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This Article is From Mar 17, 2015

गैस पीड़ितों का सवाल, 'कई और भोपाल' बनवाएगी मोदी सरकार?

गैस पीड़ितों का सवाल, 'कई और भोपाल' बनवाएगी मोदी सरकार?
पीएम मोदी की फाईल फोटो
भोपाल:

मध्य प्रदेश की राजधानी में दिसंबर 1984 में हुई गैस त्रासदी के पीड़ितों को आशंका है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अगर 'मेक इन इंडिया' नीति नहीं बदली तो त्रासदी फिर दोहरा सकती है।

दुनिया की भीषणतम त्रासदी के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड संयंत्र चलाने वाली अमेरिकी कंपनी डाओ केमिकल का प्रतिनिधि भोपाल की अदालत में चल रहे मामले की सुनवाई के दौरान लगातार दूसरी बार गैर हाजिर रहा। इससे गैस पीड़ितों में भारी रोष है।

गैस पीड़ितों के संगठनों ने मंगलवार को संयुक्त पत्रकारवार्ता आयोजित कर अपना रोष जताया। संगठनों का कहना है कि अगर अदालत की तीसरी सुनवाई में भी डाओ केमिकल्स का कोई प्रतिनिधि नहीं आता है तो इससे केंद्र व राज्य सरकार की कमजोरी ही उजागर होगी।

इन संगठनों ने सवाल खड़ा किया कि मोदी ने 'मेक इन इंडिया' अभियान का ऐलान तो कर दिया, लेकिन औद्योगिक इकाइयों में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम की शर्त नहीं रखी है। ऐसे में क्या यह मान लिया जाए कि मोदी सरकार विदेशी पूंजीपतियों को 'मेक इन मोर भोपाल्स इन इंडिया' का न्योता दे रहे हैं ?

पत्रकारवार्ता के दौरान भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा, भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन, डाओ-कार्बाइड के खिलाफ  बच्चे जैसे संघर्षरत संगठनों के प्रतिनिधि व कार्यकर्ता मौजूद थे।

भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षडंगी ने बताया कि अमेरिकी डाओ केमिकल्स कंपनी ने सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान दूसरी बार अदालत के आदेश की अवहेलना की। इसके पीछे भारत सरकार की कमजोरी और अपराधी कंपनियों को अमेरिकी सरकार द्वारा दिया जा रहा समर्थन जिम्मेदार है।

संगठनों ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को चिट्ठी लिखकर डाओ केमिकल्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

संगठनों ने बताया कि वर्ष 1984 के हादसे के लिए यूनियन कार्बाइड संयंत्र के प्रबंधन पर गैर इरादतन हत्या सहित गंभीर आरोप लगाए गए, लेकिन कंपनी का प्रबंधन 1992 से ही भोपाल जिला अदालत के आदेशों को नजरअंदाज करता रहा है। भोपाल के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने डाओ केमिकल्स को नोटिस भेजकर आदेशित किया था कि वह अदालत में हाजिर होकर यह बताए कि अपने किसी प्रतिनिधि को अदालत में पेश क्यों नहीं करते है।

संगठनों के अनुसार, डाओ केमिकल पर म्यूच्युअल लीगल असिस्टेंट्स संधि के तहत अमेरिकी गृह एवं न्याय मंत्रालय के सहयोग से अब तक दो बार नोटिस तामील किया जा चुका है, लेकिन कंपनी अब तक अदालत के नोटिसों की अवहेलना करती आ रही है।

संगठनों का आरोप है कि इस अमेरिकी कंपनी द्वारा भारत में छह से ज्यादा शाखाओं के जरिए व्यापार किया जा रहा है, इसके बावजूद भोपाल जिला अदालत के आदेश को न मनवा पाना भारत सरकार की विफलता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में सरकार की लगातार असफलता हाल में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित 'मेक इन इंडिया' अभियान के लिए खतरनाक संकेत है।

षडंगी ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका गए, अमेरिकी राष्ट्रपति भारत भी आए, मगर उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी का मसला नहीं उठाया। इतना ही नहीं, मोदी की मुलाकात डाओ केमिकल्स के प्रमुख एडरू लिवासिन से भी हुई, लेकिन इस मसले पर चर्चा नहीं की। यह संवेदनहीनता नहीं तो और क्या है?

षडंगी ने कहा कि गैस त्रासदी में हजारों लोगों की मौत देखने के बावजूद मोदी देश में अमेरिकी कंपनियों को बिना शर्त आमंत्रित कर रहे हैं। अमेरिकी कंपनियां यहां आएंगी भी, लेकिन यहां के कामगारों को सावधान और सजग रहने की जरूरत है।

षडंगी ने कहा कि प्रदेश सरकार ने गैस त्रासदी मामले की हर दिन सुनवाई कराने का वादा किया था, लेकिन उस पर अमल नहीं हो रहा है। पिछले चार साल में अमेरिकियों की तो बात ही छोड़िए, भारतीय अभियुक्तों की सजा बढ़वाने का मामला तक आगे नहीं बढ़ा है।

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