जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि जब तक बीजेपी-नीतीश कुमार गठबंधन बरकरार है, "हमें प्रचंड बहुमत मिलने को लेकर कोई भ्रम नहीं है." एनडीए के नेताओं के एक वर्ग का कहना है कि नीतीश कुमार को महीनों तक निशाने पर बनाए रखने का चिराग पासवान का कदम बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के मौन समर्थन के बिना संभव नहीं था.
एलजेपी ने राज्य-स्तर पर "वैचारिक मतभेद" का हवाला दिया है और कहा है कि वह "बिहार विजन डॉक्यूमेंट" को लागू करना चाहता है, जिस पर वह जेडीयू के साथ आम सहमति तक पहुंच गया है. एलजेपी ने कहा है कि "बीजेपी के साथ हमारा मजबूत गठबंधन है और बिहार में भी हम इस सहयोग को जारी रखना चाहते हैं. हमारे संबंधों में कोई खटास नहीं है."
एलजेपी का फैसला जेडीयू के साथ कई महीनों से चल रहे विवाद के बाद आया है. राज्य में कोरोनो वायरस संकट से निपटने और नीतीश कुमार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को एनडीए में शामिल करने जैसे कई मुद्दे हैं जिनको लेकर विवाद चलता रहा है. मांझी दलित नेता हैं और पासवान का भी दलित समाज में जनाधार है. एलजेपी की बैठक में चिराग पासवान राज्य की सत्ता का शीर्ष पद पाने की अपनी महत्वाकांक्षाओं को व्यक्त करने में शर्मिंदा भी नहीं हुए.
एलजेपी ने सीटों के बंटवारे पर जल्द निर्णय लेने की भी मांग की थी लेकिन इस पर बीजेपी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. एलजेपी के बार-बार यह स्पष्ट करने के बावजूद कि वह उचित संख्या में सीटें नहीं मॉिलने पर जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ेगी, बीजेपी अब तक इस मुद्दे पर चुप रही है, पिछले हफ्ते एलजेपी ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ बैठक में एक अल्टीमेटम दिया लेकिन इस मामले में कोई गति नहीं आई.
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आज एलजेपी के जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ने के ऐलान से पहले सूत्रों ने सीटें साझा करने की व्यवस्था के बारे में कहा था कि जेडीयू को 243 में से 122 सीटें मिलेंगी, जबकि बीजेपी को 121 सीटें मिलेंगी. बीजेपी के अपने हिस्से में से लोक जनशक्ति पार्टी को सीटें देने की उम्मीद है.
बीजेपी की ओर से कोई फैसला नहीं आने के बाद एलजेपी ने आज दोपहर में दिल्ली में पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक में अपना फैसला किया. उसका फैसला ऐसे समय में आया है जब पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान बीमार हैं. उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी.
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सूत्रों ने कहा कि चिराग पासवान को इस बात का दुख है कि नीतीश कुमार ने उनके पिता के स्वास्थ्य के बारे में कभी कुछ नहीं पूछा, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अमित शाह जैसे बीजेपी के वरिष्ठ नेता उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेते रहे.
साल 2005 में भी लोक जनशक्ति पार्टी ने इसी तरह की रणनीति अपनाई थी. तब एलजेपी ने लालू यादव की आरजेडी की सरकार को एक और कार्यकाल के लिए जीतने से रोकने में अहम भूमिका निभाई थी. उस समय कांग्रेस-आरजेडी की सहयोगी रही एलजेपी ने सिर्फ लालू यादव की पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. इसके परिणामस्वरूप त्रिशंकु विधानसभा बनी थी. उसके बाद हुए चुनावों में नीतीश कुमार को अपनी पहली सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें मिल गई थीं.
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