देश में आनुपातिक आधार पर सबसे बड़ी युवा आबादी वाले प्रांत बिहार के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) में इस बार डिजिटल प्रचार निर्णायक साबित हो सकता है. राज्य में करीब एक चौथाई मतदाता 30 साल से कम उम्र के हैं. ऐसे में मनोरंजन से लेकर खबरों की थाह लेने के लिए छह से आठ घंटे स्मार्टफोन पर बिताने वाला युवा वोटर चुनावी पासे को किसी भी ओर पलट सकता है.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में करीब 7.29 करोड़ मतदाता हैं. इसमें 24.5 फीसदी यानी करीब 1.77 करोड़ मतदाता 18 से 29 वर्ष के आयु वर्ग के हैं. जबकि तीन करोड़ 66 लाख मतदाताओं की उम्र 18 से 39 साल के बीच है. ऐसे में सियासी दलों की डिजिटल प्रचार की रणनीति बेहद मायने रखेगी. लोकसभा चुनाव के बाद बढ़े मतदाताओं की बात करें तो करीब सात लाख वोटर लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार वोट डाल सकेंगे. राज्य के 7.29 करोड़ मतदाताओं में करीब 3.85 करोड़ पुरुष और 3.44 करोड़ महिलाएं हैं.
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रैलियों और वाहनों के रेले पर रोक रहेगी
चुनाव प्रचार से जुड़े सोशल मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि कोरोना काल में रैलियों और वाहनों के रेले पर रोक रहेगी. चुनाव आयोग के अंकुश के कारण रैलियों में इस बार जन सैलाब देखने को नहीं मिलेगा. सोशल डिस्टेंसिंग के कारण 5-10 कार्यकर्ताओं या वाहनों की टोली में ही प्रचार होगा, ऐसे में डिजिटल प्रचार की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. खासकर युवा वोटरों पर इसका अहम प्रभाव देखने को मिलेगा. बिहार की 57 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र की है.
गांवों में भी छाप छोड़ेगा ऑनलाइन कैंपेन
विश्लेषकों का कहना है कि राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब या लोकप्रिय वीडियो शेयरिंग ऐप का रुख कर सकते हैं. चुनाव प्रबंधन कंपनी डिजाइनबॉक्स्ड के निदेशक और डिजिटल कंपेन एक्सपर्ट नरेश अरोड़ा कहना है कि भले ही बिहार के शहरी इलाकों में ही सिर्फ 11 फीसदी आबादी हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी चुनाव प्रचार में इसका चलन बढ़ेगा. क्योंकि गांवों में लोग सूचनाएं पाने के लिए टीवी की बजाय स्मार्टफोन पर ज्यादा निर्भर रहने लगे हैं. ऐसे में चुनाव आयोग को भी गलत तरीके से डिजिटल माध्यमों पर चुनाव खर्च करने वालों की निगरानी बढ़ाने के लिए कदम उठाने होंगे.
दस गुना तक बढ़ेगा पिछले चुनाव के मुकाबले खर्च
अरोड़ा के मुताबिक, प्रत्याशियों और दलों का डिजिटल प्रचार का खर्च पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले दस गुना तक बढ़ेगा. बीजेपी के अलावा युवाओं को रिझाने के लिए राजद भी डिजिटल कैंपेन पर ज्यादा फोकस कर रही है. जदयू इस मामले में थोड़ा पीछे है. ऑनलाइन प्रचार तो पहले से है, लेकिन कोरोना काल के बाद यह हिन्दी बेल्ट में और देश के दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में डिजिटल कैंपेन नया ट्रेंड सेट करेगा.
सोशल मीडिया पर सक्रिय दो तिहाई युवा
स्टैस्टिटा की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश में करीब 29 करोड़ युवा फेसबुक और 20 करोड़ व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं. इसमें से 74 फीसदी 19 से 24 साल के युवा हैं, जो रोजाना करीब ढाई घंटे समाचार और सामाजिक गतिविधियों के लिए सोशल मीडिया पर बिताते हैं. अगर बिहार में भी कमोवेश यही ट्रेंड माना जाए तो कोई भी दल डिजिटल कंपेन की अनदेखी नहीं कर सकता.
भाजपा ने की थी डिजिटल रैली की पहल
वर्ष 2014 से ही धुआंधार डिजिटल प्रचार का लाभ उठा रही भाजपा ने कोरोना काल में भी देश भर में डिजिटल जनसंवाद रैलियां की थीं. गृह मंत्री अमित शाह ने सात जून को बिहार में ऐसी ही एक रैली को संबोधित किया था. पार्टी का दावा है कि रैली को डिजिटल मंचों से 14 लाख लोगों ने सुना और देखा. इसमें 1.5 लाख यूट्यूब और 64 हजार ट्विटर के जरिये लाइव रैली में शामिल हुए. चुनाव के दौरान पार्टी की ओर से ऐसी ही रैलियां देखने को मिल सकती हैं. स्टार प्रचारकों की इन रैलियों का खर्च भी प्रत्याशियों के खाते में नहीं जुड़ेगा.
बड़ा सवाल- मतदान प्रतिशत बढ़ेगा या नहीं
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में 58 फीसदी वोट पड़े थे. कोरोना काल में चुनाव आयोग ने मतदान का वक्त एक घंटे बढ़ा दिया है. 80 साल से ज्यादा उम्र के वोटरों को पोस्टल बैलेट का विकल्प भी दिया है. साथ ही 1500 की जगह एक हजार वोटर पर एक बूथ बनाने का निर्णय किया है. ऐसे में देखना होगा कि डिजिटल प्रचार वोटरों को किस कदर बूथ तक खींच पाता है.
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