आखिर क्यों बिहार में JDU और BJP के रिश्ते सामान्य नहीं हो रहे हैं

पटना के जलजमाव से एक बात साफ हैं कि बिहार भाजपा में अब दो गुट हैं एक उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी का और दूसरा गिरिराज का.  

आखिर क्यों  बिहार में JDU और BJP के रिश्ते सामान्य नहीं हो रहे हैं

बीजेपी-जेडीयू के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हैं. (फाइल फोटो)

पटना:

बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए में सब शांत हैं लेकिन सब कुछ असामान्य है. ऐसा पिछले एक हफ़्ते के दौरान भाजपा के नेताओं ख़ासकर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा जलजमाव के बहाने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 'पानी -पानी' करने के उद्देश्य से जो हर दिन बयानों और ट्वीट का दौर चला था वह भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के हस्तक्षेप के बाद फ़िलहाल थम गया है. लेकिन दोनों दलों के नेता मानते हैं कि सब कुछ सामान्य नहीं है जिसके कारण कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति है. हालांकि आने वाले दिन में रिश्ते में तनाव और एक असमंजस की इस स्थिति का एक लोकसभा सीट और पांच विधान सभा सीट के प्रचार पर शायद इसका असर ना पड़े और किशनगंज विधानसभा सीट को छोड़कर सभी सीटें एनडीए अपने क़ब्ज़े में रखने में कामयाब हो. लेकिन दोनों दलों में कुछ बातों को लेकर अब किसी को संशय नहीं है लेकिन इस विवाद के जड़ में क्या हैं उसको लेकर अभी माथापच्ची हो रही है.

पटना के जलजमाव से एक बात साफ हैं कि बिहार भाजपा में अब दो गुट हैं एक उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी का और दूसरा गिरिराज का.  जहां पटना की बाढ़ और जलजमाव से मोदी की प्रशासनिक कुशलता पर सवाल हो रहे हैं. वहीं तेजस्वी यादव और सुशील मोदी और बीजेपी विधायक जब राहत और बचाव कार्य से दूर रहे तो उसी बीच पूर्व सांसद पप्पू यादव जनता में ख़ूब वाह वाही बटोरी. गिरिराज सिंह अगर हर मुद्दे पर नीतीश कुमार को निशाने पर रखकर बोल रहे हैं तो उनके पीछे पार्टी नेतृत्व का भी शह मिला हुआ है इसको लेकर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में भी अब किसी को भ्रम नहीं है.

लेकिन जेडीयू नेताओं का भी व्यवहार, ख़ासकर गृहमंत्री अमित शाह को लेकर वह भी लक्ष्मण रेखा को लांघने के समान है. इस संदर्भ में पिछले महीने जब एनआरसी की रिपोर्ट आयी थी तब जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर का ट्वीट भी अमित शाह के रुख से अलग था. वैसे ही उनका ममता बनर्जी के लिए अपनेी कम्पनी के माध्यम से काम करना बीजेपी को पसंद नही है. हालांकि ये प्रशांत किशोर के लिए उपलब्धि की बात हो सकती हैं कि बंगाल में कुछ महीने के काम के बाद बीजेपी को उसका असर दिखने लगा है. 

वैसे ही पार्टी के एक और प्रवक्ता पवन वर्मा द्वारा भाजपा के आलोचना में अख़बार में उनके लेखों से भी बीजेपी ख़ुश नहीं है. ये बात भी सच हैं कि पिछले साल पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर की आक्रामक भूमिका और एबीवीपी के दफ़्तर तक में छापेमारी कराने के बाद बिहार बीजेपी के सभी वरिष्ठ नेताओं ने नीतीश से मिलकर विरोध जताया जिसके बाद प्रशांत किशोर को नीतीश ने लोकसभा चुनाव की तैयारी से प्रचार तक बिलकुल अलग रखा.

उनकी सक्रियता लोकसभा चुनाव के बाद उस समय बढ़ी जब सरकार के गठन में नीतीश कुमार के फॉर्म्यूला के तहत प्रतिनिधित्व को मोदी और शाह ने मानने से इनकार कर दिया था. इसके अलावा बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को झारखंड में नीतीश कुमार की अगुवाई में वहां के मुख्यमंत्री रघुबर दास के ख़िलाफ़ भाषणबाज़ी भी पसंद नहीं आयी. 

हालांकि जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का कहना हैं कि बीजेपी भूल जाती है कि नीतीश कुमार ने उनके आग्रह पर अपना मैनिफ़ेस्टो भी लोकसभा चुनाव के दौरान जारी नहीं किया था. साथ ही मीडिया से इस बात पर दूरी बनाए रखी कि वो बार-बार उसे विवादास्पद मुद्दों के बारे में ही बात करेंगे और जो भी उनका जवाब होगा उसका हर व्यक्ति अपने हिसाब से अर्थ निकाले जाएंगे और कार्यकर्ताओं में कोई असमंजस की स्थिति ना रहे. अगर आज BJP आक्रमक है और नगर विकास विभाग पटना नगर निगम में सालों से कब्जा होने के बाद भी अगर जल जमाव के लिए ठीकरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर फोड़ रही है तो वो भी उनकी सोची समझी रणनीति का ही हिस्सा है.

जनता दल यूनाइटेड के नेता कहते हैं कि उनके पास भी फीडबैक है. जहां  संविधान की धारा 370 ख़त्म करने के बाद देश के अन्य भागों की तरह बिहार में भी ध्रुवीकरण बढ़ा है तो राम मंदिर के मुद्दे पर अगर फ़ैसला पक्ष में आ जाएगा उसके बाद माहौल बीजेपी के लिए और अनुकूल हो सकता है. ऐसे में बीजेपी हर छोटे मुद्दों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर सरकार में रहने के बावजूद मुख्यमंत्री को घेरने की कोशिश करेगी.

हालांकि BJP और जनता दल यूनाइटेड दोनों के नेता यह भी मानते हैं कि इस खींचातानी का असल मक़सद अगले साल विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर जो बातचीत होनी है उसके लिए अभी से दबाव की राजनीति शुरू हो गई है, जहां BJP का कहना है कि जैसा लोकसभा में पिछली बार दो सीट जीतने के बावजूद BJP ने नीतीश कुमार को बराबरी से सीट से बंटवारा हुआ तो तो उसी फ़ॉर्मूले के आधार पर विधानसभा चुनावों के लिए दोनों दल बराबरी-बराबरी से सीटों पर लड़ने के लिए सहमत हों.


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