अरविंद परगढ़िया.
नई दिल्ली:
काले धन की अर्थव्यवस्था के खिलाफ अपना घेरा और कसते हुए सरकार कर अधिकारियों के विवेकाधीन अधिकारों में कटौती कर सकती है. नीति आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि कर चोरी में देनदारी तय करने के मामले में अधिकारियों के अधिकारों में कटौती की जा सकती है.
उन्होंने कहा कि बेहिसाबी धन के खिलाफ जारी कार्रवाई के बीच ‘बुक में’ संपत्ति सौदों में इजाफा हो सकता है. ऐसे में रीयल एस्टेट क्षेत्र के लिए स्टाम्प शुल्क में भी कटौती हो सकती है.
पनगढ़िया ने एक निजी टीवी चैनल से साक्षात्कार में कहा, ‘‘इसके साथ ही हमें पीछे चलकर कर सुधारों के पूरे सेट के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा. इससे सरलीकरण तथा परिभाषा में सरलता आएगी. इससे इस मामले में कर अधिकारियों के विवेकाधीन अधिकार या तो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे या उनमें कमी आएगी.’’ एशियाई विकास बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री पनगढ़िया से सरकार की 8 नवंबर की 500 और 1,000 का नोट बंद करने की घोषणा के मद्देनजर संभावित उपायों के बारे में पूछा गया था.
उन्होंने कहा कि जब कर अधिकारियों के पास अधिक विवेकाधीन अधिकार होते हैं तो काफी कर अपवंचना होती है. ऐसे में हमें इसे सरल करने की जरूरत है. पनगढ़िया ने कहा कि सरलीकरण का मतलब है कि कर छूटों को समाप्त करना. इसके अतिरिक्त हमें स्थिति को बेहतर तरीके से परिभाषित करने की जरूरत है, जिससे कर अधिकारियों के लिए विवेकाधीन अधिकारों का मामला न बचे.
उन्होंने कहा कि सरकार रीयल एस्टेट क्षेत्र में कर चोरी करने वालों के खिलाफ प्रवर्तन की कार्रवाई तेज कर रही है. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही ऊंचे स्टाम्प शुल्क की चिंता को भी दूर किया जाना चाहिए.
नीति आयोग के प्रमुख ने कहा कि रीयल एस्टेट क्षेत्र में हम इसका प्रवर्तन बेहतर तरीके से करेंगे. लेकिन हमें स्टाम्प शुल्क का मुद्दा हल करना होगा. क्या यह बहुत ऊंचा है? यदि लेनदेन साफ सुथरे तरीके से होता है, तो ऐसे में लेनदेन की राशि में बढ़ोतरी होगी.
यह पूछे जाने पर कि क्या स्टाम्प शुल्क में कटौती की संभावना है, पनगढ़िया ने कहा कि इसे हम मेज पर लाना चाहेंगे. पनगढ़िया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े नोटों को बंद करने के कदम की जोरदार वकालत की. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कई अर्थशास्त्री इसकी आलोचना कर चुके हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘पूर्व में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में भ्रष्टाचार को समाप्त करने का ऐसा प्रयास नहीं हुआ. ऐसा पहली बार हुआ है जबकि विकासशील अर्थव्यवस्था का कोई प्रधानमंत्री कह रहा है कि वह इसे समाप्त करेगा और वह प्रणालीगत तरीके से इस दिशा में आगे बढ़ रहा है.’’ उन्होंने नोटबंदी को एक आवश्यक कदम बताया. ‘‘यह पहली बार हुआ है. जो कदम उठाया गया है वह जरूरी था. लेकिन यह आखिरी कदम नहीं है.’’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
उन्होंने कहा कि बेहिसाबी धन के खिलाफ जारी कार्रवाई के बीच ‘बुक में’ संपत्ति सौदों में इजाफा हो सकता है. ऐसे में रीयल एस्टेट क्षेत्र के लिए स्टाम्प शुल्क में भी कटौती हो सकती है.
पनगढ़िया ने एक निजी टीवी चैनल से साक्षात्कार में कहा, ‘‘इसके साथ ही हमें पीछे चलकर कर सुधारों के पूरे सेट के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा. इससे सरलीकरण तथा परिभाषा में सरलता आएगी. इससे इस मामले में कर अधिकारियों के विवेकाधीन अधिकार या तो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे या उनमें कमी आएगी.’’ एशियाई विकास बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री पनगढ़िया से सरकार की 8 नवंबर की 500 और 1,000 का नोट बंद करने की घोषणा के मद्देनजर संभावित उपायों के बारे में पूछा गया था.
उन्होंने कहा कि जब कर अधिकारियों के पास अधिक विवेकाधीन अधिकार होते हैं तो काफी कर अपवंचना होती है. ऐसे में हमें इसे सरल करने की जरूरत है. पनगढ़िया ने कहा कि सरलीकरण का मतलब है कि कर छूटों को समाप्त करना. इसके अतिरिक्त हमें स्थिति को बेहतर तरीके से परिभाषित करने की जरूरत है, जिससे कर अधिकारियों के लिए विवेकाधीन अधिकारों का मामला न बचे.
उन्होंने कहा कि सरकार रीयल एस्टेट क्षेत्र में कर चोरी करने वालों के खिलाफ प्रवर्तन की कार्रवाई तेज कर रही है. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही ऊंचे स्टाम्प शुल्क की चिंता को भी दूर किया जाना चाहिए.
नीति आयोग के प्रमुख ने कहा कि रीयल एस्टेट क्षेत्र में हम इसका प्रवर्तन बेहतर तरीके से करेंगे. लेकिन हमें स्टाम्प शुल्क का मुद्दा हल करना होगा. क्या यह बहुत ऊंचा है? यदि लेनदेन साफ सुथरे तरीके से होता है, तो ऐसे में लेनदेन की राशि में बढ़ोतरी होगी.
यह पूछे जाने पर कि क्या स्टाम्प शुल्क में कटौती की संभावना है, पनगढ़िया ने कहा कि इसे हम मेज पर लाना चाहेंगे. पनगढ़िया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े नोटों को बंद करने के कदम की जोरदार वकालत की. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कई अर्थशास्त्री इसकी आलोचना कर चुके हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘पूर्व में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में भ्रष्टाचार को समाप्त करने का ऐसा प्रयास नहीं हुआ. ऐसा पहली बार हुआ है जबकि विकासशील अर्थव्यवस्था का कोई प्रधानमंत्री कह रहा है कि वह इसे समाप्त करेगा और वह प्रणालीगत तरीके से इस दिशा में आगे बढ़ रहा है.’’ उन्होंने नोटबंदी को एक आवश्यक कदम बताया. ‘‘यह पहली बार हुआ है. जो कदम उठाया गया है वह जरूरी था. लेकिन यह आखिरी कदम नहीं है.’’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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