बिहार का इमामगंज (सुरक्षित) विधानसभा सीट रोचक सियासी मुकाबले के लिए जाना जाता है. फिलहाल यहां से पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) मौजूदा विधायक हैं. साल 2015 में उन्होंने लालू-नीतीश के गठजोड़ वाले महागठबंधन के उम्मीदवार और सीटिंग असेंबली स्पीकर उदय नारायण चौधरी (Uday Narayan Chaudhary) को करीब 30,000 वोटों के अंतर से हराया था. उस वक्त चौधरी के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर हावी था. मांझी पहली बार इस सीट से किस्मत आजमा रहे थे, साथ ही राज्य में लालू-नीतीश गठजोड़ की लहर थी, बावजूद इसके एनडीए की तरफ से हम उम्मीदवार मांझी की ही जीत हुई थी.
बदल चुका 2015 का सियासी समीकरण
इमामगंज सीट औरंगाबाद लोकसभा सीट के तहत पड़ता है. 2015 के बाद यहां का सियासी समीकरण बदल चुका है. अब जीतनराम मांझी फिर से एनडीए खेमे में हैं, जबकि उदय नारायण चौधरी जेडीयू छोड़कर राजद का लालटेन थाम चुके हैं. माना जा रहा है कि इस सीट पर फिर से इन दोनों नेताओं के बीच जबर्दस्त सियासी टक्कर देखने को मिलेगी. यहां पहले चरण में 28 अक्टूबर को मतदान होना है.
डेढ़ दशक से लालू परिवार का गढ़ है राघोपुर विधानसभा सीट, तेजस्वी दूसरी बार किस्मत आज़माने को बेकरार
पांच बार जीत चुके उदय नारायण चौधरी
पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी इमामगंज से 1990, 2000, 2005 फरवरी और 2005 के नवंबर में हुए चुनावों में जीते दर्ज कर चुके हैं. 2010 में भी उन्होंने इसी सीट से जीत का परचम लहराया था और विधानसभा के अध्यक्ष बने थे लेकिन पांच साल बाद हार गए. 2015 के चुनाव में जीतनराम मांझी को इमामगंज सीट से 79,389 और उदयनरायण चौधरी को 49,981 मत मिले थे. उदय नारायण चौधरी उस वक्त जेडीयू के उम्मीदवार थे.
नीतीश ने मांझी को दी है सलाह
जीतनराम मांझी ने पहले अपनी उम्र का हवाला देकर चुनाव नहीं लड़ने की बात कही थी लेकिन महागठबंधन को छोड़ फिर से एनडीए में जाना और खासकर सीएम नीतीश का करीबी बनना, इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि मांझी एकबार फिर से इमामगंज से ताल ठोक सकते हैं. माना जा रहा है कि नीतीश ने खुद मांझी को चौधरी के खिलाफ उतरने की सलाह दी है.
बिहार चुनाव: नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी यादव की हैं ये पांच चुनौतियां
मांझी-यादव-कोयरी वोटर की बहुलता
अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित इस सीट पर मुसहर (मांझी) मतदाताओं की बहुलता है. इसके अलावा यादव, कोयरी-कुशवाहा और मुस्लिमों की आबादी भी अच्छी है. झारखंड की सीमा से सटे होने और बहुत पिछड़े होने की वजह से कई इलाकों में नक्सलियों का भी बोलबाला है. पहले यह सीट चतरा लोकसभा क्षेत्र के तहत आता था लेकिन राज्य बंटवारे के बाद अब यह औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के तहत आता है. औरंगाबाद सीट से बीजेपी के सुशील कुमार सिंह सांसद हैं.
1957 में हुआ था इमामगंज सीट का गठन
इस सीट पर सबसे पहले 1957 में चुनाव हुआ था. रानीगंज के जमींदार अंबिका प्रसाद सिंह ने तब निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस की चंद्रावती देवी को हराया था. 1962 में दूसरे चुनाव में अंबिका प्रसाद सिंह ने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के नाते कांग्रेसी जगलाल महतो को हराया था. 1967 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दी गई. तब से यह सीट सुरक्षित है. यह इलाका जंगल औप पहाड़ों से भी घिरा है, जहां अभी भी मूलभूत सुविधाओं की कमी है.
वीडियो: बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे पर नहीं बन रही है बात
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं