प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के वाराणसी से निर्वाचन के खिलाफ BSF के पूर्व जवान तेज बहादुर द्वारा दाखिल अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है. केंद्र सरकार ने कोर्ट से मामले की सुनवाई दिवाली के बाद करने की अपील की. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मांग मानते हुए मामले की सुनवाई टाली. तेज बहादुर ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट का मानना था कि तेज बहादुर न तो वाराणसी के वोटर हैं और न ही प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उम्मीदवार थे. इस आधार पर उसका इलेक्शन पिटीशन दाखिल करने का कोई औचित्य नहीं बनता.
पिछले साल दिसंबर में पीएम मोदी के वाराणसी लोकसभा सीट से निर्वाचन को चुनौती देने वाली बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर की चुनाव याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. कोर्ट ने माना कि याचिका विचार करने योग्य ही नहीं है. जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने अपने 58 पेज के फैसले में कहा कि याची तेज बहादुर न ही वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के मतदाता हैं और न ही वे वाराणसी सीट से उम्मीदवार हैं, इसलिए उन्हें चुनाव याचिका दाखिल करने का कोई अधिकार नहीं है.
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वाराणसी सीट से नामांकन दाखिल करने वाले बीएसएफ के बर्खास्त सिपाही तेज बहादुर यादव ने पीएम मोदी के निर्वाचन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनाव याचिका दाखिल की थी. चुनाव याचिका में तेज बहादुर ने पीएम नरेंद्र मोदी का चुनाव रद्द करने की मांग की थी. उन्होंने याचिका में आरोप लगाया था कि पीएम के दबाव में गलत तरीके से चुनाव अधिकारी ने उनका नामांकन रद्द किया. तेज बहादुर यादव को समाजवादी पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया था. चुनाव याचिका पर चली लम्बी बहस और सभी पक्षों को सुनने के बाद 23 अक्टूबर, 2019 को हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था.
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कोर्ट ने तेज बहादुर यादव की चुनाव याचिका खारिज की कि वे वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के वोटर नहीं हैं. इसके साथ ही नामांकन खारिज होने के बाद वे वाराणसी सीट से प्रत्याशी भी नहीं रह गए थे, जबकि निर्वाचन को वही व्यक्ति चुनौती दे सकता है, जो वाराणसी लोकसभा क्षेत्र का वोटर हो और प्रत्याशी भी रहा हो. चुनाव याचिका में तेज बहादुर यादव का आरोप था कि उनका नामांकन बीएसएफ से बर्खास्त होने के चलते रद्द किया गया है, जबकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अगर किसी सरकारी कर्मचारी को उसके पद से बर्खास्त किया जाता है तो वह पांच साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकता है जब तक कि चुनाव आयोग उस व्यक्ति को इस बात का सर्टिफिकेट न जारी करे कि देशद्रोह और भ्रष्टाचार के आरोप में उसे बर्खास्त नहीं किया गया है. चुनाव आयोग से सर्टिफिकेट न लेने के कारण ही तेज बहादुर यादव का नामांकन 1 मई, 2019 को रद्द किया गया था.
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