को, 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट अमान्य किए जाने के फैसले से पहले बैंकों में लोगों द्वारा जमा किए गए धन को रोज निकालने पर लगाई गई रोक को हटाने का आदेश देने की मांग की गई थी.
उच्च न्यायालय ने अपना पूर्व का आदेश वापस लेने की मांग कर रहे आवेदन पर 30 नवंबर को अपना फैसला आज तक के लिए सुरक्षित रख लिया था. अपील में आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार ने अदालत में झूठा बयान दिया कि बैंकों से 24,000 रुपये निकालने की सीमा केवल 24 नवंबर तक थी जबकि यह सीमा अवधि बढ़ा कर 30 दिसंबर कर दी गई है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने यह फैसला उस अर्जी पर सुनाया जिसमें बैंकों से रोजाना नगदी निकालने की सीमा तय करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी. पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसमें 'दम नहीं है' क्योंकि 'गैर-नगद लेन-देन' पर कोई 'बंदिश नहीं' है.
न्यायालय ने कहा, "यह भी जोड़ा जा सकता है कि विशिष्ट राशि के बैंक नोटों को नौ नवंबर 2016 से वापस लेने के फैसले को अमल में लाने का तौर-तरीका एक नीतिगत निर्णय है, जो न्यायिक समीक्षा के अधिकार के दायरे से बाहर है." पीठ ने कहा, "कानून निर्धारित है कि अदालत तभी दखल दे सकती है जब तैयार की गई नीति पूरी तरह मनमानी हो या तर्कसंगत नहीं हो और लचीला नहीं हो और असत्यापित बयान हो, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन होता हो."
उच्च न्यायालय का आदेश अहम है क्योंकि नोटबंदी से जुड़े मामले से उच्चतम न्यायालय को भी अवगत कराया गया है और आठ नवंबर की अधिसूचना को चुनौती देने वाली अर्जियों पर शीर्ष अदालत में सुनवाई हो रही है. उच्चतम न्यायालय केंद्र की उस अर्जी पर भी सुनवाई कर रहा है जिसमें अलग-अलग उच्च न्यायालयों में लंबित ऐसी सभी याचिकाओं को या तो शीर्ष न्यायालय या किसी एक उच्च न्यायालय में भेजने की गुजारिश की गई है.
पीठ ने 25 नवंबर को वह अपील खारिज कर दी थी जो एक उद्योगपति अशोक शर्मा ने दायर की थी. इस अपील में केंद्र सरकार को, 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट अमान्य किए जाने के फैसले से पहले बैंकों में लोगों द्वारा जमा किए गए धन को रोज निकालने पर लगाई गई रोक को हटाने का आदेश देने की मांग की गई थी.
उच्च न्यायालय ने अपना पूर्व का आदेश वापस लेने की मांग कर रहे आवेदन पर 30 नवंबर को अपना फैसला आज तक के लिए सुरक्षित रख लिया था. अपील में आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार ने अदालत में झूठा बयान दिया कि बैंकों से 24,000 रुपये निकालने की सीमा केवल 24 नवंबर तक थी जबकि यह सीमा अवधि बढ़ा कर 30 दिसंबर कर दी गई है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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