आलमनगर सीट पर जीत का छक्का लगा चुके हैं मंत्री नरेंद्र नारायण यादव, पप्पू यादव अटका पाएंगे राह में रोड़ा?

1951 में ही इस सीट का गठन हो गया था. तब इस सीट पर हुए पहले चुनाव में गैर कांग्रेसी उम्मीदवार तनुकलाल यादव जीते थे. बाद में 1957 से 1972 तक लगातार पांच चुनावों में यहां से कांग्रेस उम्मीदवार जीतते रहे

आलमनगर सीट पर जीत का छक्का लगा चुके हैं मंत्री नरेंद्र नारायण यादव, पप्पू यादव अटका पाएंगे राह में रोड़ा?

खास बातें

  • 1995 से लगातार जीत रहे नरेंद्र नारायण यादव
  • नीतीश सरकार में हैं लघु सिंचाई और विधि मंत्री
  • 2015 में लोजपा उम्मीदवार को 43 हजार से ज्यादा वोट से हराया था
नई दिल्ली:

बिहार विधान सभा चुनावों में मधेपुरा जिला अक्सर चर्चा में रहता है. मधेपुरा जिले के तहत ही आलमनगर विधान सभा सीट आती है, जहां से नीतीश सरकार में मंत्री नरेंद्र नारायण यादव छह बार जीत चुके हैं और सातवीं बार जीत की तैयारी में हैं. नरेंद्र नारायण यादव इस सीट पर पहली बार 1995 में कांग्रेस उम्मीदवार को हराकर जीते थे. तब से लगातार वो जीतते आ रहे हैं. उन्होंने 1995, 2000, 2005 फरवरी. 2005 नवंबर, 2010 और 2015 का विधानसभा चुनाव जीता. पिछली बार यानी 2015 में उन्होंने लोजपा उम्मीदवार चंदन सिंह को 43 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था, शायद इसीलिए उन्हें मधेपुरा का अजातशत्रु कहा जाता है.

आलमनगर का जातीय समीकरण
आलमनगर विधानसभा सीट पर तकरीब सवा तीन लाख मतदाता हैं. इनमें 52 फीसदी पुरुष जबकि 48 फीसदी महिलाएं हैं. यह सीट यादव और मुस्लिम बहुल है. इनके अलावा यहां राजपूतों की भी अच्छी आबादी है. माय समीकरण के बावजूद यहां से लगातार जेडीयू की जीत हो रही है. 1995 में नरेंद्र नारायण यादव ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था, बाद में वो जेडीयू में शामिल हो गए.

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पप्पू यादव दे पाएंगे चुनौती?
जन अधिकार पार्टी प्रमुख पप्पू यादव का भी ये गढ़ रहा है. पप्पू यादव कई बार से मधेपुरा के सांसद रहे हैं. 2015 में उन्होंने अपनी नई पार्टी बना ली थी. 2015 में उनकी पार्टी के उम्मीदवार जय प्रकाश को इस सीट से मात्र 5333 वोट मिले थे. यानी मात्र 2.77 फीसदी लोगों ने ही उन्हों वोट दिया था लेकिन इस बार माना जा रहा है कि पप्पू यादव नरेंद्र नारायण यादव को चुनौती दे सकते हैं. हालांकि, लोजपा जो पिछली बार दूसरे नंबर पर रही थी, उसके और राजद के भी मैदान में उतरने से यहां का मुकाबला दिलचस्प हो गया है. 2015 में राजद और जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी यहां से ताल ठोक रही है.

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1990 से पहले कांग्रेस का गढ़ रही है ये सीट 
1951 में ही इस सीट का गठन हो गया था. तब इस सीट पर हुए पहले चुनाव में गैर कांग्रेसी उम्मीदवार तनुकलाल यादव जीते थे. बाद में 1957 से 1972 तक लगातार पांच चुनावों में यहां से कांग्रेस उम्मीदवार जीतते रहे. इनमें से दो बार कांग्रेस से यदुनंदन झा और तीन बार विद्याकर कवि जीतने में कामयाब रहे. 1977 में जब पूरे देश में जनता पार्टी की लहर थी, तब यहां से वीरेंद्र कुमार सिंह जीते. 1980 में फिर से यहां से कांग्रेस की जीत हुई. 1990 में वीरेंद्र सुमार सिंह दोबारा जनता दल के टिकट पर चुने गए लेकिन 1995 से लगातार नरेंद्र नारायण यादव जीतते आ रहे हैं.
 

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